हिंदू धर्म में मौली यानि कलावा बांधने का अपना विशेष महत्व होता है. धार्मिक अनुष्ठान हो या कोई यज्ञ, मौली बांधे बिना संपन्न नहीं होता. इतना ही नहीं हर मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, पाठ या आराधना में भी मौली बांधने को शुभ कार्य माना गया है. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इसके पीछे का तर्क क्या है. हम क्यों बांधते हैं मौली. क्या यह मात्र आस्था या विश्वास का प्रतिक है या इसके पीछे किसी तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है. क्या है इसके पीछे का इतिहास और इसे बांधते समय पंडित जी क्या उच्चारण करते हैं. आज़ हम यही सब आपको बताएंगें.
मौली बांधने की प्रथा कहां से शुरू हुई इसके बारे में सबसे पहले वर्णन एक पौराणिक कथा में मिलता है, जिसके अनुसार देवी लक्ष्मी ने राक्ष्सो के राजा बलि को बांधा था. कथा कुछ प्रकार से है कि एक बार राजा बलि 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने ही वाले थे कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर चालाकी से राजा बलि से तीन पग भूमि मांग ली. भगवान ने दो पग में ही सबकुछ नाप डाला, जिससे राजा बलि समझ गए कि यह कोई वामन नहीं बल्कि स्वंय नारायण हैं.
राजा बलि ने भी फिर अपनी भक्ति का प्रमाण देते हुए तीसरे पग के रूप में अपना सिर भगवान विष्णु के आगे झुकाकर उन्हें प्रसन्न कर लिया और वरदान स्वरूप उन्हें अपना द्वारपाल बना लिया. लेकिन बहुत दिनों तक जब नारायण स्वर्गलोक वापस नहीं आए तो माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें यह मौली रक्षासूत्र के रूप में बांधा और अपना भाई बनाते हुए उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को वापस मांग लिया।
यही कारण है कि जब पंडित जी रक्षासूत्र बाधंतें हैं तो इस कथा का संक्षिप्त वर्णन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कहते हैं. मौली बांधते समय पंडित जी कहते हैं कि “येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल”, जिसका तात्पर्य यह है कि दानवों के महाबली राजा को जिस तरह देवी लक्ष्मी यह मौली बांधकर सत्य के मार्ग पर लाई, उसी तरह में तुम्हें यह मौली बांधते हुए कामना करता हूं कि तुम अपने धर्म के मार्ग से कभी ना भटकों एवं अपने लक्ष्य को पाने के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहों. ध्यान रहे कि मौली सूत्र केवल 3 बार ही लपेटा जाता है, जिसके पीछे का मत भी बहुत गहरा है. सबसे पहले तो त्रिदेवों- ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है. तीन बार मौली लपटने की मान्यता समय के तीन काल से भी है. इंसान वर्तमान में शुभ कर्म करने के लिए प्रेरित रहे, भूतकाल के फलों का सकरात्मक ढंग से सेवन करे एवं अच्छे भविष्य निर्माण के लिए सचेत रहे.
वैसे मौली बांधने के लाभ साइंटिफिक रूप से भी प्रमाणित हो चुके हैं. चिकित्सा विज्ञान की माने तो कलाई, पैर, कमर और गले में मौली बांधना वात, पित्त और कफ के ईलाज़ में सहायक होतें हैं. वहीं ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक और डायबिटीज या लकवा जैसे रोगों से भी बचाव होता है. इस बारे में मनौविज्ञान कहता है कि मौली बांधने से इंसान अपने अंदर सकरात्मक उर्जा को महसूस करता है एवं उसके जीवन से हताशा, तनाव एवं चिंता दूर होती है.