होलिकोत्सव- इस पर्व को "नवान्नेष्टि यज्ञपर्व" भी कहा जाता है. क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परंपरा भी है. उस अन्न को होला कहते हैं. इसी से इसका नाम होलिका उत्सव पड़ा. होली का समय अपने आप में अनूठा ही है. फरवरी व मार्च में जब होली मनाई जाती है, तब सब ओर से चिंता मुक्त वातावरण होता है, किसान फसल काटने के बाद अस्वस्त होता है. पशु चारा तो संग्रहित किया जा चुका होता है, शीत ऋतु अपने समापन पर होती है. दिन ना तो बहुत गर्म और ना ही रातें बहुत ठंडी होती है, होलिकोत्सव- फागुन मास में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. होली वर्ष का अंतिम तथा जनसामान्य के सबसे बड़ा त्यौहार है.
यद्यपि यह उत्तर भारत में एक सप्ताह व मणिपुर में 6 दिन तक मनाई जाती है. सभी लोग आपसी भेदभाव को भूल कर इस त्यौहार को हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं. होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बोल देती है. विभिन्न देशों में इसके अलग-अलग नाम और रूप हैं. होलिका की अग्नि में पुराना वर्ष जो होली के रूप में जल जाता है और नया वर्ष नई आशाएँ, आकांक्षाओं को लेकर प्रकट होता है. मानव जीवन में नई ऊर्जा नई स्फूर्ति का विकास होता है.
होलिका दहन और शास्त्रों के अनुसार नियम
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं. पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है, इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखनी चाहिए. पहले उस दिन भद्रा ना हो, भद्रा का दूसरा नाम विष्टि कारण भी है, जो की 11 कारणों में से एक है. एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है.
दूसरी बात पूर्णिमा प्रदोष काल- व्यापिनी होनी चाहिए. सरल शब्दों में कहे तो उसे दिन सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए.
होलिका दहन की कथा
पुराने के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रहलाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजन करता, तो वह क्रोधित हो उठा अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि माता नुकसान नहीं पहुंचा सकती. किंतु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं. होलिका की केवल यही नहीं बल्कि और भी कहानियां प्रचलित है.
होलिका दहन से पहले हल्दी और सरसों का उबटन लगाने का भी महत्व है. होलिका दहन से पहले सभी परिवार के सदस्यों को हल्दी का उबटन, सरसों के तेल में मिलकर पूरे बदन पर लगाना चाहिए, फिर सूखने के बाद उसे एक कागज में शरीर से छुड़ाकर जमा कर लेना चाहिए जिसे होलिका दहन के समय होलिका में डालना चाहिए, ताकि होलिका दहन के साथ ही सभी मलिनता भी भस्म हो जाए, मान्यता है कि ऐसे करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है तन और मन दोनों से मलिनता का त्याग करने का त्योहार होली है. इसलिए जिन लोगों से मनमुटाव या मतभेद है वह सब नाराजगी होलिका में मानसिक रूप से अर्पित करके भस्म कर देनी चाहिए. इसी तरह उबटन से शरीर को मैल निकाल कर उसे भी होलिका की अग्नि में भस्म कर दिया जाता है.
होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन होता है. होलिका दहन से पहले कुछ बातों को ध्यान रखना आवश्यक है,- अगर आप होलिका दहन के दिन कुछ उपाय का प्रयोग करें तो पूरे साल अपने जीवन में खुशहाली और समृद्धि ला सकते हैं, होली की पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं, तो चलिए बात करते हैं कि होलिका दहन में किन-किन चीजों को करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख संपन्नता का संचार होता है.
5 या 11 गाय के उपले, एक मुट्ठी सरसों के दाने, नारियल का सूखा गोला लें फिर नारियल के सूखे गोले में जौ, तील, सरसों का दाना, शकर, चावल और घी भर लें, फिर उसे होली कि जलती हुई अग्नि में प्रवाहित कर देना चाहिए, इससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होती है और प्रत्येक काम आ रहे विघ्न दूर होते हैं.
होलिका दहन होने से पहले या फिर बाद में शाम के वक्त घर में उत्तर दिशा में शुद्ध घी का दीपक जलाएं ऐसा करने से घर में सुख शांति आती है.
सर्वप्रथम पूजा शुरू करने से पहले होलिका को हल्दी का टीका लगाए.
जो भी चीज अग्नि में अर्पित करनी है उसे अर्पित करके घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए.
होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करके जल अर्पित करें क्योंकि ऐसे करने से घर में समृद्धि आती है.
होलिका दहन की रात्रि में श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना लाभकारी होता है.
जिन लोगों को जीवन में परेशानियां पीछा नहीं छोड़ता उन्हें सुंदरकांड का पाठ अवश्य करने की सलाह दी जाती है.
शनि की साढे साती से या शनि के कोप से प्रभावित लोग शनि के बीज मंत्र का जाप करें हनुमान जी का विधिवत आराधना करें.
होलिका दहन के बाद घर आकर भी पूजा घर में एक दिया जरूर जलाएं.
रबीन्द्रनाथ चौबे ब्यूरो चीफ कृषि जागरण बलिया, उत्तर प्रदेश.