दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे धन्यवाद त्योहार भी कहा जाता है. पोंगल शब्द तमिल साहित्य से आया है, जिसका अर्थ 'उबालना' होता है. पोंगल एक चावल-आधारित व्यंजन को भी दर्शाता है, जिसे त्योहार के दौरान परोसा जाता है
मगर क्या आप जानते हैं कि दक्षिण भारत में इस त्यौहार को लोग इतने हुल्लास के साथ क्योँ मनाते हैं. इसकी क्या परम्परा है? तो आइये इस त्यौहार के बारे में विस्तार से जानते हैं.
दरअसल, जहां एक तरफ भारत के अनेक राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग रूपों में मनाए जाने की परंपरा है. वहीँ दक्षिण भारत के राज्य केरल, कर्नाटक तमिलनाडु, आंध प्रदेश में इस पर्व को पोंगल के नाम से जाना जाता है. दक्षिण भारत में धान की फसल समेटने के बाद लोग खुशी प्रकट करते हैं. नई फसल के अच्छे होने की भगवान से प्रार्थना करने के लिए इस त्यौहार को मनाते है. तमिलनाडु हिंदू परिवार के लोग इस त्योहार को चार दिन तक मनाते हैं.
पोंगल के दिन से ही तमिलनाडु नववर्ष की शुरुआत होती है और इस दिन लोग अपने घरों में फूलों और आम के पत्तों से सजाते हैं. इसके साथ ही मुख्य द्वार बड़ी रंगोली भी मनाते हैं. इस दिन नए वस्त्र पहनते हैं और एक-दूसरे के घर मिठाई भेजते हैं. रात के समय सामूहिक भोजन का आयोजन होता है और एक-दूसरे को पोंगल की शुभकामनाएं देते हैं.
तिथि और समय (Date And Time)
हर साल 14 जनवरी को यह उत्सव मनाया जाता है. सूर्य की दक्षिणी यात्रा के विपरीत इसे अत्यंत शुभ माना जाता है. हिन्दू मान्यता के अनुसार, इस दिन जब सूर्य मकर राशि (मकर) में पहुंचता है, तब पोंगल का त्योहार मनाया जाता है.
इतिहास और महत्व (History And Significance)
पोंगल एक ऐतिहासिक त्योहार है, जिसकी उपस्थिति संगम युग से पहले की जा सकती है. कुछ इतिहासकार अभी भी इसे संगम युग के उत्सवों से जोड़ते हैं. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, संगम युग के दौरान पोंगल को थाई निरादल के रूप में मनाया जाता था. यह भी माना जाता है कि इस समय अविवाहित महिलाओं ने देश की कृषि प्रगति के लिए प्रार्थना की.
इस उद्देश्य के लिए तपस्या की. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देश को एक स्वस्थ फसल, महान धन और आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि के लिए अविवाहित महिलाएं उपवास रखती हैं.
पोंगल कैसे मनाया जाता है? (How Is Pongal Celebrated?)
हिंदू पौराणिक कथाओं और ज्योतिष के अनुसार, यह त्योहार विशेष रूप से एक शुभ अवसर है, क्योंकि यह भगवान की छह महीने लंबी रात की शुरुआत का प्रतीक है. यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. पहला दिन एक विशेष पूजा द्वारा मनाया जाता है, जो धान को काटकर आयोजित किया जाता है. किसान अपने हल और हंसिया पर चंदन का लेप लगाकर सूर्य और भूमि का सम्मान करते हैं. हर दिन में एक अलग उत्सव शामिल होता है. पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है और यह आपके परिवार के साथ बिताने का दिन है. दूसरे दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है, जिसे सूर्य पोंगल के रूप में मान्यता प्राप्त है. इस दिन गुड़ के साथ पका हुआ दूध सूर्य देव को अर्पित किया जाता है.
तीसरे दिन मट्टू पोंगल मवेशियों की पूजा के लिए समर्पित होता है, जिसे मट्टू के नाम से जाना जाता है. मवेशियों को धोया और साफ किया जाता है, उनके सींगों को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है, और उन्हें फूलों से सजाया जाता है. देवताओं को चढ़ाया जाने वाला पोंगल फिर जानवरों और पक्षियों को चढ़ाया जाता है. वहीं चौथे दिन को 'कन्नम पोंगल' कहते हैं.