आचार्य चाणक्य द्वारा युगों पहले कही गई हर बात शास्वत है. शायद यही कारण है कि धर्म, समाज, राजनीति और शिक्षा आदि हर क्षेत्र में होने वाला प्रत्येक रिर्सच उनके विचारों के बिना अधूरा है. अपने विचारों में चाणक्य ने हर वो नीति बड़ी सरलता से बताई है, जिनका पालन कर इंसान सफल हो सकता है. हालांकि तमाम ज्ञान एवं उपदेश के बाद भी चाणक्य स्वयं ये बात स्वीकार करते हैं कि कुछ गुण इंसान में प्राकृतिक तौर पर होतें हैं, जिन्हें वो ईश्वरीय भेंट स्वरुप लेकर पैदा होता है.
इन गुणों को ना तो उससे छिना जा सकता है और ना ही स्वभाव में डाला जा सकता है. इंसान भले कितनी ही कोशिश कर लें, लेकिन कठिन समय आने पर सिखाए हुए बातों का पालन नहीं कर पाता. जबकि जो गुण उसके स्वभाव का हिस्सा हैं वो सदैव उसके साथ रहते हैं. चलिए जानते हैं कि चक्रवर्ती सम्राट निर्माता चाणक्य के अनुसार ऐसे कौन-कौन से गुण हैं जो इंसान अपने जन्म के साथ लेकर पैदा होता है.
दानः
चाणक्य कहते हैं कि दान देना किसी व्यक्ति के स्वभाव का हिस्सा होता है. इंसान अपने जन्म के साथ ही दान का गुण लेकर पैदा होता है. वो गरीबों को देखकर दुखी होता है, समाज को लेकर व्याकुल रहता है और सदैव कुछ देने की चाहत करता रहता है. ये एक ईश्वरीय भेंट है, जो उसे जन्म के साथ मिलती है. दान अगर इंसान के स्वभाव का हिस्सा है तो हर परिस्थिती में वो दान करता ही है. दान देने की चाहत उसके अतंर मन से प्रकट होती है.
निर्णय लेनाः
हर इंसान अपने जीवन काल में अनेक निर्णय लेता है. वास्तव में अपने अतीत में लिए गए निर्णयों का फल ही वो वर्तमान में खा रहा होता है और वर्तमान में ले रहे निर्णय से भविष्य का निर्माण कर रहा होता है. निर्णय लेने की क्षमता वो जन्म के साथ ही लेकर पैदा होता है. किसी भी फैसले का सही समय क्या है, इसका ज्ञान उसके चैतन्य में समाहित होता है. अपनी समझ वो सूझ-बूझ के सहारे ही इंसान निर्णय लेकर अपने सही-गलत का फैसला करता है.
धैर्यः
इंसान के जीवन में सुख-दुख, सही-गलत, अमीरी-गरीबी आदि आती रहती है. लेकिन गतिमान जीवन के होने पर भी अपने मन पर लगाम लगाने वाला मानव ही सफल होता है. धैर्य ही हर सफलता का आधार है. इंसान कितना धैर्यवान है, ये उसके जन्म के साथ ही तय हो जाता है. धैर्य की शिक्षा किसी पाठशाला में नहीं मिल सकती है.
मधुर वाणीः
क्रोध में भी मीठे वचन बोलना अपने आप में एक कला है. जग जाहिर है कि मधुर बोलकर मिर्ची बेची जा सकती है, लेकिन कड़वा बोलकर मिठाई भी कोई खरीदने को तैयार नहीं होता. मधुर वाणी भगवान द्वारा दी गई एक भेंट है. इंसान कितना भी छलावा कर ले मीठा बोलने का, लेकिन आवेश में आकर वो वैसे ही बोलता है, जैसा वो है.