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Updated on: 27 January, 2025 6:16 PM IST
कृषि श्रमिकों की समस्याएं, सांकेतिक तस्वीर

भारत के ग्रामीण सामाजिक ढांचे में कृषि श्रमिकों का वर्ग सबसे अधिक दलित और शोषित है. इनकी दशा बहुत गिरी हुई एवं दयनीय है. यह अत्यधिक निर्धन है तथा इनका जीवन बहुत निम्न है. गिरी आर्थिक दशा होने के कारण इन्हें अनेक कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है. भारतीय श्रमिकों की समस्याओं एवं कठिनाइयों को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है.

रोजगार एवं काम की दशाएं

कृषि श्रमिकों के पास अल्प रोजगार होता है. उन्हें वर्ष में काफी समय खाली रहना पड़ता है और उसे समय वह किसी तरह के वैकल्पिक रोजगार पाने में असमर्थ होते हैं. हरित क्रांति के बाद से रोजगार की दृष्टि से कृषि श्रमिक की हालत में सुधार हुआ है लेकिन मजदूरी की प्रचलित दर और काम के दिनों के आधार पर अब भी कृषि श्रमिक परिवार का गरीबी की रेखा के ऊपर उठ पाना संभव नहीं है. संगठन के अभाव में हुए न्यूनतम मजदूरी के लिए जोर नहीं दे सकते. सुरक्षा के अभाव में कृषि श्रमिक अपने न्यायिक अधिकारों के लिए भी लड़ नहीं सकते. कानूनी तौर पर बंधुवा मजदूर प्राणी खत्म होने के बावजूद आए दिन देश के विभिन्न भागों में इस प्रणाली का प्रचलन के समाचार मिलते रहते हैं. जहां यह प्रथा समाप्त भी हो गई है, वहां कृषि श्रमिक के काम के घंटे निश्चित नहीं है. प्रायः फसल बोने और काटने के समय तो कृषि श्रमिकों को सुबह से रात तक काम करना होता है. क्योंकि मजदूरी दैनिक होती है, इसलिए छुट्टी तथा दूसरी सुविधाओं का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

मजदूरी और आया

कृषि श्रमिकों को एक तो वर्ष के अधिकांश दिनों में बेकार बैठना पड़ता है और दूसरे काम के दिनों में भी मजदूरी कम मिलती है. इनकी कुल आय का लगभग 73% भाग कृषि मजदूरी से प्राप्त होता है लगभग 27 प्रतिशत भाग गैर कृषि स्रोतों से प्राप्त होता है. जहां तक मजदूरी की दर का प्रश्न है वह अत्यधिक कम है. कम आय के कारण कृषि श्रमिकों का जीवन स्तर भी ऊंचा नहीं उठने पता.

मलिक मजदूर सम्बन्ध

कृषि श्रमिक और मालिकों के बीच पूरे देश में एक ही तरह के संबंध नहीं है. रोजगार की अवधि, भुगतान की राशि और ढंग, काम छोड़कर अन्यत्र जाने की स्वतंत्रता, मालिकों के साथ सौदा बाजी की गुंजाइश, बेगार आदि के दृष्टि से मलिक मजदूर संबंध न केवल विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है, बल्कि वह एक ही जिले में भी एक गांव से दूसरे गांव में भिन्न है.

कार्य की दशाएं

मजदूरों को बहुत ही कठिन परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है. कड़ी धूप व भारी वर्षा में उन्हें घंटे खेत में खड़े होकर कार्य करना होता है. काम के घंटे अनिश्चित और अनियमित होते हैं और छुट्टी तथा अन्य आवश्यक सुविधाओं की कोई व्यवस्था नहीं होती. इन सभी का मजदूरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

ऋणग्रस्तता

अत्यधिक निर्धनता के कारण खेतिहर मजदूर परिवारों को अक्सर ऋण लेने पड़ते हैं परंतु अत्यधिक गरीबी के कारण वे कोई जमानत देने की स्थिति में नहीं होते. इसलिए संस्थाएं उन्हें ऋण देने से कतराती है और उन्हें महाजनों से ऋण लेने पड़ते हैं. महाजन ऊंची ब्याज दर लेते हैं तथा कई अन्य तरह से भी उनका शोषण करते हैं. वस्तुत: कृषि श्रमिक परिवार के ऋण पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं जिससे यह परिवार हमेशा ऋणों के भार के नीचे दबे रहते हैं.

संगठन का अभाव

कृषि मजदूर और अशिक्षित तथा अनभिज्ञ होने के साथ-साथ देश के सुदूर गांव में फैले हुए हैं जिससे वह संगठित नहीं हो पाते हैं. संगठन के अभाव में उनमें भू स्वामियों से मोल भाव क्षमता नहीं रहती जिससे वह अपनी मजदूरी बढ़ाने तथा कार्य के घंटे नियमित करने में असफल रहते हैं.

बेगार

बलात् श्रम या अनैच्छिक श्रम की प्रथा अभी भी प्रचलित है जिसके कारण कृषि श्रमिकों की आय बहुत कम हो जाती है.

सामाजिक स्थिति

देश के अधिकांश कृषि श्रमिक अपेक्षित एवं दलित जातियों के सदस्य हैं. नीची जाति के लोगों का ग्राम समाज में विभिन्न प्रकार का शोषण होता रहा है जिसके कारण इनका सामाजिक स्तर बहुत नीचा है.

उपभोग व जीवन स्तर

कृषि श्रमिकों की आय इतनी कम होती है कि वे न्यूनतम उपयोग खर्च भी पूरा नहीं कर पाते. यही कारण है कि कृषि श्रमिकों का जीवन स्तर बहुत नीचा व गिरा हुआ है. द्वितीय कृषि जांच के अनुसार सन 1956- 57 में उपभोग पर प्रति परिवार औसत वार्षिक खर्च 617 रूपए था , जबकि उस वर्ष औसत वार्षिक आय 437 रुपए थी. इस प्रकार प्रति परिवार औसत घाटा 180 रुपए था. कुल उपभोग व्यय का लगभग 77% भाग खाद्य पदार्थों पर, 6% भाग कपड़ों पर, 8% ईंधन हुआ रोशनी पर कथा 9% भाग विभिन्न खर्चों पर था.

कृषि के मशीनी कारण से बेरोजगारी

कृषि में आधुनिक मशीनों के प्रयोग में कृषि श्रमिकों में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न कर दी है. अन्य धंधों के अभाव में उसके सम्मुख रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न होता जा रहा है. उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कृषि श्रमिकों के समक्ष बहुत सी आर्थिक सामाजिक कठिनाइयां एवं समस्याएं विद्यमान है. कृषि श्रमिकों की यह समस्याएं हमारे लिए एक चुनौती है. इन समस्याओं का समुचित समाधान खोजना अति आवश्यक है.

लेखक:

रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश

English Summary: Challenges faced by agricultural laborers in india
Published on: 27 January 2025, 06:20 PM IST

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