भारत में खान पान की विविधता तो है ही. कुछ लोग सिर्फ चावल पर निर्भर हैं तो कुछ लोग गेहूं पर. दुनिया भर में चावल की खपत भी बहुत है और अंडा, मुर्गा और मांस के अलावा मछली खाने वाले भी काफी संख्या में मिल जाते हैं. समुद्र में पाए जाने वाले कई जीव जंतु भी इसी केटेगरी में आते हैं. समुद्री जीवों को यदि हम स्वास्थ की दृष्टि से देखें तो उन में ऑक्टोपस का नाम भी शुमार होता है.
आमतौर पर ऑक्टोपस खारे पानी में ही पाया जाता है. दुनिया भर में 200 किस्म के ऑक्टोपस पाए जाते हैं जिनमें से 38 किस्म के ऑक्टोपस भारत में मिलते हैं. अभी हाल ही में नर्मदा में भी ऑक्टोपस के मिलने के सबूत पाए गए हैं.
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में जारी जानकारी के अनुसार नर्मदा नदी में पहली बार ऑक्टोपस देखे गये हैं. यह ऑक्टोपस भारत की नर्मदा नदी के मुहाने (एस्टुराइन ज़ोन) में देखे गए हैं.
वैज्ञानिकों का दावा है कि नर्मदा नदी में देखे गये ऑक्टोपस 190-320 मिलीमीटर तक लंबे हैं. यह ऑक्टोपस 'सिस्टोपस इंडिकस' प्रजाति के हैं जिन्हें सामान्यतया 'ओल्ड वीमेन ऑक्टोपस' के नाम से जाना जाता है. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ये मुहाने में संभवत: हाई-टाइड वॉटर के कारण आए हों जिससे यह प्रजाति यहां आ गई.
सिस्टोपस इंडिकस के 17 नमूने, जिन्हें आमतौर पर ‘ओल्ड वीमेन ऑक्टोपस’ के रूप में जाना जाता है, की पहचान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईऍफ़आरआई) वडोदरा, गुजरात के वैज्ञानिकों द्वारा की गई.
16 दिसंबर को खंभात की खाड़ी से 35 किलोमीटर दूर भदभुत गांव में मछली पकड़ने के दौरान सीआईएफआरआई के नियमित सर्वेक्षण के दौरान ऑक्टोपस को देखा गया था. केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईऍफ़आरआई) के वैज्ञानिकों ने 04 जनवरी 2019 को अपने निष्कर्ष घोषित किए. संस्थान द्वारा 1988 से किए गए एकत्रित आंकड़ों के अनुसार भारत ऑक्टोपस मुख्य रूप से झींगा जाल में पकड़े जाते हैं लेकिन वे खारेपन में कभी नहीं पकड़े गए हैं.
इस ऑक्टोपस की लबांई एक मानव हाथ के आकार जितनी है. प्रजातियों की अधिकतम लंबाई 325 मिमी 56.2 ग्राम के बराबर है. भारतीय तटरेखा के किनारे बंगाल की खाड़ी से प्राप्त प्रजातियों की जानकारी के अनुसार यहां पाई गई प्रजाति की अधिकतम लम्बाई 600 मिमी है