नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद करेंगे कृषि जागरण के 'मिलियनेयर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स' के दूसरे संस्करण की जूरी की अध्यक्षता Millets Varieties: बाजरे की इन टॉप 3 किस्मों से मिलती है अच्छी पैदावार, जानें नाम और अन्य विशेषताएं Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान! आम को लग गई है लू, तो अपनाएं ये उपाय, मिलेंगे बढ़िया ताजा आम एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Organic Fertilizer: खुद से ही तैयार करें गोबर से बनी जैविक खाद, कम समय में मिलेगा ज्यादा उत्पादन
Updated on: 3 June, 2019 5:07 PM IST

मैं हिंदू हूं, तू मुसलमान, ये सिक्ख और वो देखो - ईसाई. ये तो हो गए धर्म. अब आते हैं जात पर.

मैं ब्राह्मण हूं, तू क्षत्रिय, ये वैश्य है और वो तो शुद्र है शुद्र. समझते हो न शुद्र का मतलब - जानवर. उसे इंसान कहलाने का हक नहीं है. आज भी गांव-कस्बों में सिर्फ जात के नाम पर जान ले ली जाती है और प्रशासन बुद्द बना तमाशा देखता है. चलिए अब थोड़ा और अंदर जाते हैं. ब्राह्मण में भी एक जात नहीं बहुत है. एक होता है बड़ा ब्राह्मण और एक होता है छोटा ब्राह्मण. फिर एक और है बहुत छोटा ब्राह्मण. इसी तरह छोटे क्षत्रिय और बहुत छोटे क्षत्रिय और वगैरह-वगैरह.

अब मैं ये जानना चाहता हूं कि इतने सारे धर्म और जातियों से निकले बिना क्या देश आगे बढ़ सकता है ? बिल्कुल नहीं. हम बंटे हुए भी हैं और कटे हुए भी. ये देश यहां तक पहुंचा है तो उन महान लोगों के प्रयासों से जिन्होनें कभी इस देश में धर्म और जातियों को मनमुटाव का ज़रिया नहीं बनने दिया और इन सबसे ऊपर उठकर देश और दुनिया में सिर्फ मोहब्बत और शांति बांटी. दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया और ये दिखाया कि नफरत चाहे कितनी भी फैल जाए लेकिन प्रेम सर्वोपरि है और प्रेम के दम पर दुनिया को झुकाया जा सकता है.

आज हम 2019 में है और बहुत जल्दी वो दिन भी आ जाएगा जब हम 2050 में पहुंच जाएंगे. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर 2050 तक भी हम यही करते रहे तो क्या होगा ? क्या होगा कुछ नहीं. अगर हम विश्व पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि हम कितने पीछे हैं. तकनीक या प्रौद्यागिकी में नहीं, सोच में, विजन में. हमें कोशिश यही करनी चाहिए कि कैसे इस धर्म और जात-पात की बेड़ियों को तोड़कर सिर्फ भविष्य के विषय में सोचें और ये तय करें कि हमें इस समाज और देश को कहां ले जाना है.

English Summary: cast system is drawback of our country
Published on: 03 June 2019, 05:09 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now