भगवान श्री जगन्नाथ की रथयात्रा का त्यौहार देशभर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. खासतौर पर जगन्नाथ रथ यात्रा ओडिशा में हर साल आयोजित होने वाला एक प्रमुख हिंदू उत्सव है. हिंदू धर्म के मुताबिक, यह उत्सव हर साल द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, जो चंद्र मास के शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन होता है. पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर चार धामों में से एक धाम है, कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में श्रीकृष्ण का ह्दय धड़कता है. भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद अपनी आत्मा को जगन्नाथ मूर्ति में स्थापित किया था.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ जी का महाभोग विश्व में प्रसिद्ध है. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ खुद सबसे पहले भोग ग्रहण नहीं करते हैं, बल्कि देवी विमला को पहले भोग लगाया जाता है. इसके बाद ही भगवान जगन्नाथ प्रसाद ग्रहण करते हैं. आइए इसके बारे में आज हम आपने इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं कि क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी...
देवी विमला के भोग के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं जगन्नाथ जी
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में मां विमला देवी की भी पूजा की जाती है. माता विमला को आदि शक्ति यानी पार्वती मां का स्वरूप माना जाता है, जोकि भगवान विष्णु (जगन्नाथ) की बहन है. माता विमला पुरी की अधिष्ठात्री देवी है. ओडिशा के पुरी मंदिर में देवी विमला की पीठ स्थापित है. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाने वाला भोग देवी विमला को अर्पित करने के बाद ही भगवान जगन्नाथ जी ग्रहण करते हैं.
विमला देवी को भोग चढ़ाने की परंपरा क्यों?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जगन्नाथ जी का भोग सभी धामों में सबसे खास माना जाता है. क्योंकि देवी लक्ष्मी स्वयं भगवान विष्णु के लिए भोग तैयार करती थी, लेकिन नारद मुनि को इस भोग को चखने की बड़ी इच्छा थी तभी माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर वरदान में भोग चखने का वर मांग लिया माता लक्ष्मी ने उन्हें भोग प्रसाद दे दिया. लेकिन उन्होंने इसे अपने तक ही सीमित रखने के लिए कहा, नारद मुनि प्रसाद लेकर कैलाश चले गए और उनके मुंह से महाभोग की बात निकल गई. भगवान शिव ने भी प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई. प्रसाद ग्रहण कर भोलेनाथ प्रसन्न होकर नृत्य करने लगे जिससे कैलाश डगमगाने लगा. इसके बाद देवी पार्वती ने प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई लेकिन प्रसाद समाप्त हो गया था, तभी देवी रुष्ट हो गई. इसके बाद भगवान शिव देवी के साथ जगन्नाथ धाम पहुंचे. देवी पार्वती ने मायके में भोजन करने की इच्छा प्रकट की.
भगवान जगन्नाथ जी सब कुछ समझ गए और कहा देवी लक्ष्मी के हाथ से बने भोग का प्रसाद पाने से कर्म का सिद्धांत बिगड़ सकता है. इसलिए मैंने इसे सीमित रखा था. लेकिन अब सभी इसे ग्रहण कर पाएंगे. मेरे लिए तैयार भोग सबसे पहले मेरी बहन पार्वती देवी को अर्पित किया जाएगा. संतानों के प्रति बिमल प्रेम के कारण देवी पार्वती विमला देवी के रूप में जगन्नाथ धाम में विराजेगी.
पुरी के श्रीमंदिर में देवी विमला को भोग अर्पण करना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि उस भाई-बहन के प्रेम और देवी शक्ति के सम्मान का प्रतीक है. इसलिए भगवान जगन्नाथ, देवी विमला से भोग ग्रहण करने के बाद ही प्रसाद स्वीकार करते हैं.