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Updated on: 12 March, 2024 11:31 AM IST
चावल उत्पादन में पश्चिम बंगाल पिछड़ा

Rice Production: भारत में बड़े स्तर पर धान यानी चावल की खेती की जाती है. चावल उत्पादन के मामले में पश्चिम बंगाल टॉप पर आता है. लेकिन, इस बार पश्चिम बंगाल पिछड़ा गया है. पहले स्थान से खिसककर पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर आ गया है. जबकि, चावल उत्पादन में उत्तर प्रदेश ने अब नया आयाम स्थापित किया है. पश्चिम बंगाल को पछाड़ते हुए उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर पहुंच गया है. जिसकी बड़ी वजह है मौसम परिवर्तन और बेमौसम बारिश. पिछले साल इन वजहों से पश्चिम बंगाल में धान की फसल काफी प्रभावित हुई. जिसका खामियाजा अब पश्चिम बंगाल भुगत रहा है. उत्पादन में गिरावट के चलते पश्चिम बंगाल पहले स्थान से चौथे स्थान पर आ गया है.

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम फसल अनुमान के अनुसार, पश्चिम बंगाल, जो शीर्ष चावल उत्पादक राज्य हुआ करता था, 2023-24 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में चौथे स्थान पर खिसक गया है. हालांकि, भले ही बाद के अनुमानों में जायद (ग्रीष्मकालीन) फसल के उत्पादन को शामिल करने से इसकी स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन यह अब शीर्ष पर नहीं पहुंच पाएगा. आंकड़ों के मुताबिक, तेलंगाना हर साल अपने चावल उत्पादन संख्या में सुधार करके शीर्ष उत्पादक उत्तर प्रदेश से एक पायदान नीचे पहुंच गया है.

क्षेत्र, उत्पादन और उपज के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में चावल की उत्पादकता लगातार घट रही है. 2019-20 में राष्ट्रीय उत्पादन में 13.36 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ पश्चिम बंगाल 15.88 मिलियन टन (एमटी) के साथ शीर्ष उत्पादक था. यह 2023-24 में 9.3 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ 11.52 मिलियन टन तक फिसल गया है.

जबकि 2023-24 में, धान का रकबा 4.01 मिलियन हेक्टेयर (एमएच) था, अन्य 1 एमएच को गर्मी (जायद) सीजन के तहत कवर किया गया है, जो रबी के बाद और खरीफ सीजन से पहले है, जिससे कुल मिलाकर लगभग 5 एमएच हो गया है। 2019-20 में एकड़ 5.49 एमएच था.

वर्षा आधारित क्षेत्रों की समस्या?

कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में अन्य राज्यों की तुलना में जलवायु-लचीली किस्मों को अपनाना धीमा है और केंद्रीय पूल के लिए चावल की खरीद भी कम है. इसके अलावा, राज्य सिंचाई कवरेज के मामले में पश्चिम बंगाल उतना आगे नहीं बढ़ पाया है जितना कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए किया है. चूंकि पश्चिम बंगाल में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान अच्छी मात्रा में बारिश होती है. इस वजह से वहां धान का वर्षा आधारित क्षेत्र अधिक है.

आधिकारिक सूत्रों ने यह भी कहा कि सामान्य किस्म के धान की कम कीमत के कारण, अक्सर राज्य में किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बेचते हैं. उत्पादक बेहतर सुगंधित पारंपरिक किस्मों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां उपज आम तौर पर कम होती है. प्रीमियम मूल्य जोड़ने के इरादे से सरकार ने पिछले महीने पश्चिम बंगाल की पांच गैर-बासमती चावल किस्मों - गोबिंदभोग, तुलाईपंजी, कतरीभोग, कलोनूनिया और राधुनीपगल के लिए ग्रेडिंग और विपणन नियमों को अधिसूचित किया. 2022-23 में अखिल भारतीय खरीद 56.87 मिलियन टन की तुलना में पश्चिम बंगाल में चावल की खरीद 2.18 मिलियन टन (या 4 प्रतिशत से कम) थी.

विविधीकरण की आवश्यकता

दूसरी ओर, अखिल भारतीय चावल उत्पादन में तेलंगाना की हिस्सेदारी हर साल बढ़ रही है और यह 2023-24 में 16.03 मिलियन टन के साथ उत्तर प्रदेश की 13.16 प्रतिशत हिस्सेदारी के मुकाबले 16.03 मिलियन टन के उत्पादन के साथ 12.94 प्रतिशत तक पहुंच गई है. 2019-20 में 6.25 फीसदी हिस्सेदारी के साथ तेलंगाना छठे नंबर पर था.

कृषि अर्थशास्त्री एसके सिंह के मुताबिक, "पंजाब और हरियाणा में पानी की कमी के कारण धान से विविधीकरण की आवश्यकता अधिक है, जबकि अगर किसान अन्य फसलों की ओर रुख करते हैं तो तेलंगाना, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल मिलकर उत्तरी राज्यों में उत्पादन के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. हालांकि, सरकार को पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित करना होगा क्योंकि उत्तर में विविधीकरण लक्ष्य पूरा होने के बाद चावल उत्पादन में कोई भी गिरावट देश के लिए अच्छी नहीं होगी."

English Summary: UP dominates in rice production West Bengal lags behind know the condition of other states
Published on: 12 March 2024, 11:32 AM IST

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