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Updated on: 31 January, 2025 2:33 PM IST
जलवायु परिवर्तन से कृषि पर बड़ा खतरा, सांकेतिक तस्वीर

खाद्यान्न संकट दुनिया भर में बढ़ता जा रहा है और आने वाले समय में यह संकट और भी गंभीर हो सकता है. खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने चेतावनी दी है कि तापमान में बढ़ोतरी के कारण दुनिया के विकासशील देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, में खाद्यान्न उत्पादन में 18% तक की कमी आ सकती है. यह स्थिति विशेष रूप से गेहूं जैसे प्रमुख अनाजों पर सबसे अधिक असर डालेगी.

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

धरती का बढ़ता तापमान मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है. इसका सबसे बड़ा असर पानी और खाद्यान्न पर होगा. विशेष रूप से अल्पविकसित देशों और द्वीपीय देशों में जलवायु परिवर्तन का असर पहले से ही स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है. भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण कई प्रकार के बदलाव आ चुके हैं. हिमालय क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ेगा और बाढ़ की घटनाएं अधिक होंगी. इसके अलावा, भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, जिससे यहां के तटीय क्षेत्रों में समुद्र का बढ़ता स्तर भी बड़ी समस्या बन सकता है.

तापमान और मौसम चक्र में बदलाव

वर्तमान में धरती का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जिससे तूफान, बाढ़ और सूखा जैसी घटनाएं बढ़ गई हैं. समुद्र का स्तर भी 10-20 मिलीमीटर बढ़ चुका है. भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र में भी बदलाव आया है. ठंड ज्यादा ठंड हो गई है और गर्मियों में अधिक गर्मी पड़ रही है. बे मौसम बारिश, पानी की कमी और अन्य असमान मौसम स्थितियां किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन गई हैं.

खाद्यान्न संकट और इसके कारण

खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपने ताजा आंकड़ों में यह बताया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में खाद्यान्न का उत्पादन 18% तक घट सकता है, यानी 125 मिलियन टन खाद्यान्न कम हो सकता है. अगर तापमान में और वृद्धि होती है तो यह संकट और बढ़ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले 30 वर्षों में खाद्यान्न की पैदावार में और कमी हो सकती है. इसका मुख्य कारण बाढ़ और सूखा जैसी आपदाएं हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक हो सकती हैं.

ग्रीनहाउस गैसों का असर

तापमान में वृद्धि का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रोजन गैसें. यदि इन गैसों का उत्सर्जन दुगना हो जाता है तो गेहूं और चावल जैसे प्रमुख अनाजों का उत्पादन 32% तक घट सकता है. भारतीय कृषि आयोग के अध्यक्ष डॉ. आरके पचौरी के अनुसार, हर फसल के लिए अलग वातावरण, मिट्टी और नमी की आवश्यकता होती है. ग्लोबल वार्मिंग ने इन तत्वों में असंतुलन पैदा कर दिया है, जिसके कारण कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

भारत में खाद्यान्न संकट के कारण

भारत में खाद्यान्न संकट केवल जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं बल्कि कुछ सरकारी नीतियों और कृषि क्षेत्र की स्थिति के कारण भी बढ़ रहा है. कृषि मूल्य आयोग के अनुसार, पिछले 10 वर्षों से देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 18-19 करोड़ टन के बीच ठहरा हुआ है, जबकि इस दौरान खाद्यान्न की मांग हर साल 2.5% बढ़ी है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में खाद्यान्न की पूर्ति कैसे होगी, यह एक गंभीर सवाल है.

कृषि क्षेत्र की नीतियों में खामियां

सरकार की नीतियों में कई खामियां हैं, जैसे कि उपजाऊ भूमि पर विशेष आर्थिक जोन बनाने की योजनाएं, जबकि खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के बजाय कृषि भूमि का रकबा लगातार घट रहा है. इसके अलावा, सरकार विदेश से खाद्यान्न का आयात कर रही है, जबकि देश में किसानों के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं है. बड़े-बड़े उद्योगपति अब खेती के क्षेत्र में आ रहे हैं, जो किसानों से सीधे खाद्यान्न खरीदकर उसका प्रसंस्करण करने का काम कर रहे हैं. इस प्रकार, कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय निगमों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है.

संभावित संकट

यदि भविष्य में कोई प्राकृतिक विपत्ति या अन्य संकट आता है, तो भारत को खाद्यान्न के मामले में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सरकार को अपनी कृषि नीतियों में सुधार लाना होगा ताकि किसानों को अधिक समर्थन मिल सके और खाद्यान्न की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके.

लेखकरवींद्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तर प्रदेश

English Summary: Climate change deep impact on agriculture food crisis increase across the world
Published on: 31 January 2025, 02:37 PM IST

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