जुगल (ट्रॉटस्की) आज भी वैसा ही था जैसा और दिनों में रहा करता था. सादी वेशभूषा और चेहरे पर वही हास्य का रंग. बल्कि उसने ऑफिस में और दिनों की तरह लोगों को हंसाया भी. पर आज कुछ अलग तो ज़रुर था. एक खामोशी और उस खामोशी में लिपटी हुई छोड़ के जाने की टीस. वो 7 घंटे ( क्योंकि आज वह एक घंटा लेट था ) आज जैसे ज्यादा तो नहीं पर थोड़े भारी मुझे जरुर लगे और इसकी वजह भी मैं जानता हूं. दुश्मन भी छोड़ कर जाए तो बुरा लगता है तो ये तो जुगल था जिसके साथ 4 या शायद साढ़े 4 महीने बिता दिए. जाती गर्मी और दिल्ली की पूरी ठंड का सीज़न बिताया है जुगल के साथ. और दूसरे दिनों में हम ऑफिस के उन 8 घंटों में 2 से 5 मिनट रोज़ बात करने के लिए निकाल ही लेते थे. क्योंकि जहां मेरा आसन था, वहीं से शौचालय का रास्ता होकर था. इसलिए कभी भारी मन से तो कभी हल्का होकर हमारी वो 2 से 5 मिनट की मुलाकात होती रहती थी. जुगल मेरे बारे में उतना ही जानता है जितना मैं उसके बारे में. एक जिंदगी मेरी है और एक उसकी. मां-बाप, नाते-रिश्तेदार, शिक्षा, दोस्त और सबसे बढ़कर उसका मथुरा. मैं भी हूं तो वैसे उत्तराखंड से लेकिन अब खुद को उत्तराखंडी नहीं कहता, क्योंकि 2 साल का था, तब से दिल्ली ने ही मुझे पाला है.
जुगल के बारे में मेरे पास ज्यादा मटीरियल नहीं है और यह लेख ऐसा भी नहीं है कि मैं इसमें मिर्च,मसाला और नींबू लगाऊं पर हां कुछ है जिसने चार से साढ़े चार महीने की दोस्ती को बिखरने नहीं दिया. यह मैनें इसलिए कहा कि ऑफिस के दूसरे लोगों से मेरी जिंदगी का ज़ायका नहीं मिलता और ये सच है कि जुगल ने मेरी ज़िदंगी का एक ज़ायका जरुर चखा है - साहित्य.
वो ज़िम्मेदार है, आशिकमिजाज़ है और हां ! अव्वल दर्जे का राजनेता बनने की प्रक्रिया में है. एक ऐसे दौर में जब आवाम एक भीड़ में तब्दील हो गई है, राजनीति और मीडिया हाशिए पर है, झूठ पर झूठ बोला और फैलाया जा रहा है, ऐसे में कुछ अलग सोच रखने वाला आम नहीं खास ही होगा. क्योंकि हिम्मत चाहिए. अपने कद से ऊंचे झूठ के साथ तर्क की भाषा बोलकर सच को खींचना वाकई आज मुश्किल है परंतु ऐसा हो रहा है. खैर, राजनीति मुझसे उतनी ही दूर है जितनी कैटरीना कैफ. इसलिए ज्यादा नहीं लिखूंगा.
आज जुगल अपने बचे हुए काम निपटा रहा है, लेकिन आज उसका ध्यान काम की ओर न होकर पूरी तरह अपने लिख देने वाले नोट्स पर है. वह ऑफिस के लोगों को एक मीठी याद देकर जाना चाहता है और उसकी आंखों में इस काम को खत्म करने की जल्दबाज़ी साफ-साफ देखी जा सकती है. लेकिन आज कोई आंखों में देखता ही नहीं...........