Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 7 July, 2020 11:12 AM IST

शरीर में उत्साह और उमंग भर देने वाला सावन का मौसम बदलते हुए समय के साथ अपनी पहचान खो चुका है. अब न तो गांव-देहात में पहले की तरह घर-आंगन में झूले पड़ते हैं और न महिलाएं मंगल गीत गाती है. विकास के नाम पर पेड़ तो पहले ही गायब हो चुके हैं, बाकि रही-सही कसर बहुमंजिला इमारतों के बनने से पूरी हो गयी है.

नहीं रहा अब पहले जैसा सावन

सावन में खेले जाने वाले खेल अब यादों का हिस्सा बनकर रह गए हैं. हां जन्माष्टमी पर भगवान को झूला झुलाने की परम्परा अभी भी निभाई जाती है, लेकिन लोगों के जीवन से सावन का आनंद अब गायब हो गया है.

कीटनाशकों ने खत्म किया सावन का मजा

बाग-बगीचों से मोर, पपीहा और कोयल की मधुर बोलियां ही सावन के आने का संकेत दे देती थी. लेकिन अब बढ़ते हुए कीटनाशकों के प्रभाव के कारण पंक्षियों का विचचरण लगभग समाप्त ही हो गया है. वैसे भी गांवों में अब बगीचे नाम मात्र ही रह गए हैं.

ये खबर भी पढ़ें: Sawan Special 2020: सिर्फ इन 3 चीजों से बनाएं स्वादिष्ट आलू की खीर, पढ़ें पूरी विधि

नहीं रही अब झूला संस्कृति

गांव की बुजुर्ग महिलाओं की माने तो सावन के आते ही बहन-बेटियों को ससुराल से बुला लिया जाता था. घर में तरह-तरह के पकवान बनते थे, पेड़ों पर झूला डाल कर महिलाएं दर्जनों सावन के गीत गाया करती थी. लेकिन आज भागदौड़ वाले जीवनशैली में लोगों के पास समय का अभाव है, ऐसे में सावन के गीत अब कहां सुनाई देते हैं.

पहचान खोते जा रहे हैं सास्कृतिक परंपराएं

पहले परिवार के लोग साथ रहते थे, इसलिए हर दुख-सुख में साथ रहते थे. अब तो एकल परिवार में लोगों को साथ रहने का समय नहीं रहा है. ऐसे में सांस्कृतिक पर्वों, आयोजनों एवं परंपराएं समाप्ति की कगार पर है.

(आपको हमारी खबर कैसी लगी? इस बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें. इसी तरह अगर आज़  पशुपालन, किसानी, सरकारी योजनाओं आदि के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वो भी बताएं. आपके हर संभव सवाल का जवाब कृषि जागरण देने की कोशिश करेगा)

English Summary: the joy of sawan about to vanished from rural india people forget sawan traditions
Published on: 07 July 2020, 11:16 AM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now