भारत में दुनिया की मात्र 2.4% कृषि योग्य भूमि और 4% पानी है, लेकिन भूमि संकट के स्थान पर देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट से गुजर रहा है, खासकर कृषि क्षेत्र. सिंचाई प्रोजेक्टों में संसाधनों की बर्बादी, फसल के गलत तौर-तरीकों, खेती-बाड़ी की गलत तकनीकें और चावल जैसी ज्यादा पानी इस्तेमाल करने वाली एवं बिना मौसम वाली फसलों पर जोर से समस्या विकराल होती जा रही है. समस्या का तुरंत समाधान करने की आवश्यकता है, जिसके लिए विशेषज्ञों ने सटीक खेती और आधुनिक तकनीकों जैसे तरीकों को अपनाने का आव्हान किया.
धानुका समूह द्वारा 'विश्व जल दिवस' पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने मुख्य भाषण में नीति आयोग के सदस्य प्रो रमेश चन्द ने कहा "कई विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में प्रति टन फसल के उत्पादन 2-3 गुना पानी इस्तेमाल होता है. पैदावार का क्षेत्र बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर रवी की फसल का, जब वर्षा ना के बराबर होती है. इसको बदलने की आवश्यकता है, और खासकर राज्य सरकारों को स्थानीय पर्यावरण और भौगोलिक स्थितियों के अनुसार खेती-बाड़ी को प्रोत्साहित करना चाहिए"
देश में सिंचाई प्रोजेक्टों पर करोड़ों रुपये खर्च
वर्ष 2015 से पहले सिंचाई के आधारभूत ढांचे की खराब स्थिति को रेखांकित करते हुए प्रो. रमेश चन्द ने आगे कहा, "1995 से 2015 के बीच छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई प्रोजेक्टों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन सिंचित जमीन उतनी ही रही. वर्तमान केंद्रीय सरकार ने 2015 में स्थिति का आंकलन कर तंत्र को बदला. परिणामस्वरुप पिछले कुछ सालों से सिंचित भूमि हर वर्ष 1% बढ़ते हुए 47% से 55% हो गई है."
उतना ही पानी इस्तेमाल कर कम निवेश में सिंचित भूमि में वृद्धि करने पर जोर देते हुए भारत सरकार में कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह ने कहा," जल शक्ति मंत्रालय के साथ मिलकर हम जमीन के ऊपर के पानी के बेहतर उपयोग के तरीकों पर काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए अगर एक नहर से अभी 100 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है, तो हम कैसे उतने ही पानी से 150 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई कर सकते हैं."
करीब 70% पानी कृषि में उपयोग
आईसीएआर में उपमहानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ आर सी अग्रवाल ने कृषि क्षेत्र में पानी के सही उपयोग पर किसानों और युवाओं को जागरूक करने पर अपनी बात रखी. "हम युवाओं के लिए एक कोर्स बना रहे हैं, जिसमें कृषि में पानी के उपयोग पर जागरूक करते हुए समाधान उपलब्ध कराए जायेंगे," इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन डॉ आर जी अग्रवाल ने कृषि कार्यों में आधुनिक तकनीकों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर जोर दिया. डॉ अग्रवाल ने कहा “लगभग 70% पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है. ड्रोन, स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन और वाटर सेंसर जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता को काफी कम करने में मदद मिलेगी. इससे पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी,” उन्होंने कहा ड्रोन अनुप्रयोग का एक उदाहरण देते हुए डॉ आर.जी. अग्रवाल ने आगे कहा, “ड्रोन के माध्यम से 1 एकड़ भूमि पर कीटनाशक स्प्रे के लिए पारंपरिक विधि में 200 लीटर के मुकाबले लगभग 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती है.
आधुनिक तकनीकों से पानी की बचत बहुत बड़ी होती है. पंचायत स्तर पर मौसम स्टेशन स्थापित करने से भी पानी की आवश्यकताओं को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी. इजराइल जैसे देश पहले ही आधुनिक सिंचाई प्रणाली सहित सटीक कृषि के लाभों का प्रदर्शन कर चुके हैं. एक देश के रूप में हमें भी बड़े पैमाने पर सटीक खेती को अपनाने की जरूरत है, जिसके परिणामस्वरूप न केवल पानी की बचत होगी, बल्कि किसानों की फसल की गुणवत्ता, उत्पादन और लाभप्रदता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, एक लक्ष्य जिसे सरकार हासिल करने के लिए उत्सुक एवं प्रयासरत है. ”
पानी को विवादों का समाधान बताते हुए आईआईपीए दिल्ली चैप्टर के चेयरमैन डॉ राजवीर शर्मा ने कहा, "हमारे चारों ओर विवाद हो रहे हैं, जैसे अन्न सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा, अंतःसरकारी विवाद और देशों एवं राज्यों के बीच विवाद. इन विवादों के समाधान के लिए पानी एक बेहतरीन उपाय है."
जल संरक्षण एवं बचत पर बोलने वाले अन्य गणमान्य व्यक्तियों में उत्तर प्रदेश के एमिटी विश्वविद्यालय की उपकुलपति डॉ बलविंदर शुक्ला, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के उपकुलपति डॉ अरुण कुमार, आईएआरआई के वनस्पति विज्ञान विभाग के मुखिया डॉ बी एस तोमर, आईएआरआई के संयुक्त निदेशक - कृषि विस्तार डॉ रबिन्द्र पड़ारिया, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ वाई जी प्रसाद और एएनजीआरएयू की उपकुलपति डॉ आर शारदा जयलक्ष्मी. इसके अलावा एसएसपी समिति के सदस्य प्रमोद चौधरी, जेएनयू में सहायक प्राध्यापक डॉ सुधीर सुथार और विश्व सहकारिता आर्थिक मंच के कार्यकारी निदेशक बिनोद आनंद ने एआई और आईसीटी के नजरिए से बदलते पर्यावरण में सटीक खेती से पानी के श्रेष्ट उपयोग विषय पर अपनी बात रखी.
धानुका समूह एक दशक से अधिक समय से जल संरक्षण के मुद्दे पर बढ़-चढ़कर कार्य करता रहा है. समूह ने सार्वकालिक महान कलाकार अमिताभ बच्चन के साथ 'खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में' नामक एक खास कैंपेन चलाया था, जिसमें कृषि और रोजाना की दिनचर्या में पानी के जिम्मेदार उपयोग पर समाज को शिक्षित किया गया. इसके अतिरिक्त धानुका समूह ने राजस्थान में कई छोटे-छोटे बांधों का निर्माण कराया है, जिससे सीकर जिले में जुगलपुरा और देवीपुरा, और जयपुर जिले में मैनपुराकीढाणी और संकोत्रा गांवों के वर्षा के पानी को जमा किया गया है.