Mazdoor Diwas 2025: हर साल 1 मई को मजदूरों के मान-सम्मान के लिए मजदूर दिवस मनाया जाता है. यह दिन दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के तौर पर भी लोग मनाते हैं. यह दिन केवल एक छुट्टी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा का स्रोत है. यह हमें याद दिलाता है कि जब मेहनतकश वर्ग एकजुट होकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ता है, तो किसी भी शोषणकारी व्यवस्था को बदला जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस /International Labour Day पर विभिन्न संगठनों और यूनियनों द्वारा रैलियाँ, सेमिनार और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें श्रमिकों के अधिकार, बेहतर वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाती है.
आइए आज के इस आर्टिकल में हम मजदूर दिवस की शुरुआत से लेकर अब तक की कुछ महत्वपूर्ण पहलों के बारे में जानते हैं.
मजदूरों की शोषण की शुरुआत
औद्योगिक क्रांति के बाद जब बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों का निर्माण हुआ, तब मजदूरों की बड़ी संख्या में आवश्यकता पड़ी लेकिन उस समय उनके कार्य घंटे निर्धारित नहीं थे. उन्हें करीब 18-18 घंटों तक काम करना पड़ता था. शोषण की यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि मजदूरों को फैक्ट्रियों में ही रहने को विवश किया गया और यह कहां गया कि उनको फैक्टरी में पूरे 18 घंटे काम करना है तभी उनको वेतन मिलेगा. इसी स्थिति से लड़ने के लिए मजदूरों ने आवाज उठानी शुरू कर दी. तब से मजदूर अपने हक के लिए आवाज उठा रहे है.
हालांकि मजदूर आंदोलन की शुरुआत रूस से हुई थी, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह आंदोलन अमेरिका में पहले शुरू हुआ. सन् 1806 में फिलाडेल्फिया के मोचियों ने 20 घंटे की मजदूरी के खिलाफ हड़ताल की इसके बाद 1827 में 'मैकेनिक्स यूनियन' की स्थापना हुई, जो अमेरिका की पहली ट्रेड यूनियन मानी जाती है. इस संघर्ष लेकर दुनिया भर में काम के घंटे को लेकर आंदोलनों की शुरुआत हुई. मिली जानकारी के मुताबिक, मजूदर दिवस या मजदूरों की हक की आवाज की नींब अमेरिका में सबसे पहले रखी गई थी. इस पहल से दुनियाभर के मजूदर जागरूक हुए और उन्होंने अपने हक के लिए लड़ना शुरू कर दिया. देखा जाए तो कुछ मजदूरों के अंदर इतना आक्रोश भर गया कि वह हर दूसरे मजदूर की परेशानी को अपना समझकर आवाज उठाने लगे.
8 घंटे काम के लिए आंदोलन
1884 में अमेरिका में ‘8 घंटे काम’ आंदोलन ने गति पकड़ी. बता दे कि "नेशनल लेबर यूनियन" के नेतृत्व में मजदूरों ने पूरे देश में 8 घंटे के कार्यदिवस की मांग की. इस दौरान कई जगहों पर हड़तालें हुई थी. जब ये हड़ताल हुई तब मजदूरों के साथ बहुत बदसलूकी की गयी थी, जिन्हें 1877 में सैनिक बल के जरिए कुचला गया लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और इस लड़ाई को लड़ा.
शिकागो का हेमार्केट हत्याकांड
1 मई 1886 को शिकागो में मजदूरों ने बड़े स्तर पर हड़ताल की 4 मई को पुलिस और मजदूरों के बीच संघर्ष हुआ, जिसे हेमार्केट हत्याकांड कहा जाता है. इसमें कई मजदूर मारे गए और कई नेताओं को फांसी दी गई और कई मजदूरों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया इस घटना ने लोगों का दिल दहला दिया था और यह घटना मजदूर आंदोलन का प्रतीक बन गई.
1 मई को मजदूर दिवस क्यों?
शिकागो हेमार्केट हत्याकांड की स्मृति में 1889 में पेरिस में हुई समाजवादी कांग्रेस में तय हुआ कि 1 मई को दुनियाभर में मजदूरों के सम्मान और अधिकारों के लिए मनाया जाएगा. इसके बाद अमेरिका सहित कई देशों में 8 घंटे काम का नियम लागू हुआ. वहीं, भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत पहली बार 1923 में चेन्नई में हुई. इसका आयोजन 'लेबर किसान पार्टी' ने किया था, स्वतंत्रता के बाद भारत में मजदूरों को कानूनी अधिकार मिले और 8 घंटे की काम अवधि को कानूनन मान्यता दी गई थी.
लेखक: रवीना सिंह