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Updated on: 10 March, 2024 11:35 AM IST
मानवाधिकार - हनन पर टिप्पणी

मानवाधिकार शब्द का पारिभाषिक अर्थ है संपूर्ण मानव जाति के वे सारे अधिकार जिनमें उसकी जीवन की सुरक्षा एवं उसकी मान मर्यादा जन्म होने के पश्चात से ही समान रूप से शुरू हो जाती है. अधिकार और मान मर्यादा जीवन के ऐसे नैतिक गुण हैं जो मानव होने के नाते जन्म से ही प्रकट हो जाते हैं. यही आवश्यक नैतिक गुण व्यवस्थित तथा स्पष्ट रूप में मानव अधिकार कहलाते हैं. अतः हम यूं भी कह सकते हैं कि मानवाधिकार की कहानी, मानव की गलतियों की कहानी है. इस प्रकार मानवाधिकार की धारणा में मानव के प्रति मानव का अमानवीय व्यवहार ही मानवाधिकार हनन कहलाता है.

मानवाधिकार और मूल स्वतंत्रता हमें अपने गुण, प्रतिभा, बुद्धिमत्ता और विवेक के प्रयोग की स्वीकृति देते हैं. तब ऐसी पवित्र स्थिति में मानवीय गुण धर्म से वंचित कोई भी व्यक्ति पशुवत हो जाता है और समाज की दृष्टि वह वृत्ति गिर जाती है. पूरे समाज या फिर मानव जाति का नैतिक पतन हो जाता है. उदाहरण के तौर पर घरेलू हिंसा महिलाओं के मानवाधिकार के हनन का जीता जागता उदाहरण है.

वर्तमान युग में औरतों के प्रति घरेलू हिंसा की वारदातें जोरों से बढ़ रही है. उनके अंतर्गत भरपूर दहेज न देने पर परिवार के अंदर महिलाओं को यातना देना, ताना-बाना कसना और यहां तक की जिंदा जला देने की समाचार भी आते रहते हैं. परिवार से बाहर कार्य स्थलों पर मानसिक यातना तथा यौन - उत्पीड़न के मामले चरम पर हैं. देश के अंदर सुनसान जगह या फिर रात्रि के समय निरीह एवं असुरक्षित स्त्रियों के साथ बलात्कार या फिर सामूहिक बलात्कार की घटनाएं सामने आती रहती है. कई महिलाएं तो अपनी बेइज्जती के डर से इस प्रकार की यौन - यातना जीवन भर घुट घुट कर सहती रहती है. यह स्थिति तो सरासर मानव अधिकार का मजाक है, हनन है.

इसी प्रकार बाल अधिकारों का हनन भी समाज के अंदर सुना जाता है. बच्चों को तो पूर्ण पोषण शिक्षण एवं संरक्षण का अधिकार भगवान से जन्म के पश्चात ही प्राप्त हो जाता है. लेकिन समाज में वांछित लोगों का ऐसा तबका भी है जहां बच्चों को बंधक बनाकर उनसे होटल, घरों, कारखाने इत्यादि में अमानवीय ढंग से कार्य करवाया जाता है. एक तरफ जहां बचपन के दिन खाने, खेलने, वह पढ़ने के लिए होते हैं, वहीं दूसरी तरफ इन्हें बड़े लोगों के अधीन उनकी मर्जी वह हुकुम पर बिना बोले काम करना पड़ता है. समाज तथा देश का यह नैतिक पतन नहीं है तो क्या है? इसके अलावा बच्चों की तस्करी भी की जाती है और उनके द्वारा मनमाने कार्य करवाए जाते हैं, यहां तक की यौवन शोषण भी किया जाता है.

मानवाधिकार हनन के क्षेत्र में जब और आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि ऐसे कितने ही गरीब व हाशिए पर जीने वाले लोग हैं जो बेघर हैं भूखे - प्यासे हैं, बुद्धि और ज्ञान से वंचित हैं, धनहीन है तथा और भी न जाने कितने तरह की हीनता के शिकार हैं. अगर सूक्ष्म दृष्टि से इसके कारणों का अवलोकन करें तो पाते हैं कि समाज का नैतिक पतन और राजनीतिक भ्रष्टाचार ही मुख दोषी है. कई गरीब परिवार ऐसे हैं जिनके पास ना खाने को है ना पहनने को है और ना ही सोने वह रहने के लिए घर की चारदीवारी वह छत है. ऐसे बेघर, भूखे लोगों की क्या मानव गरिमा होगी और मानव-स्वतंत्रता होगी, जबकि यह दोनों गुण ईश्वर ने मानव को जन्म देने के साथ ही प्रदान किए हैं. यह सारी स्थितियां मानवाधिकार हनन की कहानी कहती है.

आगे जब हम मजदूर वह किसानों के जीवन में झांके तो पाते हैं कि वह किसान जो खेतों में अनाज, दालें, सब्जियां व मसाले उगा कर दूसरों का पेट भरते हैं और अन्नदाता कहलाते हैं, उनका ही जीवन कितना वंचित व संघर्षपूर्ण है. उनके जीवन में शिक्षा का अभाव, मनोरंजन का अभाव सुख वह संतोष का अभाव झलकता है. दूसरी तरफ अगर मजदूरों की जिंदगी में झांके तो वे सड़क, भवन, मकान व अट्टालिकाओं के निर्माता कहलाते हैं. लेकिन उनका जीवन भी सिर्फ रोटी, कपड़ा, और मकान के लिए संघर्ष करता नजर आता है. उनके बच्चे सड़कों पर खेलते नजर आते हैं. जरा गौर कीजिए कि इन भवन निर्माता के पास खुद के रहने के लिए मकान नहीं है.

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इसी प्रकार समाज में छोटी जाति के लोगों जैसे कुम्हार, लोहार, चमार,मुसहर तथा जनजाति के लोगों का जीवन भी मानवाधिकारों से वंचित जीवन की कहानी है. इनके पास न तो जीने का पूर्ण अधिकार है और न ही स्वतंत्रता जैसी बाहर है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उनके मानवाधिकारों को छीना गया है, इन्हें समाज में जीवन के अधिकारों से वंचित रखा गया है. अतः मानवाधिकारों - हनन को मानवाधिकारों के वंचन के  साथ जोड़ा गया है. इसे एक अमानवीय कृत्य माना गया है, जिसमें समाज अशांत हो जाता है, समाज में हिंसात्मक गतिविधियां बढ़ जाती हैं. मानवाधिकार हनन के कारण व परिणाम प्रायः एक जैसे होते हैं, चाहे वह मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो. यह स्थिति मानव व मानवाधिकार का मज़ाक़ व मखौल है.

रबीन्द्रनाथ चौबे ब्यूरो चीफ कृषि जागरण बलिया, उत्तर प्रदेश

English Summary: What is human rights violation human rights story basic freedom
Published on: 10 March 2024, 11:40 AM IST

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