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Updated on: 7 May, 2019 12:51 PM IST

जल ही जीवन है इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि धरती पर सभी जीवित प्राणियों के लिए जल अमृत के समान है. जल के बिना धरती के किसी भी प्राणी का जीवन संभव नहीं है. हमारी धरती पर वैसे तो 70% जल है लेकिन मनुष्य, वन्य जीव और जानवरों के पीने लायक केवल 3 % ही जल है, जो कि हमें भूमिगत, नदियों, तालाबों और वर्षा के पानी से उपलब्ध होता है. अगर हम पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी का वितरण करे तो 1 % जल  झील, नदी, तालाब, कुंओ, बावड़ी और नालों  में  मौजूद है और 11% (800 क्यूबिक मी.) तक भूजल का उपयोग (घरेलू सिंचाई व औद्योगिक क्षेत्र में किया जाता है.) हम करते है और शेष 11 % (800 क्यूबिक मी.)  भूजल काफी नीचे के स्तर में है जिनका आने वाले समय में उपयोग किया जा सकता है. दूसरी ओर बाकि 77 % भाग बर्फ के रूप अंटार्कटिक उत्तर दक्षिणी पूर्वी, शीत कटिबंधीय देशी ग्रीनलैंड, आइसलैण्ड, साइबेरिया आदि से प्राप्त होता है. इसलिए हमें जितना हो सके उतना जल का संरक्षण करना चाहिए.  वैसे हमारा देश जल को पवित्रता की कसौटी पर हमेशा से पहले पायदान पर रखता आया है. नदी के पुल से गुजरते हुए उसमें तांबे के सिक्के अर्पण (डालना) करना, जल और नदी के प्रति आस्था का प्रतीक रहा है. जल को हाथों में लेकर हर एक पुण्य काम की शुरुआत  करना  और उसकी पूजा करना भी पानी से जुड़ाव को ही दर्शाता है. लेकिन वर्षा की कमी, भूमिगत जल के अतिदोहन और जल प्रदूषण के वजह से वर्तमान में भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे पंजाब, हरियाणा, दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी गुजरात व तमिलनाडु के समुद्र तटीय क्षेत्रों में भूमिगत जल के स्तर में काफी गिरावट दर्ज की गई है. जल संकट से वहां की  मानवता त्रस्त है, जो भविष्य के लिये हानिकारक है. भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से सदावाहिनी नदियां भी सूख रही हैं.

खेती बाड़ी में जल का इस्तेमाल ?

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, वर्ष 2000 में उपयोग किए गए कुल पानी का 85.3% अंश खेती-बाड़ी के काम में इस्तेमाल में लाया गया था. वर्ष 2025 तक इसके घटकर 83.3% तक रह जाने की संभावना है. केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारें,परंपरागत रूप से करदाताओं के धन को सिंचाई के लिए उदारता के साथ खर्च करती आई हैं. वित्त मंत्री ने 2016 के बजट में भारत में पानी की कमी वाले जिलों में 99 सिंचाई परियोजनाओं के लिए 86,500 करोड़ रुपये प्रदान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत की महत्वपूर्ण 140 मिलियन हैक्टेयर कृषि भूमि में से 48.6% की सिंचाई होती है. पंजाब और हरियाणा, उत्तराखंड तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेत, जहां सिंचाई की नहरों की बहुतायत है, वहां हिमालयी नदियों के पानी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है. इससे निचले हिस्से में पानी के प्रवाह में कमी आई है और नदियों के मैदानी इलाकों तक पहुंचते-पहुंचते पानी की कमी में इजाफा हुआ है. ऐसा नहीं है कि जल के अत्यधिक दोहन का समाधान उपलब्ध नहीं है. पानी की कमी वाला इजराइल जैसा देश, जहां जलवायु परिवर्तन की विकट परिस्थितियां हैं, आज वहां आवश्यकता से अधिक पानी मौजूद है. इजराइल ने पानी की राशनिंग करने जैसा अलोकप्रिय, लेकिन आवश्यक कदम उठाया तथा उपजाऊ क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर किसानों की उस साल की फसल चौपट हो गई. उस साल के दौरान, सिंचाई का तरीका भी बदल गया. इजराइल ने सिंचाई के लिए पुन:चक्रित (रीसाइकल्ड) और हल्के खारे पानी का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया. आज, इजराइल के 80% अपशिष्ट जल को खेतीबाड़ी के काम में लाने के लिए रीसाइकल्ड किया जाता है.

जल संरक्षरण का वैश्विक महत्व

हर साल 22 मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया तो जाता है. लेकिन आज भी लोग जल संरक्षण को लेकर उतने सचेत नहीं जितने होने चाहिए. विशव जल संरक्षण दिवस की नींव तीन आधारभूत बिंदुओं पर रखी गई थी

प्रत्येक वर्ष पूरा विश्व जल संरक्षण के प्रति जागरुकता.

पानी का व्यर्थ बहाव इस बात की ओर इशारा करता है कि यह नींव उतनी भी मजबूत नहीं जितनी होनी चाहिए. आज पूरा विश्व जल संरक्षण के मुद्दे पर एकजुट होकर खड़ा है क्योंकि जल ही जीवन है और यह जीवन जीने के लिए बुनियादी आवश्यकता है.

लेकिन इसके बावजूद हम लोग पानी को व्यर्थ करते हैं,जो दर्शाता है कि लोग अब भी उसके असली महत्व को समझ नहीं पाए हैं. हर साल जल संरक्षण दिवस के उपलक्ष्य में पानी बचाओ अभि‍यान से जुड़े कई जागरुकता कार्यक्रम और गतिविधि‍यां को उड़ान दी जाती है लेकिन कुछ समय बाद उस उड़ान के पर कटे मिलते हैं.

हालांकि इससे पहले 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की अनुसूची 21 में इसे आधिकारिक रूप से शामिल किया गया था. लेकिन बाद में 1993 से ही इसे एक उत्सव के तौर पर मनाया गया.

विश्व जल संरक्षण दिवस मनाने की शुरुआत  साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने की. जहां सभा में इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाए जाने की घोषणा की गई. जिसका प्रमुख उद्देश्य समाज में जल की आवश्यकता, उसके महत्व और संरक्षण के प्रति जागरुकता पैदा करना था. लेकिन इसके पश्चात् 22 मार्च का दिन विश्व जल संरक्षण के रूप में मनाए जाने के लिए तय  किया गया. जिसे  आज तक पूरे विश्व में मनाया जाता है.

जल के संरक्षण के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए विश्व जल संरक्षण दिवस एक सांकेतिक उपलक्ष्य है. पर यह तभी सार्थक हो सकता है जब हम जल के संरक्षण के असली महत्व को समझकर उसे अपने जीवन में शामिल करें और उसके प्रति आभारी रहें.

जल संरक्षण किसान कैसे करें ?

विज्ञान अब बहुत आगे बढ़ चुका है. इस समय बाजार में ऐसी कई तकनीक उपलब्ध है जिनके जरिए आसानी से यह पता लगाया जा सकता है कि खेत की सिंचाई के लिए कितने जल की आवश्यकता है. चूंकि सिंचाई प्रणाली में बदलाव लाना एक महंगा क़दम है.हालांकि ड्रिप सिंचाई से  50 -60 प्रतिशत पानी की बचत के साथ ही 35-40 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि एवं उपज के गुणवत्ता में सुधार सम्भव है. इस विधि से सिंचाई करने से पानी बर्बाद किये बिना पौधों की जड़ तक पानी पहुंचाया जा सकता हैं.

जल संरक्षण के लिए समान्य नागरिक क्या करें और क्या न करें ?

जल की महत्ता को देखते हुए राष्ट्रीय हित में  हमें 'जल संरक्षण' को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर जल संरक्षण हेतु कुछ  बेहद सरल और कारगर उपाय को अपनाने की जरुरत है-

क्या करें :-

पानी के नलों को इस्तेमाल करने के बाद बंद रखें .

2  मंजन करते समय नल को बंद रखें तथा जरुरत होने पर ही खोलें .

3 पोखर, तालाब जलाशयों का निर्माण करवाकर उसके रख-रखाव समुचित प्रबंध करें.

4 नहाने के लिए अधिक जल का इस्तेमाल न करें .

5  ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिसमें अधिक जल की खपत न हो .

6 खाद्य सामग्री तथा कपड़ों को धोने के दौरान नलो का खुला न छोड़े .

7 ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाये और वर्षा जल का संरक्षण करें.

8  अगर जल गंदा हो जाएं तो उसको कदापि नाली में न बहाएं बल्कि इसे अन्य उपयोगों जैसे -पौधों अथवा बगीचे को     सींचने अथवा सफाई इत्यादि में लाएं.

9 पानी की बोतल में अंततः बचे हुए जल को फेंके नही बल्कि उसका पौधों को सींचने में इस्तेमाल करें.

10 तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कूड़ा न फेंके .

11  नहाने के लिए बाल्टी में पानी भर कर स्नान करें.

12  वर्षा जल का (छत के माध्यम से ) एकत्रीकरण कर घर के कामों (कपड़े धोना, फर्श साफ करना, गाड़ी धोना के काम आ सकता है.) में इस्तेमाल करें.

क्या ना करें :-

1 पीने योग्य जल का व्यर्थ बहाव ना करें.

2 जल प्रदूषण रोकने के लिए कचरों को नदियों के जल में ना मिलायें .

3 वर्षा जल को गटर में ना बहने दें बल्कि एकत्रीकरण कर घर के कामों में इस्तेमाल करें.

4 पेड़ -पौधों की कटाई न कर, अधिक से अधिक पेड़ लगाएं.

English Summary: water conservation Demand of time world Water Day Need water for farming
Published on: 07 May 2019, 01:01 PM IST

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