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Updated on: 7 July, 2020 11:12 AM IST

शरीर में उत्साह और उमंग भर देने वाला सावन का मौसम बदलते हुए समय के साथ अपनी पहचान खो चुका है. अब न तो गांव-देहात में पहले की तरह घर-आंगन में झूले पड़ते हैं और न महिलाएं मंगल गीत गाती है. विकास के नाम पर पेड़ तो पहले ही गायब हो चुके हैं, बाकि रही-सही कसर बहुमंजिला इमारतों के बनने से पूरी हो गयी है.

नहीं रहा अब पहले जैसा सावन

सावन में खेले जाने वाले खेल अब यादों का हिस्सा बनकर रह गए हैं. हां जन्माष्टमी पर भगवान को झूला झुलाने की परम्परा अभी भी निभाई जाती है, लेकिन लोगों के जीवन से सावन का आनंद अब गायब हो गया है.

कीटनाशकों ने खत्म किया सावन का मजा

बाग-बगीचों से मोर, पपीहा और कोयल की मधुर बोलियां ही सावन के आने का संकेत दे देती थी. लेकिन अब बढ़ते हुए कीटनाशकों के प्रभाव के कारण पंक्षियों का विचचरण लगभग समाप्त ही हो गया है. वैसे भी गांवों में अब बगीचे नाम मात्र ही रह गए हैं.

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नहीं रही अब झूला संस्कृति

गांव की बुजुर्ग महिलाओं की माने तो सावन के आते ही बहन-बेटियों को ससुराल से बुला लिया जाता था. घर में तरह-तरह के पकवान बनते थे, पेड़ों पर झूला डाल कर महिलाएं दर्जनों सावन के गीत गाया करती थी. लेकिन आज भागदौड़ वाले जीवनशैली में लोगों के पास समय का अभाव है, ऐसे में सावन के गीत अब कहां सुनाई देते हैं.

पहचान खोते जा रहे हैं सास्कृतिक परंपराएं

पहले परिवार के लोग साथ रहते थे, इसलिए हर दुख-सुख में साथ रहते थे. अब तो एकल परिवार में लोगों को साथ रहने का समय नहीं रहा है. ऐसे में सांस्कृतिक पर्वों, आयोजनों एवं परंपराएं समाप्ति की कगार पर है.

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English Summary: the joy of sawan about to vanished from rural india people forget sawan traditions
Published on: 07 July 2020, 11:16 AM IST

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