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Updated on: 15 July, 2025 6:12 PM IST
पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति की नींव (सांकेतिक तस्वीर)

देश के पूर्वी हिस्से में स्थित असम, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जो 17°N अक्षांश और 80°E–97°E देशांतर के अंतर्गत आते हैं, प्राकृतिक संसाधनों—विशेषकर जल और उपजाऊ भूमि—से भरपूर हैं. इस क्षेत्र का कुल कृषि योग्य क्षेत्र लगभग 72.36 मिलियन हेक्टेयर है.

इन राज्यों की क्षमता को देखते हुए केंद्र सरकार ने यहां दूसरी हरित क्रांति की नींव रखी है ताकि देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूती दी जा सके. वर्तमान में इस क्षेत्र में 10 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के 18 संस्थान, 32 क्षेत्रीय कार्यालय और कई राज्य स्तरीय इकाइयां कार्यरत हैं.

कृषि में बाधाएं भी कम नहीं

हालांकि, यह क्षेत्र कई विषम परिस्थितियों से भी जूझ रहा है जैसे—

  • गरीबी व भूमि का विखंडन
  • जनसंख्या का दबाव
  • लघु व अति सीमांत किसान
  • उन्नत बीजों व यंत्रीकरण की कमी
  • सूखा-बाढ़ की दोहरी मार
  • विपणन और भंडारण की कमजोर प्रणाली
  • धान-परती भूमि की अधिकता

फिर भी उत्पादन में अग्रणी

इन चुनौतियों के बावजूद पूर्वी भारत 73.76 मिलियन टन खाद्यान्न, 67.0 मिलियन टन सब्जियां, और 16.45 मिलियन टन फल का उत्पादन करता है. यह क्षेत्र चावल, सब्जी और मछली उत्पादन में देश का प्रमुख योगदानकर्ता है.

पशुधन क्षेत्र में सुधार की गुंजाइश

पशुधन की बात करें तो 2012 के आंकड़ों के अनुसार देश के कुल 512.05 मिलियन पशुओं में से 165.30 मिलियन इसी क्षेत्र में हैं. यहां देसी नस्लों का वर्चस्व है. विशेषज्ञों के अनुसार यदि कृतिम गर्भाधान, टीकाकरण, संतुलित आहार और हरे चारे जैसी तकनीकों को अपनाया जाए, तो दूध व मांस उत्पादन में 10–15% की वृद्धि संभव है.

नीली क्रांति की ओर बढ़ते कदम

मछली उत्पादन में भी यह क्षेत्र अग्रणी है. खासतौर पर पश्चिम बंगाल का योगदान उल्लेखनीय है. बिहार, ओडिशा और अन्य राज्य भी नीली क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि, उन्नत बीज, गुणवत्ता प्रबंधन और अंगुलिका मछलियों की उपलब्धता जैसे क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है.

कृषि जलवायु क्षेत्र और उत्पादकता

पूर्वी भारत के पांच कृषि जलवायु क्षेत्रों में से मध्य और निम्न गांगेय क्षेत्र सबसे उपजाऊ माने जाते हैं. आंकड़ों से स्पष्ट है:

  • निचला गांगेय क्षेत्र: चावल, मक्का, तिलहन, अंडा, मछली में सर्वाधिक उत्पादकता
  • मध्य गांगेय क्षेत्र: गेहूं, दालें, सब्जियां, फल, मांस व दूध में श्रेष्ठ प्रदर्शन
  • पठारी क्षेत्र: सभी फसलों में अपेक्षाकृत कम उत्पादकता

नीति निर्धारण की आवश्यकता

पूर्वी भारत के कुल परिचालित जोत क्षेत्र (31.87 मिलियन हेक्टेयर) में 45% भूमि मध्य व निम्न गांगेय क्षेत्र में है. ऐसे में संतुलित कृषि विकास, प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप, और नीतिगत सहयोग पूर्वी भारत को दूसरी हरित क्रांति का केंद्र बना सकते हैं.

लेखक: रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश

English Summary: Eastern india second green revolution agriculture development
Published on: 15 July 2025, 06:15 PM IST

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