भारत की कृषि व्यवस्था ने समय-समय पर बड़े बदलाव देखे हैं. पहली हरित क्रांति ने 1960 के दशक में देश को खाद्य सुरक्षा प्रदान की थी, लेकिन आज, जब जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण, और जल संकट जैसी चुनौतियाँ सामने हैं, तो "दूसरी हरित क्रांति" की आवश्यकता महसूस की जा रही है. यह क्रांति केवल उत्पादन बढ़ाने तक सीमित नहीं होगी, बल्कि टिकाऊ कृषि, तकनीकी नवाचारों, और किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण को भी ध्यान में रखेगी.
दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता क्यों?
आज की कृषि कई चुनौतियों का सामना कर रही है:
- जलवायु परिवर्तन – असमय वर्षा, सूखा, बाढ़ और तापमान वृद्धि फसलों को प्रभावित कर रहे हैं.
- मृदा की उर्वरता में गिरावट – अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कारण भूमि की उपज क्षमता घट रही है.
- जल संकट – परंपरागत फसलों के लिए अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है, जिससे भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है.
- किसानों की आर्थिक स्थिति – छोटे और सीमांत किसान लागत बढ़ने और बाज़ार तक पहुंच न होने के कारण घाटे में जा रहे हैं.
दूसरी हरित क्रांति के मुख्य घटक
1. जैविक और प्राकृतिक खेती
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम कर जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता सुधरेगी और किसान रासायनिक उत्पादों की महंगी लागत से बचेंगे.
2. स्मार्ट और डिजिटल कृषि
ड्रोन, सेंसर्स, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकों की मदद से खेती को अधिक सटीक और प्रभावी बनाया जा सकता है.
- स्मार्ट सिंचाई से पानी की बचत होगी.
- मिट्टी की उर्वरता की डिजिटल मॉनिटरिंग से उपज में सुधार होगा.
- ई-कॉमर्स और ऑनलाइन मार्केटिंग से किसान सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँच सकते हैं.
3. बहुफसली खेती और मिश्रित कृषि
पारंपरिक एकल फसल मॉडल के बजाय बहुफसली खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है. इससे किसान एक से अधिक फसलों से लाभ उठा सकते हैं और प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं.
4. जलवायु-अनुकूल फसलें और बीज
सूखा-सहिष्णु, कीट-प्रतिरोधी और कम पानी में उपज देने वाले बीजों का उपयोग कृषि को अधिक टिकाऊ बना सकता है. इससे जलवायु परिवर्तन का असर भी कम होगा.
5. सहकारी मॉडल और किसान उत्पादक संगठन (FPOs)
छोटे और सीमांत किसानों को संगठित करके सामूहिक खेती और विपणन की सुविधा दी जानी चाहिए. इससे लागत कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा.
- सरकार और नीति-निर्माताओं की भूमिका
- किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन देना.
- कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण को आधुनिक तकनीकों से जोड़ना.
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करना ताकि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिले.
- कृषि निर्यात और प्रसंस्करण को बढ़ावा देना.
निष्कर्ष :
दूसरी हरित क्रांति केवल उत्पादन बढ़ाने की क्रांति नहीं होगी, बल्कि यह संपूर्ण कृषि व्यवस्था को पुनर्गठित करने की क्रांति होगी. तकनीक, पर्यावरण-अनुकूल पद्धतियों और किसान-हितैषी नीतियों के मेल से टिकाऊ और समृद्ध कृषि प्रणाली विकसित की जा सकती है. यदि सही कदम उठाए जाएं, तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक कृषि क्षेत्र में भी अपनी मजबूत पहचान स्थापित करेगा.
लेखक – रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तर प्रदेश