भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य पूर्वी भारत में पशुधन क्षेत्र के विकास से जुड़े मुद्दों और रणनीतियों पर विचार-विमर्श करना था. कार्यक्रम की शुरुआत में संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए संस्थान की अनुसंधान गतिविधियों की जानकारी दी और यह रेखांकित किया कि वर्ष 2047 तक पशुधन उत्पादों और पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग को पूरा करने हेतु प्रभावी कार्यान्वयन योजना के साथ रणनीतियों के निर्माण की आवश्यकता है.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अशोक कुमार, पूर्व सहायक महानिदेशक (पशु स्वास्थ्य), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने संबोधन में संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की. उन्होंने स्थानीय पशु और कुक्कुट नस्लों के लक्षण निर्धारण से लेकर धान-परती भूमि प्रबंधन जैसे स्थायी कृषि विकास के प्रयासों का विशेष उल्लेख किया.
बिहार के चौथे कृषि रोडमैप तथा नीति आयोग के “विकसित भारत @2047” के संदर्भ में अनुसंधान कार्यक्रमों की योजना बनाने की सलाह दी. साथ ही किसानों से प्रभावी संवाद के लिए एक विशेष विस्तार कार्यकर्ता टीम गठित करने पर बल दिया, जिससे अनुसंधान की उपलब्धियों को किसानों के खेतों तक पहुंचाया जा सके. उन्होंने "वन हेल्थ" कार्यक्रम की उपयुक्तता पर भी बल दिया, जिसमें पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से ज़ूनोटिक बीमारियों, एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस, वन्यजीव, पशु एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों को शामिल किया गया है. इसके अतिरिक्त, उन्होंने विशेषकर कुक्कुट फार्मों में जैव-सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करने की सलाह दी ताकि एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी घातक बीमारियों को रोका जा सके.
विशिष्ट अतिथि डॉ. के.के. बरूआ, सदस्य, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद शासी निकाय एवं पूर्व प्रमुख, भा.कृ.अनु.प. परिसर, उमियम, मेघालय ने अनिषेचन (एनोएस्ट्रस) और अन्य प्रजनन विकारों को कम करने हेतु खनिज मिश्रण के अनुपूरण की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने बिहार और झारखंड क्षेत्रों के लिए विकसित क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण के व्यवसायीकरण और अन्य संगठनों द्वारा विकसित मिश्रणों की तुलनात्मक प्रभाव अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कृत्रिम गर्भाधान पर प्रशिक्षण, क्षेत्रीय स्तर पर खनिज मिश्रण के उपयोग पर जागरूकता कार्यक्रम और राज्य विभाग, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के बीच सहकार्य की अपील की.
डॉ. अंजनी कुमार, निदेशक, अटारी, पटना ने गाय और भैंसों में अनिषेचन तथा रीपीट ब्रीडिंग की गंभीरता को रेखांकित करते हुए वैज्ञानिकों से प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के माध्यम से समाधान लाने की अपील की. उन्होंने बकरी के बच्चों में मृत्यु दर कम करने और उपलब्ध तकनीकों की पहुंच बढ़ाने के लिए विस्तार तंत्र के सशक्तिकरण की बात कही तथा कृषि विज्ञान केंद्र नेटवर्क के उपयोग पर जोर दिया.
डॉ. जे.के. प्रसाद, अधिष्ठाता, बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना ने पूर्वी क्षेत्र में हरे चारे की कम उपलब्धता को पशुओं में प्रजनन समस्याओं का प्रमुख कारण बताया. उन्होंने बताया कि बिहार में कृत्रिम गर्भाधान की दर राष्ट्रीय औसत से कम है. उन्होंने इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, भ्रूण स्थानांतरण तकनीक, और लिंग वर्गीकृत वीर्य जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाने का सुझाव दिया ताकि पशु उत्पादकता में तीव्र वृद्धि की जा सके. उन्होंने गंगातिरी, बछौर और पूर्णिया जैसी बिहार की देशी नस्लों के श्रेष्ठ नर पशुओं को तैयार करने हेतु बुल मदर फार्म की स्थापना और वंश परीक्षण कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता बताई. उन्होंने बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान को व्यापक रूप से अपनाने की सलाह दी जिससे तीव्र आनुवंशिक सुधार संभव हो सके.
कार्यक्रम के आरंभ में, डॉ. कमल शर्मा, प्रमुख, पशुधन एवं मत्स्य प्रबंधन प्रभाग ने संस्थान की उपलब्धियों और गतिविधियों की जानकारी दी. कार्यशाला में लगभग 50 वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भाग लिया और पशुपालन के विभिन्न पहलुओं पर संसाधन व्यक्तियों से संवाद किया. कार्यशाला से पूर्व अतिथियों ने संस्थान के प्रक्षेत्र का दौरा किया और उत्पादन क्षमता में सुधार हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिए. डॉ. पी.सी. चंद्रन, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.