भारतवर्ष आस्था, विश्वास, प्रेम एवं परंपराओं का देश है. यहां पर अनादि काल से अनेक प्रकार की उपासनाएं, पूजा तथा अर्चना की पद्धतियां प्रचलित हैं. किसी व्यक्ति को किसी पर विश्वास और आस्था होती है तो किसी अन्य को किसी और पर. लोक मानव की भावनाओं की सीमा कहां? देवी देवताओं से लेकर पेड़-पौधे एवं पशु पक्षियों को पूजने तक की लोक रीति पर घर-घर प्रचलित थी और आज भी है. लोक जीवन में इस प्रकार की मान्यताओं को किसी ने कभी और अस्वीकार नहीं किया है. यदि कोई व्यक्ति विशेष इन मान्यताओं को स्वीकारने से मुख मोड़ता या नकरता है, तो उसे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इसका फल भी प्राप्त होता है, आशा विश्वास है.
विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों की पूजा करके, सेवा करके, अर्चना उपासना करके लोगों ने मनोवांछित फल प्राप्त किए हैं. देश, समाज, घर परिवार की सांसारिक एवं स्वयं की विपत्तियां को झेलने के पश्चात लोक मानव ने पेड़ पौधों की तरह-तरह से पूजा अर्चना की है. प्राचीन भारतीय साहित्य में इस प्रकार के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं. पीपल, गूलर, बरगद, पाकड़, आम, बांस, बेल, सेमल, साल, आंवला, तुलसी, केला इत्यादि की पूजा विधि पुराणों, वेदों, उपनिषदों, मनुस्मृति, उपनिषदों में सहजता के साथ देखने को मिलती है. संकट एवं विपत्ति के समय मनुष्य ने अपने सगे संबंधियों के साथ पेड़ पौधों को भी याद किया, पुकारा एवं शरण ली. पेड़-पौधे में मनुष्यों ने विविध रूप देखें. उसने पेड़ पौधों में प्रकाश, रूप, रस, आनंद एवं फलित कल्पनाओं की गहराई पाई. यही तो कारण है कि लोक मानव ने पेड़ पौधों को या उनके फल फूलों एवं पत्तियों को भुलाया नहीं है. वेद एवं पुराणों में गूलर को भगवान विष्णु का अवतार, पलाश को ब्रह्मा का रूप, पीपल को भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप, तथा केले को लक्ष्मी का प्रतिरूप कहा गया है. कमल के फूल एवं बेर के फल की महता मां सरस्वती की आराधना करने में है. लोगों का विश्वास है कि ऐसा करने से मनुष्य को शीघ्र ही विद्या प्राप्त होती है.
पेड़-पौधों की पूजा अर्चना में स्त्रियां विशेष आस्था एवं विश्वास रखती है. तुलसी की पूजा करना उसके चौरे पर दीप जलाना, आरती उतारना, भजन गाना घर घर में आज भी प्रचलित है. तरह-तरह की मनौतियों की पूर्ति के लिए भी स्त्रियां अलग-अलग पेड़ पौधों की पूजा, श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करती हैं.
पुत्र प्राप्ति के लिए स्त्रियां अशोक, बांस, गूलर, बरगद की, पति की रक्षा के लिए अशोक एवं गुलर की, रोग व्याधि हरण के लिए नीम, गूलर, अशोक की पूजा करती है. धन प्राप्ति के लिए केला, कमल, तथा बेर वृक्ष की सेवा करती हैं.
सौन्दर्य वृद्धि एवं शरीर की रक्षा के लिए कमल तथा पलाश की आराधना करती हैं. तुलसी तथा केले की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति और दूर्वा से इच्छाओं की पूर्ति होती है. स्वर्ग की प्राप्ति के लिए बरगद, पीपल, पाकड़ एवं सुख संतोष के लिए साल, सेमल, आदि पेड़ पौधों की पूजा आराधना लोक जीवन में प्रचलित थी और आज भी है.
यदि केवल पेड़ पौधों से या प्रकृति से ही मोह हो जाता है तो पेड़ पौधों के प्राकृतिक सौंदर्य में मन स्वत: डूब जाता है. उनके सौन्दर्य को आंखें टकटकी लगाकर की निरखने लगती हैं. ऐसा लगता है मानो समस्त पेड़ पौधे कह रहे हों. मैं प्रकृति हूं.
मैं संस्कृति हूं.
मैं सभ्यता हूं.
मैं विकास हूं.
मैं सब कुछ हूं.
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इसमें सत्यता की खुशबू है. जब कैसे भी बीज जीवन के उर्वर भूमि में पड़ते हैं तो वहां पर एक छोटा या विशाल संस्कृति और सभ्यता रूपी वृक्ष का जन्म होता है जिसमें प्रकृति से लेकर प्रवृत्ति तक सारी बातें निहित रहती है. प्रकृति वह बीज है जिसके अंतर्गत लोक मानव का प्यार, मोह, आस्था बंधी होती है. जब लोक जीवन को किसी ने किसी रूप से प्रभावित करने वाली बातों की चर्चाएं होने लगते हैं तो वहां पेड़ पौधों की बात भी किसी न किसी रूप से आ ही जाती है.
रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश