Titar Farming: किसानों के लिए है बेहद फायदेमंद तीतर पालन, कम लागत में होगी मोटी कमाई ग्रीष्मकालीन फसलों का रकबा बढ़ा, 7.5% अधिक हुई बुवाई, बंपर उत्पादन होने का अनुमान Rural Business Idea: गांव में रहकर शुरू करें कम बजट के व्यवसाय, होगी हर महीने लाखों की कमाई आम को लग गई है लू, तो अपनाएं ये उपाय, मिलेंगे बढ़िया ताजा आम एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान!
Updated on: 5 August, 2021 5:07 PM IST
chaumin

चबैना सूखे अनाज का भुना हुआ प्रारूप है. मुख्यतः यह धीमी आंच पर पककर तैयार होता है. सौंधी खुशबू से भरपूर या शुष्क आहार अत्यंत सरल एवं किफायती खाद्य प्रारूप रहा है. प्राचीन काल से ही मानव जीवन में खानपान का विशिष्ट महत्व रहा है. हमारे पूर्वजों ने खाद्य पदार्थों का चयन तत्कालीन परिस्थितियों एवं सुलता व आवश्यकताओं के अनुरूप किया था जो कि स्वास्थ्य वर्धक भी थे.     

मनुष्य के विकास के साथ खाद्य पदार्थों के भी विभिन्न प्रारूप विकसित होते जा रहे हैं. उदाहरण स्वरूप पावरोटी, नमकीन, विस्किट आदि. प्रस्तुत अंक खाद्यान्नों के प्रारंभिक मूलभूत स्वरूपों से आधुनिक प्रचलित व्यंजनों तक के सफर को  दर्शाता है.

चबैना

यह चबाकर खाया जाने वाला मुख्यतः अनाज का संपूर्ण भाग, भोज्य पदार्थ हैं. अनेक पोषक तत्वों से परिपूर्ण यह एक लाभदायक सुपाच्य आहार है. आम बोलचाल में इसे भूजा, कलेवा, खिमटाव आदि भी कहते हैं. ग्रामीण बुजुर्ग आज भी बड़े चाव से इसका सेवन करते हैं. मक्का, बाजरा, जौ, धान, चना, मटर इत्यादि चबैना के अनुरूप फसलें हैं. गर्म बालू में भुने हुए अनाज का एक अनोखा स्वाद होता है. इस भुने हुए अनाज को खासकर लावा कहते हैं. आग की धीमी आंच पर पकने के अलावा, अनाज को पानी में भिगोकर भी इसे तैयार किया जाता है. इस विधि से मुख्यतः दलहनी फसल के चबाने तैयार किए जाते हैं, जिनमें चना एवंमटर की दाल प्रमुख हैं.  गुड़ एवं रस चबैने का पूरक आहार है.

महत्व

चबैने का सेवन अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है.

 दाँतों का उचित व्यायाम होता है, जिससे वो मजबूत रहते हैं.

सम्पूर्ण बीज होने के नाते इनमे रेशे अत्यधिक मात्रा में होते हैं, जो पाचन क्रिया को सुचारू ढंग से संचालित करता है.

संपूर्ण भाग के उपभोग से पोषक तत्वों के क्षय की दर कम हो जाती है.

अनाजों में पोषक तत्वों की दृष्टि से बाजरे का महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें प्रोटीन, रेशे, खनिज पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट आदि प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. बाजरे में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में मिलते  हैं जो हमारे शरीर के विकारों जैसे- मधुमेह, हृदयाघात एवं कैंसर आदि के प्रभावों निदान में सहायता प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त कुछ मात्रा में वसा भी उपलब्ध होने से सम्मिलित तौर पर इसे प्रतिरक्षा पूरक आहार माना जा सकता है.

अत्यंत कम ऊर्जा से निर्मित यह आहार पर्यावरण संरक्षण में मदद करता है.  

साबुत अनाज

प्रोटीन (ग्राम)

वसा (ग्राम)

फाइबर (ग्राम)

कार्बोहायड्रेट

(ग्राम)

ऊर्जा (किलो कैलोरी)

बाजरा

12.5

3.5

5.2

63.8

364

मक्का

9.2

4.6

2.8

73.0

358

गेहूं

11.6

2.0

2.0

71.0

348

चावल

7.9

2.7

1.0

76.0

362

चना

20.47

6.04

12.2

62.95

378

तालिका 1 - प्रति 100 ग्राम अनाज में संभावित पोषक तत्व

परिवर्तित जीवनशैली

स्वाद एवं चलन की भागदौड़ में इन अनाजों के भोज्य स्वरूप बदल गए हैं. संपूर्ण भाग के स्थान पर अब परिष्कृत एवं परिवर्तित खाद्य पदार्थों का चलन बढ़ने लगा है. आज एक अनाज से अनेक प्रकार के भोजन सामग्री तैयार किए जा रहे हैं. उदाहरण स्वरूप गेहूं एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है. गांव में इसके चबैने, सत्तू एवं रोटी तक के ही प्रारूप देखने को मिलते हैं. इसका आटा भी गांव की महिलाएं स्वयं ही चक्की में पीसती थी, किंतु वर्तमान में ऐसा नहीं है. मनुष्य आराम की चाह में अपनी जीवन शैली परिवर्तित करके स्वयं दुष्परिणाम सहन कर रहा है.

आज गेहूं के आटे के अलावा, इसके अलग खाद्य पदार्थ मौजूद हैं. जैसे- मैदा, ब्रेड, पावरोटी, पास्ता, चाऊमीन, नमकीन, नूडल्स आदि अनेक प्रचलित भोजन हैं जो कि सेहत की दृष्टिकोण से अपेक्षाकृत कम लाभकारी हैं. मुख्य कारण इसमें भूसी की कमी होना है. वर्तमान पीढ़ी अत्यंत नरम एवं वसायुक्त व्यंजनों की शौकीन है. ठेले पर तली चाऊमीन से लेकर होटलों के प्रचलित पिज्जा, बर्गर लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. इसका मुख्य कारण हमारी व्यस्ततम जीवन शैली है.  दिनभर की भागदौड़ में भोजन के लिए भी उचित समय निकल पाने में असमर्थ व्यक्ति वैकल्पिक तौर पर फ़ास्ट फ़ूड सामग्री के सेवन का आदी बनता जा रहा है. आसानी से उपलब्ध ये आहार शहर ही नहीं बल्कि गावों के भी गलियों में अपनी धाक जमाये हुए हैं. आज व्यंजन विशेष रेस्तरां तक उपलब्ध हैं.

चाऊमीन मैदे से निर्मित, तेल में भुना हुआ वसायुक्त, एक प्रचलित आहार है. युवा वर्ग के पसंदीदा आहार के  प्रति 100 ग्राम की मात्रा में औसतन 8.48  ग्राम प्रोटीन, 30.8 ग्राम वसा, 55.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट एवं 527 किलो कैलोरी की ऊर्जा मिलती है. अत्यधिक कैलोरी एवं वसा होने से यह स्वास्थ्य का हितैषी न होकर गंभीर बिमारियों को उत्पन्न करने वाला खाद्य पदार्थ है. इसी क्रम में दूसरे आहार भी शामिल हैं. जैसे पास्ता, चिप्स, बर्गर वगैरह. सबसे बड़ी विडम्बना इनका रिफाइंड तेलों में तला हुआ होना है. बार- बार एक ही तेल को गर्म करने से उसमे उपस्थित वसा विकृत हो जाती है जो शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालती है. सचमुच खाद्य पदार्थों का भी मनुष्य के समांतर विकास हो रहा है. आधुनिक पीढ़ी परिश्रम की उपेक्षा कर विलासितापूर्ण जीवन शैली की ओर अग्रसर होती जा रही है.

परिणाम

बदलते खानपान का मुख्य रूप से हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं रहन सहन पर प्रभाव पड़ रहा है. आधुनिक भोज्य पदार्थ के निर्माण में अपेक्षाकृत अधिक संसाधन का इस्तेमाल होने से पर्यावरणका दोहन बढ़ गया है.  फ़ास्ट फ़ूड के सेवन से मोटापा एवं उच्च रक्त चाप की समस्याएं उत्पन्न हो रही है.  मोटापा से न केवल आलस्य बढ़ रहा है, बल्कि यह अनेक बीमारियों का कारण भी बन रहा है. जैसे- अवसाद, ह्रदय रोग, हृदयाघात, हड्डी का रोग, मधुमेह एवं कुछ प्रकार के कर्क रोग आदि. खानपान की अनियमितता से मुख्यतः पाचन संबंधी, दांत एवं हृदय संबंधित अनेक बीमारियों का प्रचलन बढ़ने लगा है. पहले की अपेक्षा लोग ज्यादा बीमार पड़ने लगे हैं. अत्यंत वसायुक्त  भोजन शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है.

बदलते जीवनशैली व खानपान का असर ग्रामीण इलाकों से पलायन पर भी पड़ा है. जिसके लिए युवा पीढ़ी की पारंपरिक पद्धतियों के प्रति उदासीनता एवं आधुनिक चकाचौंध व चलन का आकर्षण उत्तरदायी है. आज ज्यादातर खाद्य पदार्थ उसके प्रमुख घटक से नहीं बल्कि निर्माता के ट्रेडमार्क से प्रचलित है. हालांकि आर्थिक दृष्टिकोण सेभोज्य पदार्थों के नए स्वरूप ने नये-नये रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं. बस इसी आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ में मनुष्य हर मूल्यों से समझौता करके निरंतर भागता ही जा रहा है. सामरिक तौर पर भोजन के आधुनिक स्वरूपों के मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभावों को देखते हुए हमें अपनी जीवन शैली को वापस पारम्परिक पद्धतियों की ओर मोड़ने की आवश्यकता है. हालाँकि, आधुनिकता के इस दौर में ऐसा करना मुश्किल है परन्तु नामुमकिन नहीं. समाज के प्रत्येक वर्ग में इस विषय पर जागरूकता एक बेहतर कल का आधार साबित हो सकता हैं . और अगर खाद्यानों के सफर की बात संक्षेप  में करें तो  -

“कढ़ाई  के गर्म बालू से निकल करचलनी व सूप से परिष्कृत यह चबैना  पोटली में बंधकर खेत खलियानों को लांघते हुए चक्की, मिलों व फैक्टरियों में कुटते पिसते  न जाने कितना लंबा सफर तय करके  लोगों की प्लेटों में  नए रूप में मुस्कुरा रहा है. भविष्य में जाने कितने रूप दिखाएं,चबैना!”

लेखक: दुर्गेश चौरसिया, डॉ रंजीत रंजन कुमार

जैव रसायन संभाग, भारतीय  कृषि  अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

English Summary: Benefits of eating a nutritious diet
Published on: 05 August 2021, 05:12 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now