महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को उनकी 121वीं जयंती पर देशभर में याद किया जा रहा है. सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था. सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था. उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है. उनका "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया. आज देश उनकी 121वीं जयंती मना रहा है लेकिन विडम्बना कहें या देश की राजनीति की त्रासदी कि आज भी सुभाष चन्द्र बोस की मौत का रहस्य अनसुलझा है.
हालांकि, नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की सही वजह पता लगाने के लिए भारत की सरकारें कई जांच आयोग गठित कर चुकी हैं. सबसे पहले 'शाहनवाज कमेटी' बनाई गई जबकि उसके बाद 'खोसला आयोग' का गठन किया गया. शाहनवाज कमेटी नेता जी की मौत का सही पता न लगा सकी. खोसला आयोग ने कई दस्तावेजों के आधार पर कहा था कि सुभाष चंद्र बोस (नेता जी) की मृत्यु के होने का कोई उचित साक्ष्य नहीं है.
केंद्र में जब 1998 में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार आई तब इसके तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 'मुखर्जी आयोग' का गठन किया, जिसे नेता जी की मृत्यु का सही कारण पता लगाने का कार्य सौंपा गया. इस आयोग को 2002 में अपनी रिपोर्ट सौपनी थी, लेकिन आयोग ने 2005 में रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी. यह मुखर्जी आयोग पिछले आयोग के निष्कर्ष से एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई.
8 नवंबर 2005 को जस्टिस एम. के. मुखर्जी ने भारत सरकार को नेता जी सुभाष चंद्र बोस के मृत्यु के सम्बन्ध में रिपोर्ट सौंपी. नेता जी की मृत्यु कैसे हुई इस सम्बन्ध में किसी भी तथ्य की सच्चाई उजागर होने के बजाए और अनसुलझी पहले बन गई. जस्टिस मुखर्जी आयोग की जांच रिपोर्ट से साबित होता है कि नेता जी कि मृत्यु के सम्बन्ध में आज भी कुछ रहस्य है. मुखर्जी आयोग कि जांच रिपोर्ट में बताया गया कि 18 अगस्त 1945 को ताईवान में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई. अमेरिकी खुफिया एजेंसी (सी.आई.ए.)के मुताबिक 18 अगस्त 1945 ई.को ताईवान में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी. इस प्रकार जांच आयोग की रिपोर्ट ने आशंका जताई कि स्टालिन ने ही नेता जी को फांसी पर लटका दिया था, जिससे कि उनकी मृत्यु हुई थी.
गौरतलब है कि सुभाषचंद्र बोस के भाई शरत चंद्र बोस ने 1949 में कहा था कि सोवियत संघ में नेता जी को साइबेरिया कि जेल में रखा गया था तथा 1947 में स्टालिन ने नेता जी को फांसी पर चढ़ा दिया था. सुभाष चंद्र बोस के साथ विमान में यात्रा करने वाले कर्नल हबीब रहमान ने मृत्यु के कुछ दिन पूर्व यह स्वीकार किया था कि ताईवान में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी.
नेता जी सुभाषचंद्र बोस की मौत हवाई हादसे में होने की बात कही जाती है. इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो आने वाले दिनों में दूसरे तमाम तथ्यों की तरह इस सच से भी शायद परदा उठेगा. मगर ये सोचने की बात है कि जो शख्स कलकत्ता के अपने घर से पुलिस को चकमा देकर पेशावर पहुंच गया, और काबुल-बर्लिन होते हुए जिसने पनडुब्बी की तकलीफदेह यात्रा की, वह भला इतना कमअक्ल कैसे होगा कि जापान पर परमाणु बम गिरने और ब्रिटेन के सामने उसके आत्म-समर्पण के बाद जापान जाने की सोचेगा? जबकि ऐसे दस्तावेज भी हैं, जो बताते हैं कि फॉर्मोसा (अब ताईवान) में उस समय हवाई हादसा हुआ ही नहीं था. गौरतलब है की नेताजी ने अपना पूरा जीवन रहस्यमय तरीके से ही जिया, पर उनकी मौत भी इतने रहस्यमय तरीके से होगी ये किसी ने नहीं सोचा था.बहरहाल, नेताजी आज भी भारतीयों के हृदय में जीवित हैं और सदैव जीवित रहेंगे.