भारतीय खान-पान की संस्कृति में चावल का अपना ही महत्व है. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे गरीब या मध्यम वर्ग के अलावा कुलिन वर्ग भी बड़े चाव से खाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस चावल को आप खा रहे हैं वो सही है की नहीं. क्या जिस चावल का आप सेवन कर रहे हैं वो खाने योग्य है. ध्यान रहे कि यहां हम मिलावट की बात नहीं कर रहे और ना ही आपको ये बता रहे हैं कि दाल में कुछ काला है. दरअसल सत्य तो ये है कि यहां पूरी की पूरी दाल ही काली है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि बाज़ार में तेजी से प्लास्टिक के चावल का आगमन हुआ है. इन चावलों को इतनी चालाकी के साथ तैयार किया गया है कि ये देखने में प्राय असली चावल ही जैसे ही प्रतीत होते हैं. मिलावटखोर इस नकली चावल को इस तरह असली चावल के साथ मिलाकर बाजार में उतार देते हैं कि खुद दुकानदार को भी कई बार नहीं पता लगता कि वो लोगों को जहर बेच रहा है. भारी कैमिकल्स के प्रयोग से इसका स्वाद भी असली चावलों जैसा ही होता है, इसलिए पकड़े जाने का इन्हें कोई ड़र नहीं होता.
जहर से भी ज्यादा खतरनाक है प्लास्टिक चावलः
इस चावल का सेवन आपके कुछ ही दिनों में कमजोर बना देता है. इतना ही नहीं इसे खाने से कैंसर, हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती है. पेट में जाकर ये ना तो पचता है और ना ही सड़ता है.
ऐसे करें नकली असली की पहचानः
नकली चावल से बचने के लिए जरूरी है कि आपको इसके बारे में जानकारी है. प्लास्टिक के चावल को दो तरीको से पहचाना जा सकता है.
1. चमक एवं रंगः सामान्य चावल के मुकाबले प्लास्टिक चावल में चमक कई गुणा अधिक होती है, वहीं इसका रंग भी असामान्य रूप से साफ होता है. छूने पर ये अधिक मुलायम प्रतीत होते हैं.
2. आकार असली चावल के आकर एक दुसरे से थोड़ा बहुत अलग होगा एवं उसमे कुछ चावल टूटे-फूटे भी होंगे, लेकिन नकली चावलों के आकार में सूई के नोक भर भी असमानता नहीं होगी. उनका आकार बिलकुल एक जैसा होगा. उसी तरह इनकी मोटाई भी बिलकुल एक जैसी ही होगी.