मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उमरिया जिले को महुआ के बहुतायत में उत्पादन को देखते हुए महुआ उत्पाद के लिए एक जिला-एक उत्पाद के रूप में चिन्हित किया गया है। महुआ जिसका वानस्पतिक नाम मधुका लॉहगीफोललया है, यह एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जिसका मूल भारत में पाया जाता है। हमारे देश के लगभग सभी स्थानों पर महुआ पाया जाता है, इसके फूल, फल, बीज व लकड़ी सभी चीजें काम में आती हैंl
महुआ के फूल को पशु, पक्षी व मनुष्य सभी चाव से खाते हैंl फूल सूखे व गीले दोनों रूपों में प्रयोग किया जाता हैl उमरिया जिले के वनांचल क्षेत्र में महुआ के पेड़ को महुआदेव का दर्जा प्राप्त है। वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज सहित अन्य समाजों में महुआ का उपयोग खाद्य एवं पेय पदार्थ के रूप में कालांतर से होता आ रहा है। वन क्षेत्रों में अनाजों का अधिक उत्पादन नहीं होने के कारण लोग महुआ के व्यंजन बनाकर खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग करते रहे हैं। इसके साथ ही महुआ के फूल एवं महुआ के फल डोरी का संकलन कर परिवार संचालन हेतु अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हें बेचकर करते आ रहे हैं। वनवासी जन-जीवन में महुआ का सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अत्याधिक महत्व रहा है। महुआ का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है। महुआ के फूल को उबालकर खाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में डोभरी कहते हैं। महुआ के फूल को कूटकर तिल एवं अलसी के साथ मिलाकर लड्डू बनाए जाते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में लाटा के नाम से जानते हैं। यह लाटा लंबे समय तक सुरक्षित एवं संरक्षित रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि महुए के रस में शुगर फ्री गुण पाया जाता है। आज जैविक उत्पादों के उपयोग का प्रचलन बढ़ा है ऐसे समय में महुए का फूल स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है। उमरिया जिले में महुआ के पेड़ों एवं उत्पादन की बहुलता एवं इसकी पोषकीय एवं रोजगारोन्मुखी संभावनाओं को देखते हुए इसे एक जिला-एक उत्पाद कार्यक्रम के अंतर्गत चिन्हित किया गयाl जिले में जीविकोपार्जन हेतु फसलोत्पादन के पश्चात महुआ का द्वितीय स्थान हैl जबकि उद्यानिकी एवं पशुपालन का क्रमशः 5वां एवं 6वां स्थान हैl वर्तमान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रयासों से उमरिया जिले के महुआ बाहुल्य इलाकों में स्वयं सहायता समहूों का गठन कर महुआ के फूलों के प्रसस्ंकरण एवं मूल्य संवर्धन का प्रयास किया जा रहा है l जिससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिले साथ ही महुआ युक्त उत्पादों के उपयोग से कुपोषण सम्बंधित समस्या का निदान हो सकेl इस सम्बंध में कृषि विज्ञान केंद्र उमरिया द्वारा भी सतत् प्रयास किये जा रहे हैंl
केंद्र द्वारा महुआ के फूल का सग्रंहण ग्रीन नेट में करने की तकनीक उपलब्ध करायी गयी है, जिससे अच्छी गणुवत्ता का महुआ एकत्रित हो सकेl महुए को सुखाने के लिए पॉली टनल एवं भंडारण के लिए सेफ बैग के विषय में भी बताया जा रहा है l समूह की महिलाओं को समय-समय पर महुए के मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिसमें- बिस्किट, केक, लड्डू, अचार, बर्फी आदि प्रमुख हैंl जिले के कलेक्टर के माध्यम से उमरिया के मानपुर ब्लॉक के गुरुवाही गााँव में महुआ के फूल के प्रसंकरण इकाई की स्थापना की गयी है l जहाँ आज स्वयं सहायता समहू द्वारा महुआ के बिस्किट बनाये जा रहे हैं। बिस्किट बनाने के लिए पहले महुआ को साफ़ किया जाता है फिर धीमी आंच पर भुना जाता है। महुआ को ठंडा कर के उसे मिक्सी में पीसकर उसका पाउडर तैयार किया जाता है, साथ ही उसमे घी एवं शक्कर को मिलाया जाता है। घी और शक्कर के अच्छे से मिलने के बाद अब इसमें वनीला एसेंस, महुआ पाउडर, बेकिंग पाउडर, आटा एवं मैदा डालकर फिर से मिलाया जाता है।
ये भी पढ़ेंः महुआ फूलों के निर्यात से होगा किसानों को अधिक लाभ
मिश्रण तैयार हो जाने के बाद टेबल पर रखकर रोटी के समान बेलकर बिस्किट के आकर में काटकर ओवन में बेक करने के लिए रख दिया जाता है। स्वयं सहायता समहूों के द्वारा वहां तैयार महुआ उत्पादों का बांधवगढ टाइगर रिज़र्व में एन आर एल एम के द्वारा स्थापित आजीविका मार्ट, मेलों, प्रदर्शनियों आदि के माध्यम से विक्रय किया जा रहा हैl महुआ उत्पादों का प्रचार-प्रसार विभिन्न तकनीकी मंचों, कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षणों आदि के द्वारा किया जा रहा है.