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Updated on: 31 December, 2018 3:46 PM IST

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस ने सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद किसानों का कर्ज माफ कर दिया .  इसके साथ ही भाजपा ने भी कई राज्यों में कृषि कर्ज माफ़ी का वादा कर दिया हैं. अब 'भारतीय रिजर्व बैंक' ने इस कर्ज माफी के साइड इफेक्ट्स गिनाते हुए सरकार को इशारों ही इशारों में चेतावनी दे डाली है. दरअसल रिजर्व बैंक ने कहा है कि, 'किसानों की कर्ज माफी से बैंक भविष्य में किसानों को कर्ज देने में कंजूसी बरत सकते हैं.'

कृषि क्षेत्र में NPA (Non-performing asset) बढ़ा

आरबीआई के आंकड़ों के हिसाब से वर्ष 2016-17 में कृषि कार्य के लिए आवंटित कर्ज की वृद्धि दर 12.4 % थी जो वर्ष 2017-18 में घट कर 3.8 % रह गई थी. चालू वित्त वर्ष के पहले 6 महीने में यह 5.8  % है. गौरतलब हैं कि RBI ने इसके लिए कृषि कर्ज माफी को जिम्मेदार ठहराया है. वैसे ये भी माना जा रहा है कि इसकी मुख्य वजह किसानों की कर्ज माफी पर राजनीतिक बहस होती है, जिसकी शुरुआत होते ही किसान बैंकों को अपना कर्ज चुकाना बंद कर देते हैं. लिहाजा किसानों की ओर से कर्ज नहीं मिलने की आशंका के बाद बैंक भी उन्हें कर्ज देने में कंजूसी बरतने लगते हैं.

विशेषज्ञों की चेतावनी

रिजर्व बैंक ने जुलाई में एक रिपोर्ट में कहा था कि ‘कर्जमाफी शॉर्ट टर्म के लिए बैंकों के बैलेंस शीट को साफ कर सकता है. इससे बैंक लॉन्ग टर्म में कृषि कर्ज बांटने से हतोत्साहित होते हैं.’  ज़्यादातर अर्थशास्त्रियों ने भी कर्जमाफी को लेकर सरकारों को चेताया है, जिसमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल हैं. रघुराम राजन ने कहा था कि 'ऐसे फैसलों से राज्य और केंद्र की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर होता है'. रघुराम राजन ने कहा था कि 'किसानों की कर्ज माफी का सबसे बड़ा फायदा साठगांठ वालों को मिलता है. इसका फायदा गरीबों की जगह अमीर किसानों को मिलता है. उन्होंने आगे कहा कि जब भी कर्ज माफ किए जाते हैं, तो देश के राजस्व को भी नुकसान होता है. रघुराम राजन ने तो किसानों की कर्ज माफी के वादे पर चुनाव आयोग से प्रतिबंध लगाने की मांग कर डाली थी.

English Summary: Why are not the banks giving loan to the farmers?
Published on: 31 December 2018, 03:49 PM IST

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