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Updated on: 1 December, 2017 12:00 AM IST

"मुझे भयंकर दर्द होता है, मैं ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती हूं. बेहोशी वाली हालत हो जाती है...", अपराजिता की आवाज़ से उनकी तकलीफ़ का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

37 साल की अपराजिता शर्मा चौथे स्टेज के 'एंडोमीट्रियोसिस' से जूझ रही हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में महिलाओं को बहुत कम जानकारी है और इस बारे में बात भी बहुत कम होती है. 'एंडोमीट्रियोसिस सोसायटी ऑफ़ इंडिया' के मुताबिक़ भारत में करीब ढाई करोड़ महिलाएं इससे पीड़ित हैं.

क्या है एंडोमीट्रियोसिस?

इस बीमारी में गर्भाशय के आस-पास की कोशिकाएं और ऊतक (टिशू) शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाते हैं जो सामान्य नहीं है. ये अंडाशय, फ़ैलोपियन ट्यूब, यूरीनरी ब्लैडर में या पेट के अंदर किसी भी जगह पर फैल सकते हैं. यह बीमारी आमतौर पर किशोर और युवा महिलाओं में देखने को मिलती है.

जिन महिलाओं को मेनोपॉज़ हो चुका होता है यानी जिनका मासिक धर्म बंद हो जाता है, उनमें एंडोमीट्रियोसिस होने की आशंका कम होती है. यह लंबे वक़्त तक रहने वाली बीमारी है जो मरीज को शारीरिक और मानसिक तौर पर तोड़कर रख देती है. इससे जूझ रही महिलाओं के मां बनने की संभावना भी काफ़ी कम हो जाती है.

क्या हैं लक्षण?

1. अनियमित मासिक धर्म

2. मासिक धर्म के दौरान असामान्य रूप से ज़्यादा ब्लीडिंग और दर्द

3. पीरियड्स शुरू होने से कुछ दिनों पहले स्तनों में सूजन और दर्द

4. यूरिन इंफेक्शन

5. सेक्स के दौरान और सेक्स के बाद दर्द

6. पेट के निचले हिस्से में तेज़ दर्द

7. थकान, चिड़चिड़ापन और कमज़ोरी

अपराजिता को शादी के दो साल बाद पता चला कि उनका एंड्रोमीट्रियोसिस गंभीर स्टेज पर है. इससे पहले पीरियड्स के दौरान बहुत ज़्यादा दर्द होने पर अपराजिता 24 साल की उम्र में डॉक्टर से मिली थीं.

वो बताती हैं, "उस डॉक्टर का कहना था कि मुझे पहले स्टेज का एंड्रोमीट्रियोसिस है. उन्होंने मुझे जल्दी शादी करके मां बनने की सलाह दी थी." दरअसल एंडोमीट्रियोसिस के मरीज़ को जब पीरियड्स होते हैं तो खून गर्भाशय के बाहर गिरकर इकट्ठा होने लगता है. इस खून की वजह से सिस्ट या गांठें बढ़ने लगती हैं. साथ ही तकलीफ़ भी बढ़ने लगती है.

चूंकि गर्भावस्था के दौरान नौ महीने तक महिला को मासिक धर्म नहीं होता इसलिए खून न मिलने की वजह से गांठें बढ़नी बंद हो जाती हैं. इस स्थिति में ऑपरेशन करके इन्हें निकाला जा सकता है. जो महिलाएं 'मेनोपॉज़' के उम्र के करीब होती हैं, उनको गर्भनिरोधक दवाएं या इन्जेक्शन देकर प्रजनन तंत्र को निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं.

हालांकि ऐसा ज़रूरी नहीं है कि मां बनने के बाद एंडोमीट्रियोसिस की तकलीफ़ कम हो जाती है. कई बार परेशानी जस की तस बनी रहती है या बढ़ भी जाती है. अपराजिता के अब तक चार ऑपरेशन हो चुके हैं लेकिन फिर भी वो पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई हैं.

उन्होंने बताया,"भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता और सुविधाओं की बेहद कमी है. हालात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में ऐसे गिने-चुने डॉक्टर ही हैं जो इन गांठों को पूरी तरह से शरीर से बाहर निकाल सकें.''

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि एंडोमीट्रियोसिस की स्थिति में गाइनोकॉलजिस्ट आपकी मदद कर पाए, ये ज़रूरी नहीं. आपको एंड्रोक्राइनोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए. अपराजिता की शिक़ायत है कि डॉक्टरों ने उन्हें हर तरीके की दवाइयां दीं, हर तरह का ऑपरेशन किया लेकिन जो स्थायी उपाय किया जाना चाहिए, वो किसी ने नहीं किया.

इस बीच अपराजिता ने इंटरनेट पर एंडोमीट्रियोसिस के बारे में पढ़ना और जानकारी जुटाना शुरू कर दिया था. वो सोशल मीडिया पर ऐसे सपोर्ट ग्रुप्स से भी जुड़ीं जो बीमारी से जूझ रही औरतों की मदद करते हैं. उन्होंने स्केचिंग के ज़रिए लोगों को एंडोमीट्रियोसिस के बारे में समझाने की कोशिश भी की.

फ़िलहाल अपराजिता का हार्मोनल ट्रीटमेंट चल रहा है. उनका अनुभव है कि भारतीय डॉक्टर भी औरतों के मां बनने की चिंता पहले करते हैं, उनकी तकलीफ़ की बाद में. हालांकि फ़र्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. शिखा जैन का कहना है कि कम उम्र की महिलाओं में सर्जरी के बाद भी कई तरह के साइड इफ़ेक्ट्स देखने को मिलते हैं. सर्जरी को लेकर डॉक्टरों की हिचकिचाहट की यह भी एक वजह है.

उन्होंने बताया,"एंडोमीट्रियोसिस की कोई ख़ास वजह नहीं होती. कई बार ये आनुवांशिक वजहों पर भी निर्भर करता है. मरीज़ पर इलाज के असर का ठीक अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है.''

कुछ महिलाओं को एक सर्जरी के बाद ही आराम हो जाता है और कुछ को तीन-चार ऑपरेशनों से होकर गुज़रना पड़ता है." डॉ. शिखा ने बताया कि एंडोमीट्रियोसिस अगर शुरुआती स्टेज में है तो अल्ट्रासाउंड से भी इसका पता लगाया जा सकता है. अगर मामला गंभीर हो तो लेप्रोस्कोपी की मदद लेनी पड़ती है.

अपराजिता का मानना है कि है कि भारतीय समाज में औरतों के स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लिया जाता. वो कहती हैं,"हमसे दर्द बर्दाश्त करने की उम्मीद की जाती है. किसी लड़की को पीरियड्स में दर्द होते हैं तो कहा जाता है कि ये दर्द तो कुछ भी नहीं है, अभी तो उसे मां बनना है. एंडोमीट्रियोसिस के बारे में जानकारी की कमी की यह भी एक वजह है."

अपराजिता ज़ोर देकर कहती हैं कि पीरियड्स के दौरान दर्द और यूरिन इंफ़ेक्शन जैसी समस्याओं को संजीदगी से लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही साफ़-सफ़ाई और डाइट पर भी ख़ास ध्यान दिया जाना चाहिए.

सूत्र : बीबीसी

English Summary: Women do not know about this disease of women themselves ...
Published on: 01 December 2017, 12:09 AM IST

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