उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के थारू बाहुल्य क्षेत्र पलिया तहसील में अब महिलाओं की जिंदगी बदलने का नया अध्याय लिखा जा रहा है. सरकार और सहकारी समितियों की पहल से यहां की महिलाएं रेशम उत्पादन से जुड़कर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ कर रही हैं. यह योजना महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो रही है.
रेशम उत्पादन से नए अवसर
थारू जनजाति की महिलाएं लंबे समय से खेती-किसानी और छोटे-मोटे रोजगार से जुड़ी रही हैं, लेकिन उनकी आमदनी सीमित रही. अब प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री रेशम विकास योजना ने उनके सामने नए अवसर खोले हैं. योजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को रेशम की खेती और कीट पालन से जोड़ा जा रहा है.इस योजना के तहत प्रत्येक किसान को अपनी आधा या एक एकड़ भूमि पर 1200 शहतूत के पौधे लगाने होंगे. पौधों की देखभाल के बाद उन्हें कीट पालन के लिए प्रशिक्षण, उपकरण और रेशम कीट पालन गृह उपलब्ध कराया जाएगा और खास बात यह है कि कुल लागत का 75 प्रतिशत अनुदान सरकार की ओर से दिया जा रहा है, जिससे महिलाओं को ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं उठाना पड़ रहा.
आठ समितियों का गठन
लखीमपुर खीरी में इस महत्वाकांक्षी परियोजना को सफल बनाने के लिए आठ सहकारी समितियों का गठन किया गया है. इन समितियों का नेतृत्व राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित आरती राना कर रही हैं. उनके मार्गदर्शन से महिलाओं को सही दिशा और प्रेरणा मिल रही है. समितियों के माध्यम से प्रशिक्षण, विपणन और उत्पादन की पूरी प्रक्रिया व्यवस्थित तरीके से संचालित की जा रही है.
उत्पादन में मिली बड़ी सफलता
योजना के पहले चरण में ही उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई है. जिले में पहली फसल से लगभग 31,000 किलोग्राम रेशम का उत्पादन हुआ, जबकि दूसरी फसल में 50,000 किलोग्राम उत्पादन की संभावना जताई जा रही है. अब तक जिले के 1050 से अधिक किसान इस योजना से जुड़ चुके हैं और अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर रहे हैं. यह संकेत है कि आने वाले समय में रेशम उत्पादन इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकता है.
प्रशिक्षण पर खास जोर
सफलता की कुंजी प्रशिक्षण में छिपी है. इसी को ध्यान में रखते हुए नवंबर माह में जिले के 25 किसानों को मिर्जापुर स्थित राज्य स्तरीय रेशम प्रशिक्षण संस्थान भेजा जाएगा. यहां उन्हें कीट पालन की बारीकियां, उत्पादन तकनीक और विपणन संबंधी ज्ञान दिया जाएगा और प्रशिक्षित किसान आगे स्थानीय स्तर पर अन्य किसानों व महिलाओं को भी मार्गदर्शन देंगे.
स्वरोजगार और महिला सशक्तिकरण
यह योजना केवल खेती तक सीमित नहीं है रेशम उत्पादन से जुड़ने वाली महिलाएं अब घर बैठे स्वरोजगार कर रही हैं. उनकी आय में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर रही है. इसके साथ ही महिलाएं अब निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी सक्रिय हो रही हैं, जिससे उनका सामाजिक सशक्तिकरण भी हो रहा है.सरकार का मानना है कि रेशम उत्पादन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा महिलाएं अपने परिवार की मदद करने के साथ-साथ समाज में प्रेरणादायक उदाहरण पेश करेंगी और इस साथ इस योजना में प्राथमिकता एनआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) और रेशम समितियों के सदस्यों को दी जा रही है. इससे अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़कर उन्हें संगठित और सक्षम बनाया जा रहा है.