सोयाबीन दलहनी फसल होने के बावजूद तिलहन की फसल मानी जाती है.वहीं सोयाबीन की उपज में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि हो सके, इसके लिए कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर अनुसंधान भी करते रहते हैं. इसी क्रम में देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अनुकूल सोयाबीन की 15 नई किस्मों का अनुसंधान किया गया है.
सोयाबीन की विकसित हुई 15 उन्नत किस्में (Developed 15 Improved Varieties of Soybean)
दरअसल अनुसंधान किए गए 15 नई किस्मों में से 8 किस्में ऐसी हैं जो मध्यप्रदेश सहित मध्य क्षेत्र के लिए अधिक उपज हेतु कारगर साबित होंगी. सोयाबीन की ये 8 किस्में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र इंदौर के अलावा मुरैना और रायपुर के केंद्रों पर विकसित की गई हैं.
सोयाबीन की उन्नत किस्में (Improved Soybean Varieties)
मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित की गई सोयाबीन की किस्मों (Recommended soybean varieties for Madhya Pradesh) में एनआरसी-130, एनआरसी-138, एनआरसी-142, आरवीएसएम 2011-35, एएमएस 100-39 और एमएसीएस-1520 शामिल हैं.
खरीफ सीजन में बीज मिलने की संभावना (Chances of getting seeds in Kharif season)
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, दलहन विकास निदेशालय भोपाल के निदेशक डॉ. एके तिवारी ने इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान केंद्र में सोयाबीन की इन उन्नत किस्मों को जारी किया. वहीं सोयाबीन की इन किस्मों का प्रामाणिक बीज किसानों को अगले वर्ष खरीफ सीजन में उपलब्ध होने की संभावना है.
सोयाबीन की फसल पर पड़ रहा विपरीत प्रभाव (Adverse effect on soybean crop)
इंदौर आए दलहन विकास निदेशक डॉ. एके तिवारी ने सोयाबीन के प्रदर्शन प्लांट तथा महू के विभिन्न गांवों में सोयाबीन की वर्तमान स्थिति की जानकारी ली. इस मौके पर उप संचालक कृषि एसएस राजपूत और भारतीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र की निदेशक डॉ. नीता खांडेकर और अन्य वैज्ञानिक मौजूद थे. डॉ. एके तिवारी ने अनुसंधान प्रक्षेत्र में लगाए गए सोयाबीन की फसल का अवलोकन कर वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की. चर्चा में यह तथ्य सामने आया कि विगत कुछ वर्षों से सोयाबीन की फसल पर मौसम का विपरीत असर हो रहा है. नतीजतन सोयाबीन के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है.
मार्च माह में विकसित हुई सोयाबीन की 15 उन्नत किस्में (15 improved varieties of soybean developed in the month of March)
इस मौके पर अनुसंधान संस्थान की निदेशक डॉ. खांडेकर ने कहा कि जलवायु की बदली हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सोयाबीन की जलवायु सहिष्णु और लचीली किस्मों और उत्पादन तकनीकी पद्धतियों के विकास के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र द्वारा पहले ही अनुसंधान किया जा रहा है. इसी वर्ष मार्च माह में विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अनुकूल कुल 15 नवीनतम किस्मों का अनुसंधान पूरा हुआ है.