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Updated on: 6 June, 2024 6:54 PM IST
पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण पौधों की हत्या (Image Source: Pinterest)

आजादी के बाद से अब तक हमने देश में जितने भी पौधे रोपित किए अगर उनमें से 50% भी जिंदा होते तो जंगली बचाए जाते. तो आज हरित संपदा में हम दुनिया में नंबर एक पर होते है. यहां मनुष्य को खड़े होने के लिए जगह नहीं बनती. डेढ़ 2 महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की सरकार बनने की आपाधापी के दरमियां 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस कब दबे पांव आया और निकल लिया, यह आम अवाम को तो पता भी न‌ चला. किंतु सोशल मीडिया व दूसरे दिन के समाचार पत्रों से पता चला कि देश भर में विभिन्न संस्थाओं सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण कार्य संपन्न हुआ है.

हम स्वयं पिछले 30 वर्षों से पेड़ लगा रहे हैं पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहां विश्व पर्यावरण दिवस/World Environment Day पांच जून के दिन ही वृक्षारोपण किए जाएं. जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाई-अगस्त होना चाहिए. अब चूंकि यह रिवाज बन गया है इसलिए शासकीय कार्यालयों में स्कूलों में अधिकारीगण, नेता गण, शिक्षक, बच्चे सभी हर 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं. वन विभाग इसमें सबसे आगे है. जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है कई स्थानों पर लू चल रही है. लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़ें-लिखे जानकार व्यक्ति भी तमाम डॉक्टर एवं दवाइयां के रहते भी मौत के मुंह में समा रहे हैं, ऐसी हालात में 5 जून को लगाए गए. ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे यह कहना कठिन है. 

वृक्षारोपण की नौटंकी

यह स्थापित तथ्य है कि भारत में मानसून आमतौर पर 15 जून के पश्चात ही सक्रिय हो पाता है. पर पर्यावरण दिवस के नाम पर सरकारी वृक्षारोपण की खानापूर्ति 5 जून को ही होना अनिवार्य है. इस कार्य में हमारे वन विभाग हर साल सबको पीछे छोड़ देते हैं. स्वनामधन्य वन विभाग को इसमें सबसे आगे होना भी चाहिए. क्योंकि देश के हजारों साल पुराने व जैव विविधता से समृद्ध लगभग सभी जंगलों को तो इन्होंने काट कर, कटवा कर, बेंच बांचकर कर फूंक-ताप लिया है. इनकी सफाई पसंदगी का यह आलम है कि जंगलों में ठूंठ तक नहीं छोड़ा गया है. इधर कुछ दशकों से वृक्षारोपण नामक नए चारागाह को जंगलों की रक्षा के नाम पर बनी ये बाड़ें निर्द्वंद्व भाव से चट करते जा रही हैं. हर साल नवीन वृक्षारोपण, पुराने वनों के सुधार, पड़ती भूमि संरक्षण आदि तरह-तरह की योजनाएं बनाकर सरकार से जनता के पैसे लो, वृक्षारोपण की नौटंकी करो, फिर भगवान से दुआ करो कि सारे पौधे मर जाएं. अगले साल फिर योजना बनाओ फिर पैसे लो फिर वृक्षारोपण की नौटंकी करो. यही इस साल भी होना है.

अब तक सारे महानुभाव वृक्षारोपण की फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर चेंप चुके हैं,बस किसी तरह समाचार में यह छप जाए कि अमुक महामहिम ने पौधा रोपकर देश के पर्यावरण पर और देश पर भारी भरकम एहसान कर दिया है, अब आगे पौधा जाने और पौधे की किस्मत जाने. हमारे देश में सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए उनमें से 50 प्रतिशत भी अगर जिंदा रह जाते, तो या देश विश्व का सबसे हरा भरा देश होता और शायद मनुष्य को खड़े रहने के लिए भी जगह नहीं मिलती. हमारे नीति निर्माता नेता गण अधिकारी गण इतने दूरदर्शी हैं कि वो जानबूझकर 5 जून को ही वृक्षारोपण कार्यक्रम संपन्न कर डालते हैं ताकि पौधा एक हफ्ता से ज्यादा जिंदा ही ना रह पाए, यानी कि ना रहे बसा बजे बांसुरी. इस तरह ये उद्योगपतियों के लिए कॉलोनाइजर के लिए जमीन बचाकर ये देश का भारी कल्याण कर रहे हैं.

सऊदी अरब 2024 पर्यावरण दिवस समारोह की कर रहा मेजबानी

1972 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा स्थापित, डब्ल्यूईडी ने पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में बनाने का निश्चय लिया. 1973 से हमसे लगातार बना रहे हैं और हर वर्ष पर्यावरण की रक्षा हेतु विभिन्न कार्य लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं, जिस पर हर देश से पूरे वर्ष प्राथमिकता के आधार पर ठोस का करने की अपेक्षा की जाती है. सऊदी अरब साम्राज्य 2024 पर्यावरण दिवस समारोह की मेजबानी कर रहा है. पर्यावरण की रक्षा हेतु इस वर्ष भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश  अपना ध्यान केंद्रित करते हुए बहुउद्देशीय योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं. हम इसमें क्या क्या कर रहे हैं यह सोचने का अलग विषय है. हमारे देश में पर्यावरण रक्षा के नाम पर केवल पेड़ लगाने की नौटंकी मात्र की जाती है. लगाने के बाद इन पेड़ों को इनके हाल पर छोड़ दिया जाता है इनमें से ज्यादातर मर जाते हैं. पेड़ों के मामले में सबसे धनी देश कनाडा में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 10163 है, वही हमारे देश में जहां की कहावत है कि, "कहते हैं सब वेदपुराण, एक वृक्ष दस पुत्र समान" बावजूद वृक्षारोपण की पिछले 7 सात दशकों की सतत नौटंकी के बावजूद "प्रति व्यक्ति मात्र 28  पेड़" बचे हैं. विश्व में सबसे गरीब देशों में शुमार किए जाने वाला देश इथोपिया भी हरित संपदा के मामले में प्रति व्यक्ति 143 पेड़ों के साथ हमसे 5 गुना ज्यादा समृद्ध है.

इस पर्यावरण दिवस की खानापूर्ति करने के लिए हमने भी एक और पीपल का पेड़ अपने "इथनो मेडिको हर्बल गार्डन" में लगाया है. पीपल ही क्यों? क्योंकि श्रीमद् भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि 'अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां' यानी कि पेड़ों में मैं पीपल हूं. खैर हमने ने जो पीपल का पौधा आज रोपा है, वह तो हम हर हाल में जिंदा रख लेंगे पर क्या आप सभी महानुभाव जिन्होंने इस 5 जून को पौधों का रोपण किया है, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आपने इस बार जितने पौधे रोपे हैं उन्हें हर हाल में आप जिंदा रखेंगे ?

अगर आपका जवाब ईमानदारी से हां में है तो मेरी ओर से आप सात तोपों की सलामी कुबूल करें. समाचार पत्रों में जब आप 5 जून पर्यावरण दिवस और माननीयों के फोटो देखें तो एक बार सोचिएगा जरूर कि फोटो में दिख रहा नन्हा मुन्ना पौधा कम से कम अगले पर्यावरण दिवस तक जिंदा रहेगा अथवा नहीं इसकी गारंटी कौन देगा? सोचिएगा जरूर.

डॉ राजाराम त्रिपाठी
(
पर्यावरण मामले की जानकार अंतरराष्ट्रीय हरित योद्धा अवार्डी)
राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा

English Summary: Planting trees or killing plants on World Environment Day 2024
Published on: 06 June 2024, 06:56 PM IST

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