मेरे 3 दोस्त हैं और सभी शादीशुदा हैं. दो दोस्तों की तो अभी शादी हुई है. एक की दिसम्बर में और दूसरे की फरवरी. एक और है लेकिन वो अलग है. अलग इसलिए क्योंकि उसकी शादी को एक साल हो गया है और सबसे ज़रूरी बात की उसकी शादी अरेंज हुई है. बाकी दोनों की लव मैरिज है. अब कहानी ये है कि एक साल वाला मौज मे है और 3 से 4 महीने वाले नज़रबंद होकर रह गए हैं. अब ज्यादा नहीं मिल रहे. बस, फ़ोन पर बात हो रही है. ऐसा क्यूँ हो रहा है, पता नहीं चल रहा है. सब – कुछ अच्छा तो था. हम चार दोस्तों में ये दोनों ऐसे थे जो पिछले पांच साल से रिलेशन में थे. सुनते भी थे और सुनाते भी थे. एक वक़्त आने पर मैं गुस्सा हो जाया करता था, लेकिन ये दोनों हमेशा शांत रहते. शायद यही शांत स्वभाव इन्हें परेशान कर रहा है.
आज हम एक ऐसे दौर में हैं जब समाज पुरुष प्रधान होने के साथ-साथ महिला प्रधान भी है. यहाँ तक तो ठीक है. लेकिन फेमिनिस्म के नाम पर जो हवा बह रही है, उसका रास्ता भी गलत है और मंजिल भी गुमराह करने वाली है. यह सही है कि बराबरी का अधिकार होना चाहिए. किसी को ऊँचा नहीं समझना चाहिए. लेकिन हावी होना कितना सही है. ये बहस का मुद्दा है और चिंतन का भी. कौन लड़की कैसी है या कोई लड़का कैसा है इसका अंदाज़ा मत लगाइए. बस कोशिश कीजिये की आप उसकी ज़रुरत को समझे और वो आपकी.
इस लेख का शीर्षक एकतरफा ज़रूर है लेकिन यह लागू दोनों पर है. क्या पुरुष और क्या महिला ?
गर्लफ्रेंड कितनी अच्छी पत्नी साबित होगी, ये एक मनो-वैज्ञानिक चिंतन है. सिर्फ महिला पर ये डाल देना की तुम पहले अच्छी गर्लफ्रेंड बनो और बाद में अच्छी वाइफ, ये ठीक नहीं. मुकाबला हो तो बराबर का हो. ठीक इसी तरह मर्द को भी हर अग्नि परीक्षा से गुज़रना ही होगा. उसे भी पहले अच्छा बॉयफ्रेंड और बाद में एक बेहतर पति साबित होना होगा. जीवन की गाड़ी ऐसे ही चलती है. अगर पत्नी सब्जी बना कर थक जाए तो पति का फ़र्ज़ है की वो रोटी बना दे. कहने का मतलब ये है कि कौन कितना बेहतर है, इसमें न पड़कर कोशिश करें कि एक–दूजे को समझें और थोड़ा झेलना सीखें.