Fruit Sticker Codes: मार्किट में आए दिन फलों के रेट घटते-बढ़ते रहते हैं. ऐसे में जब लोग बाजार में फलों की खरीदारी करने निकलते हैं, तो बस ये सोचते हैं कि उन्हें फ्रेश फ्रूट्स मिल जाए और लोगों फ्रेश होने की गुणवत्ता को परखने के लिए नंबर स्टिकेर्स पर ही नज़र डालते हैं. लेकिन क्या सच में फ्रूट्स पर लगे स्टीकर फल की गुणवत्ता को दर्शाते हैं.
आज हम आपको विस्तार से बताएंगे कि फलों पर लगे इन नंबर स्टिकर का क्या मतलब होता है क्यों इन Fruit Sticker Codes का इस्तेमाल किया जाता है.
फलों पर लगे नंबर स्टीकर
फ्रूट्स पर लगे नंबर स्टीकर को सभी ने देखा होगा जिनमें अलग-अलग नंबर लिखे होते हैं, जिन्हें LU (Price Look-Up) कोड के नाम से जाना जाता है साथ ही फलों पर लिखे नंबर ये दर्शाते हैं कि इन फलों की खेती किस प्रकार की गई है. मतलब फल प्राकृतिक जैविक है या Genetically Modified किया गया है. अब जानिये किस नंबर का क्या मतलब होता है.
PLU कोड के प्रकार (Types of PLU code)
4 अंको वाले कोड का इस्तेमाल (Use of a 4-digit code)
इस कोड का उपयोग उन फलों के लिए किया जाता है.जिनकी खेती रासायनिक खाद (Chemical Fertilizer) और कीटनाशकों के द्वारा की जाती है.और पारंपरिक तरीके से जिन फल को उगाया जाता है.उन के लिए चार अंको के कोड का इस्तेमाल किया जाता है.और ये फल कहीं ना कहीं हमारी सेहत के लिए खतरे की घंटी हो सकते है.
5 अंकों का कोड (5-digit code Use)
पांच अंको के कोड जोकि 9 से शुरू होती है.उनका होना ये दर्शाता है. की उन फलों को ऑर्गेनिक (Organic) तरीके से उगाया गया हैं.जोकि हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होते है.क्योंकि ही इन फलों में कोई कीटनाशक या रसायन नहीं इस्तेमाल हुआ होता हैं.
वहीं, अगर 5 अंक वाला कोड 8 से शुरू होता है.वो बताता हैं. कि यह फल GMO (Genetically Modified Organism) हैं.
स्टीकर पर लिखे नंबरों का महत्व (Importance of numbers written on stickers)
- गुणवत्ता और सुरक्षा: PLU कोड फलों की गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं.
- मूल्य निर्धारण: PLU कोड फलों की कीमत निर्धारित करने में मदद करते हैं.
- उत्पादन और वितरण: PLU कोड फलों के उत्पादन और वितरण को ट्रैक करने में मदद करते हैं.
हमेशा जैविक या ऑर्गेनिक फलों की ही खरीदारी करिये जो की आपके लिए और आपकी फॅमिली के लिए भी बहुत लाभकारी है, जोकि आपका और आपकी फॅमिली की सेहत का रखेंगे ख्याल.
लेखक: रवीना सिंह