कभी कभी समस्याएं भी कुछ नए समाधान प्रस्तुत करती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो हर विषय के दो पक्ष होते हैं. विदित हो कि प्रति वर्ष 23 अप्रैल को अर्थ डे मनाया जाता था. इस विशेष दिन पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना एक परंपरा बन चुका है. इसके बावजूद भी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में कोई कमी नजर नहीं आ रही थी. किंतु कोरोनो के संक्रमण और लॉक डाउन ने कुछ नए आशाजनक नतीजे प्रस्तुत किये हैं.
कोरोना का पर्यावरण पर प्रभाव
आज पूरा विश्व कोरोना के कारण होने वाली मृत्य तथा अभी तक इसका कोई पुष्ट उपचार न मिलने से आतंकित है. इसके कारण होने वाली आर्थिक क्षति के आंकलन में हर एक देश जुटा है. दूसरी ओर कोरोना के कारण हुए वैश्विक लाकडाउन के कुछ सकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम भी सामने आ रहे है. पूरी दुनिया में विभिन्न बड़ी फैक्टरियो के बंद होने तथा यातायात के साधनो के बंद होने से वायुमंडल को प्रदूषित करने वाली गैसों के स्तर में उल्लेखनीय कमी नजर रही है. जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण भी स्वच्छ हो रहा है. विकासशील देशों चीन, बांग्लादेश, तथा भारत के एयर क्वालिटी इंडेक्स में लगातार सुधार परिलक्षित हो रहा है.
कोरोना का असर रिपोर्ट में
कोरोना के दौरान वैश्विक बंदी के सकारात्मक प्रभाव विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से भी समझे जा सकते हैं. हाल ही में अमेंरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सेटेलाईट टेरा द्वारा लिए गए चित्रो के अनुसार,भारत की एअरो सोल आप्टिकल डेप्थ कम हुई है. जिसके कारण आकाश स्वच्छ हुआ है, तथा वायु में घुलित अशुद्धियां जैसे पार्टिकुलेट मैटर 2.5 तथा 10 अपने बीस वर्षो के निम्नतम स्तर पर है. यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी के कापरनिकस सेटेलाईट के अनुसार, भारत में नाईट्रस आक्साइड के स्तर में उल्लेखनीय कमी मार्च के अंतिम सप्ताह में देखी गई. बता दें कि वायुमंडल में नाईट्रस आक्साइड की अधिक सांद्रता बच्चों तथा व्यस्को में दमा का कारण बनता है जिस कारण देश में प्रतिवर्ष सोलह हजार से ज्यादा मौते होती हैं.
कोरोना ने सुझाए नए समाधान
कोरोना ने पर्यावरण संरक्षण के नए समाधानों से पूरे विश्व को अवगत कराया है. भारत के लिए पर्यावरण में सकारात्मक परिवर्तन का समाचार अत्यंत सुखद है,क्योंकि वर्ष 2019 के एअर क्वालिटी इंडेक्स में भारत विश्व का पांचवां सर्वाधिक प्रदूषित देश बन चुका था. इस प्रदूषण का प्रमुख कारण था एयरो सोल (वायुमंडल में घुली भारी धूल). जानकारी के लिए बता दें कि एयरो सोल का उत्सर्जन मुख्यतः दो स्रोतों से होता है. प्राकृतिक माध्यम जैसे ज्वालामुखी, समुद्र के लवण इत्यादि. जबकि मानवीय कारकों में, कार्बनिक जैविक पदार्थो का दहन शामिल है. इसी कारण विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 30 शहरों की सूची में 21 शहर भारत के थे.
भारत के संदर्भ में जरूरी सबक
कोरोना संकट के लॉकडाउन के परिणाम भारत के संदर्भ में सुखद हैं. नदियों तथा वन्य जीवन के लिए ये दिन वरदान से कम नहीं है. इसका प्रमाण कानपुर जैसे औद्योगिक नगरों से होकर बहने वाली नदियों के जल में होने वाले सुधार से मिलता हैं. सड़को पर भयमुक्त विचरण करते वन्य पशु भी मानो अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे है. अब वक़्त है इस पर्यावरणीय सुधार को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने का. कोरोना त्रासदी से प्राप्त ये परिणाम सबक हैं. उन्हें इस त्रासदी के गुजर जाने के बाद भी याद रखकर हम अपने भविष्य को सुरक्षित रख पाएंगे.