12 वीं की बोर्ड परीक्षा अभी शुरू भी नहीं हुई हैं, लेकिन अच्छे कोर्स और कॉलेज की चिंता बच्चों को सताने लगी है. वैसे बदलते हुए समय के साथ एग्रीकल्चर क्षेत्र में करियर के सुनहरे अवसर पनपने लगे हैं. एग्रीकल्चर अब मात्र पशुपालन, खेती, कृषि विज्ञान या बागवानी अध्ययन तक ही सीमित नहीं रह गया है. शिक्षा के ग्लोबल एनवायरनमेंट ने कृषि को प्रबंधन, विज्ञान एवं बायोलॉजी आदि से जोड़ते हुए एक नए कोर्स में बदल दिया है. इस क्षेत्र में मुख्य रूप से डिप्लोमा, स्नातक या परा-स्नातक डिग्री लेने की होड़ मची हुई है.
फर्जी कॉलेजों से सावधानी जरूरी:
कृषि शिक्षा जगत में बढ़ते हुए रूझान को देखते हुए कई शिक्षा संस्थान एग्रीकल्चरल सर्टिफिकेट प्रोग्राम जैसे सर्टिफिकेट इन एग्रीकल्चर साइंस या सर्टिफिकेट इन फ़ूड एंड बेवरीज आदि कोर्स चला रहे हैं. वहीं सर्टिफिकेट इन बायो-फ़र्टिलाइज़र प्रोडक्शन, एग्रीकल्चर, डेरी साइंस, फिशरीज साइंस, प्लांट साइंस आदि नए कोर्सों का चलन भी बढ़ा है. लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि इन कोर्स को चलाने की अनुमती संस्थान को है या नहीं, हम इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं. अक्सर कॉलेज की बड़ी-बड़ी इमारतों को देख ये भ्रम होता है कि यहां शिक्षा भी बेहतर ही मिलती होगी, जबकि धरातल की सच्चाई कुछ और है.
गलत चयन से बर्बाद हो सकता है करियरः
निसंदेह आज के समय में एग्रीकल्चर की पढ़ाई सुनहरे करियर की संभावनाओं से भरी हुई है. आप खाद्य शोधकर्ता, फसल विशेषज्ञ, उर्वरक बिक्री प्रतिनिधि आदि क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं. आप कृषि पत्रकार या कृषि सलाहकार बनकर भी समाज को सेवाएं प्रदान कर सकते हैं. लेकिन फर्जी कॉलेजों का चयन इन सभी उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.
फर्जी शिक्षा संस्थानों से भरा पड़ा है देशः
देश में करीब-करीब 300 से भी अधिक संस्थान ऐसे हैं जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी द्वारा तय किए गए मापदंड़ों को पूरा नहीं करते. इस लिस्ट में कई कृषि शिक्षा संस्थानों के साथ-साथ अन्य तरह के कोर्स चलाने वाले संस्थानों के नाम भी शामिल हैं. कई संस्थान तो ऐसे भी हैं जिन्हें ना ही राज्य और ना ही केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त है, लेकिन बावजूद इसके ये लोगों से मोटी फीस वसूलकर अपनी दही जमा रहे हैं.
इन बातों पर दें खास ध्यानः
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किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी का यूजीसी (University Grants Commission) से सर्टिफाइड होना जरूरी है.
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कॉलेज या यूनिवर्सिटी को चुनते समय जरूर ध्यान दें कि NAAC (National
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Assessment and Accreditation Council) ने उसे क्या ग्रेड दिया है.
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बड़ी-बड़ी चमकदार इमारतों की अपेक्षा प्रयोगशालाओं, लाइब्रेरी, शैक्षिक गतिविधियों और मूल सुविधाओं का आंकलन करें.
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कही-सुनी बातों की अपेक्षा पिछले पांच सालों के प्लेसमेंट रिकार्ड्स का मूल्यांकन करें.
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वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों, प्रोफेसर्स, लेक्चरार आदि की प्रोफाइल स्टडी करें.