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Updated on: 9 January, 2019 3:03 PM IST

'हरगोविंद खुराना' यह वह नाम है जिसे भारतीय चिकित्सा जगत कभी भुला नहीं पाएगा. हरगोविंद खुराना ने चिकित्सा क्षेत्र में अपने शोधों के द्धारा संपूर्ण विश्व में भारत का नाम रोशन किया. आइए जानते हैं इस महान वैज्ञानिक के विषय में कुछ रोचक बातें -

जन्म

हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 में ब्रिटिश हुकुमत के अधीन भारत के रायपुर, मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था. इनके पिता पटवारी थे सो घर की हालत अधिक बेहतर नहीं थी. 4 पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे. गरीबी के बावजूद हरगोविंद खुराना ने अपनी पढ़ाई-लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ी परंतु जब वह 12 साल के हुए तो उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद हरगोविंद के बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई का बीड़ा अपने कंधों पर ले लिया.

शिक्षा

हरगोविंद खुराना की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में ही हुई. खुराना बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार और प्रतिभावान थे इसलिए उन्हें सरकार द्वारा छात्रवृत्ति मिलती रही. खुराना ने सन् 1943 में पंजाब विश्वविद्यालय से बी.एस.सी तथा 1945 में एस.सी(ऑनर्स) की डिग्री ली. सरकार की छात्रवृति की वजह से वह उच्चा शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में अनुसंधान किया और डॉक्टर की उपाधि ली. इसके बाद इन्हें फिर सरकार से छात्रवृत्ति मिली जिससे यह स्विट्ज़रलैंड चले गए. उच्च शिक्षा होने के बावजूद खुराना को भारत में योग्य काम नहीं मिला. 1950 से 1952 तक वह कैंब्रिज में रहे. 1952 में उन्हें वैनकोवर, कनाडा के कोलंबिया विश्वविद्यालय से बुलावा आया और वहां उन्हें जैव विज्ञान विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस संस्थान में रहते हुए उन्होनें आनुवांशिकी के क्षेत्र में शोध कार्य किया. धीरे-धीरे उनके शोधपत्र अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और शोध जर्नलों में प्रकाशित होने लगे. इससे वह काफी चर्चित हो गए और उन्हें कईं सम्मान और पुरस्कार दिए गए. 1960 में उन्हें प्रोफेसर्स इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक सर्विस की तरफ से स्वर्ण पदक से नवाज़ा गया.

उपलब्धियां 

खुराना ने जीन्स इंजीनयरिंग और बायो-टेक्नोलोजी विषय की बुनियाद रखने में अहम भुमिका निभाई. जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन सेंसेलेशन में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए 1968 में उन्हें चिकित्सा में नोबल पुरस्कार दिया गया. डॉक्टर खुराना नोबल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति बने. इसके बाद भी डॉक्टर खुराना ने अध्यापन जारी रखा और देश-विदेश के कईं छात्रों ने उनके सानिध्य में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की और 9 नवंबर 2011 को अमेरिका में इस वैज्ञानिक का देहांत हो गया. डॉ. हरगोविंद खुराना ने न सिर्फ एक वैज्ञानिक का दायित्व निभाया अपितु उन्होनें जीव विज्ञान और चिकित्सा में आने वाली पीढ़ियों के लिए नए दरवाज़े खोल दिए.

English Summary: Hargovind khurana nobel prize winner
Published on: 09 January 2019, 03:09 PM IST

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