नीलकुरिंजी के मुख्य बिंदु
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‘कुरिंजी’ या ‘नीलकुरिंजी’ को वैज्ञानिक रूप से ‘स्ट्रोबिलेंथेस कुंथियाना’ के नाम से जाना जाता है, और 12 साल में एक बार खिलता है ये शानदार नीलकुरिंजी फूल.
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इस पौधे का नाम प्रसिद्ध कुंती (Kunthi) नदी के नाम पर रखा गया है .
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यह केरल के साइलेंट वैलीनेशनल पार्क से होकर बहती है, जहाँ यह पौधे प्रचुर मात्रा में होते हैं. इस पौधे की पहचान 19वीं शताब्दी में हुई थी. इसकी विशेषताओं में सामूहिक पुष्पन, सामूहिक बीजारोपण और सिंक्रनाइज़ मोनोकार्पी शामिल हैं.
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‘मोनोकार्पी’ ‘कुछ पौधों की विशेषता है जो अपने जीवनकाल में एक बार खिलते हैं और बाद में नष्ट हो जाते हैं.
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कुरिंजी 30 से 60 सेंटीमीटर की ऊँचाई तक बढ़ते है और 1,300-2,400 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं .
भौगोलिक वितरण
यह एक झाड़ी है जो दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में उगती है. नीलगिरी में आखिरी बार बड़े पैमाने पर फूल 2005 में दर्ज किए गए थे. 2006 में, 12 साल के अंतराल के बाद, नीलकुरिंजी तमिलनाडु और केरल के अन्य हिस्सों में खिले थे, नीलकुरिंजी कभी नीलगिरी की पहाड़ियों को फूलों के मौसम में नीले कालीन की तरह ढक देती थी. लेकिन अब नीलगिरी के बड़े हिस्से पर अब चाय के बागान और आवास हैं. डॉ. अरविंद के अनुसार उत्तराखंड राज्य में गढ़वाल क्षेत्र के उत्तरकाशी जिले के कुछ हिस्सों में 12 साल के अंतराल के बाद फूल आता है. नीलकुरिंजी के फूलों का मौसम वर्षा ऋतु से शुरू होता है और सर्दियों के शुरुआती महीने अक्टूबर तक रहता है. नीलकुरिंजी के फूल पूरी तरह खिलने के बाद उत्तराखंड की अधिकांश पहाड़ियां अक्टूबर की शुरुआत में नीली हो जाती हैं. उत्तरकाशी क्षेत्र में, स्थानीय रूप से एडगल के रूप में जाना जाने वाला नीलकुरिंजी फूल अक्टूबर 2019 के दौरान अपने पूर्ण खिलने की अवस्था में थे. इस क्षेत्र में अगस्त और नवंबर के महीनों के बीच नीलकुरिंजी झाड़ी के फूल आते हैं और आगंतुकों के लिए एक वास्तविक मनोरम दृश्य होता है. स्थानीय समाचार और मीडिया के अनुसार, उत्तरकाशी क्षेत्र में आखिरी बार नीलकुरिंजी का फूल साल 2007 में देखा गया था और 12 साल (2019) के अंतराल के बाद, नीलकुरिंजी के फूल क्षेत्र में फिर से पूरे खिले हुए थे. नीलकुरिंजी, जिसे वैज्ञानिक रूप से स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना के नाम से जाना जाता है, य़ह ज्यादातर पश्चिमी देशों में पाया जाता है.
स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना के साथ, हाल ही में पहाड़ी श्रृंखलाओं से पहचाने गए नीलकुरिंजी फूलों के प्रकारों में शामिल हैं -
• स्ट्रोबिलेंथेस एनामलाइका
• स्ट्रोबिलेंथेस हेयनियस
• स्ट्रोबिलेंथेस पुलिनेंसिस
• स्ट्रोबिलेंथेस नियोएस्पर
यह पौधा केरल में इडुक्की जिले की अन्नामलाई पहाड़ियों, पलक्कड़ जिले की अगाली पहाड़ियों और मुन्नार के एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान में पाया जाता है .
एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान नीलकुरिंजी फूलों का सबसे बड़ा अभयारण्य है .
अधिकांश स्ट्रोबिलेंथस प्रजातियों में एक असामान्य फूलों का व्यवहार होता है जो वार्षिक से 16 वर्ष के चक्रों में होता है .
जैसे- स्ट्रोबिलेंथस कुंथियानस 12 साल में सिर्फ एक बार खिलता है .
संरक्षण के उपाय
केरल के इडुक्की जिले में कुरिंजीमाला अभयारण्य का मुख्य क्षेत्र कुरिंजी की रक्षा करता है. वर्ष 2006 को ‘कुरिंजी का वर्ष’ घोषित किया गया था और केरल में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था.
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उपयोगिता और महत्त्व
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कुरिंजी के शानदार नीले रंग ने पहाड़ियों को ‘नीलगिरी’ नाम दिया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘नीला पर्वत’ तमिल भगवान मुरुगन को समर्पित तमिलनाडु के कोडाइकनाल में स्थित कुरिंजी अंदावर मंदिर भी इन पौधों को संरक्षित करता है.
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पलियान जनजाति (तमिलनाडु में) अपनी उम्र की गणना करने के लिए इस पौधे की फूलों की अवधि का उपयोग करती है.
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नीलकुरिंजी के कुछ औषधीय उपयोग भी हैं, हालांकि, मई-जून के दौरान जब चारे की कमी होती है, तो इस झाड़ी की पत्तियों का उपयोग ग्रामीणों द्वारा चारे के लिए भी किया जाता है. केरल में पर्यटन क्षेत्र बन जाता है, इस झाड़ी के फूल के बाद और पर्यटकों को आकर्षित करता है.
यह लेख संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) आशुतोष सैनी द्वारा साझा की गई है.