घर में ही लगाए बादाम का पौधा, बस करें इन आसान स्टेप्स को फॉलो PMFBY: फसल खराब पर देश के कई किसानों को मिलता है मुआवजा, इस नंबर पर करें शिकायत Weather Update: तपती गर्मी से देश के कई राज्यों को मिलेगी राहत, जानें अपने शहर के मौसम का हाल Vegetables & Fruits Business: घर से शुरू करें ऑनलाइन सब्जी और फल बेचना का बिजनेस, होगी हर महीने बंपर कमाई एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! Guar Varieties: किसानों की पहली पसंद बनीं ग्वार की ये 3 किस्में, उपज जानकर आप हो जाएंगे हैरान!
Updated on: 22 June, 2019 2:15 PM IST

ये मुझे कभी अच्छे नहीं लगे. जब से फिल्में देखना शुरु किया उसी दिन से चाहता था कि ये कब मरे. लेकिन जब थोड़ी बहुत समझ आई तब पता चला कि ये तो किरदार थे. इनका असल जिंदगी से कुछ लेना देना नहीं है. 12 जनवरी 2005 को जब अमरीश पुरी ने दुनिया को अलविदा कहा तब पता चला कि मेरी जिंदगी में ये नाम 'अमरीश पुरी' कितने मायने रखता था.  अपनी जो छाप छोड़कर ये कलाकार गया है वो अब कभी नहीं मिटने वाली. आज 22 जून को इनका जन्मदिन है लेकिन दिल ये मानने को तैयार नहीं कि इन्हें गए हुए 14 साल हो चुके है. कल ही तो मैनें दिलजले देखी. जहां ये अजय देवगन से कहते हैं कि - 'आतंकवादी की प्रेम कहानी नहीं होती, नहीं होती आतंकवादी की प्रेम कहानी'.  इस फिल्म में भोले-भाले श्याम को शाका बनाने वाला कौन - अमरीश पुरी. सिमरन और राज की जोड़ी फिकी होती अगर उसमें 'बाऊजी' का ट्विस्ट न होता. ज़रा सोचिए ! अगर 'मुगेंबो  खुश न होता' तो क्या होता ? सनी देओल न तो 'तारीख पर तारीख' लेता और न ही 'ढ़ाई किलो का हाथ दिखाता'.

आज भी फिल्में रिलीज़ होती हैं शुक्रवार के शुक्रवार. कुछ लव स्टोरी होती हैं, कुछ कॉमेडी तो कुछ हवस और जिस्म की नुमाइश से भरी हुई. विलेन का काम ज़ोरों पर है और तो और अब एक फिल्म में कईं विलेन होते हैं लेकिन न तो उनकी आंखों में दहकते शोले होते हैं और न ही उनके डायलॉग्स में आग. हर कोई साइलेंट विलेन बनना चाहता है. डायलॉग्स से जैसे तौबा कर ली हो. महीनों - सालों में कोई डायलॉग ज़ुबान पर चढ़ा तो चढ़ा वरना पूरी फिल्म में सूखा ही सूखा. 

अब तो साउथ फिल्मों का ऐसा जोर है कि हिंदी फिल्मों के निर्देशक भी उठा-उठा के उन्हीं की कहानी चेप रहे हैं. अब मार-धाड़ को तवज्जो दी जा रही है जिससे फिल्म के दूसरे पहलू कमजोर पड़ गए हैं. अभी-अभी की बात है. सोशल मीडिया पर एक डायलॉग आग की तरह फैल गया - 'आओ कभी हवेली पर'. ये भी अमरीश पुरी के ही कईं हीट डायलॉग में से एक है. तो आखिर क्या वजह है कि आज विलेन अपनी छाप छोड़ने में नाकाम हैं. वजह अमरीश पुरी का न होना नहीं है, वजह है किरदार और डायलॉग्स को महसूस न करना, वजह है किरदार और डायलॉग को सही डीलीवर न करना और वजह है इमेज से डरना. अमरीश पुरी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि - 'हमेशा अपने काम को सीरियसली लो अपने आप को नहीं'.

English Summary: amrish puri birthday special on today day
Published on: 22 June 2019, 02:24 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now