किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक करने के लिए बुधवार और गुरुवार को राजस्थान के झालावाड़ कृषि विज्ञान केंद्र पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान किसानों को प्राकृतिक खेती से जुड़ी जानकारी प्रदान की गई और उन्हें प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित किया गया. कार्यक्रम में 40 कृषकों ने भाग लिया. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ. टी.सी. वर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती स्थानीय उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर आधारित होती है. इस खेती के माध्यम से धरती मां के स्वास्थ्य सुधार के साथ उससे उत्पादित अनाज व चारा भी पौष्टिकता से परिपूर्ण होता है. अतः स्वस्थ धरा से ही "स्वस्थ समाज व स्वस्थ राष्ट्र" के निर्माण की परिकल्पना की जा सकती है.
कार्यक्रम के दौरान डॉ. एम.एस. आचार्य, पूर्व अधिष्ठाता, उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, झालरापाटन ने "प्राकृतिक खेती: एक दृष्टि में" विषय पर अपने विचार रखे. साथ ही प्राकृतिक खेती में उपयोग किए जाने वाले विमिन्न घटकों को बनाने की विधियों पर भी प्रकाश डाला एवं प्रायोगिक तौर से बनाने की विधि भी बताई. इनके उपयोग से मृदा में जीवांश पदार्थ की आपूर्ति निरन्तर बनायी जा सकती है, जिससे मृदा स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रमाव दिखाई देता है. साथ ही मृदा स्वास्थ्य एवं श्रीअन्न के सम्बस्ध में भी विस्तार से चर्चा की.
वहीं, कैलाश चन्द मीणा, संयुक्त निदेशक (कृषि विस्तार), कृषि विभाग, झालावाड़ ने प्राकृतिक खेती पर सरकार द्वारा संचालित योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इन योजनाओं के माध्यम से किसान अपनी खेती किसानी में नवाचार कर सकते है तथा मृदा स्वास्थ्य सुधार के लिए विभिन्न प्रकार की आधुनिक तकनीकों को प्राकृतिक खेती से जोड़ते हुए खेती कर सकते है.
इस दौरान प्रशिक्षण प्रभारी एवं केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. सेवा राम रूण्डला ने 2 दिवसीय प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस प्रशिक्षण को सैद्धान्तिक व प्रायोगिक कालांशों के माध्यम से करवाया गया. इस खेती में संश्लेपित रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि प्राकृतिक खेती के प्रमुख स्तम्भों जैसे बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामूत, पलवार, वापसा, गौ मूत्र, नीमास्त्र, ब्रह्मास्व बानस्पतिक काढ़ा, हरीखाद आदि का अनुप्रयोग किया जाता है.
प्रायोगिक सेशन के माध्यम से किसानों को इन घटकों को बनाने की सजीव विधि प्रदर्शन किया गया तथा किसानों ने स्वयं भी बीजामूत व जीवामृत बनाया. इन घटकों के माध्यम से कृषिगत लागतों में कटौती होने के साथ मानव, पशु, पर्यावरण, जल, जंगल की गुणवत्ता एवं मृदा स्वास्थ्य में सकारात्मक सुधार होता है. मृदा व जल जांच को महत्व व उपयोगिता के बारे में समझाया एवं जांच उपरान्त मृदा स्वास्थ्य कार्ड में दी गई सिफारिशों एवं मानकों को प्राकृतिक खेती में शामिल कर बेहतरीन तरीके से मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन किया जा सकता है. जिससे मृदा लम्बे समय तक बिना किसी हास के लगातार टिकाऊ कृषि उत्पादन देने के लिए तैयार रहती है. दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के किसानों को खेती से जुड़ी कई अहम जानकारियां प्रदान की गई.