मकर संक्रांति हिन्दुओं के प्रमुख पर्वो में से एक है. यह पर्व पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. यह पर्व पौष मास में तब मनाया जाता है जब सूर्य मकर राशि पर आते है. वर्तमान शताब्दी में यह पर्व जनवरी माह के 14 या 15 जनवरी को पड़ता है. इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता हैं. हालांकि, यह भ्रान्ति गलत है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है. उत्तरायण का प्रारंभ 21 या 22 दिसम्बर को होता है. लगभग 1800 वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी. संभव है कि इसी वजह से इसको और उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है.
तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं. इस दिन दान पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस वर्ष मकर संक्रांति स्नान का पुण्य काल दिनांक 14 जनवरी 2019 की अर्द्धरात्रि, 2 बजकर 20 मिनट से दिनांक 15 जनवरी 2019 को सायंकाल, 6 बजकर 20 मिनट तक माना जाएगा. इस अवधि के दौरान पवित्र नदियों में स्नान के साथ दान-दक्षिणा देने से अत्यंत लाभ प्राप्त होगा. इसके साथ ही यदि आप अपनी राशि के अनुसार उपयुक्त दान देंगे तो और भी उत्तम रहेगा.
मकर संक्रांति 14 की बजाय 15 को
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रफुल्ल भट्ट के मुताबिक, संक्रांति में पुण्यकाल का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में हो तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है. चूंकि इस बार सूर्य 14 जनवरी की रात को मकर राशि में प्रवेश करेगा इसलिए संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन यानी 15 जनवरी को माना जाएगा. हिन्दू धर्म में संक्रांति पर्व के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान करना बहुत अच्छा माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में 'महास्नान' की संज्ञा दी गयी है.
मकर संक्रांति की पौराणिक मान्यता
मकर संक्रांति पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. चूँकि भगवान शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी, भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.