भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के गुरुग्राम के शिकोहपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मशरूम उत्पादन तकनीकी पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें 25 पुरुष एवं महिला प्रक्षिणनार्थियों ने भाग लिया. प्रशिक्षण कार्यक्रम के कोऑर्डिनेटर डॉ. भरत सिंह ने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन आईटीसी मिशन, सुनहरा कल के अंतर्गत एफप्रो संस्था के सहयोग से किया गया, जिसमें तावरु खंड मोहम्मदपुर, सराय, कोटा, दादूपुर, सूंद आदि गांवों के 25 पुरुष व महिलाओं ने मशरुम उत्पादन की तकनीकों पर प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिससे कि वे कृषि कार्यों के साथ मशरूम की खेती कर अपनी फार्म आमदनी में वृद्धि कर सकें.
प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों को मशरूम ग्रह निर्माण, कंपोस्ट एवं केसिंग मिट्टी तैयार करने की विधि, इसके निर्जलीकरण, मशरूम ग्रह में नमी व तापक्रम प्रबंधन, स्पानिंग इत्यादि तकनीकों के साथ साथ, मशरूम हार्वेस्टिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग की विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई.
इस दौरान विशेषज्ञ डॉ. भरत सिंह ने कहा कि मशरूम की खेती के लिए कम लागत से मशरूम ग्रह तैयार कर प्राकृतिक रुप से मौसम आधारित वर्ष में 2-3 बार मशरूम की खेती की जा सकती है, जबकि उच्च तकनीकी युक्त मशरुम गृह निर्माण कर वर्ष में 4-5 बार मशरूम फसलें जैसे श्वेत बटन मशरुम, ढिंगरी मशरुम, दूधिया मशरुम की फसलें लगाकर आमदनी अर्जित की जा सकती है. कम लागत से मशरुम गृह बनाने के लिए समतल तथा ऊंची उठी हुई जगह, जहां पर पानी का भराव न होता हो वहां पर फसलों के अवशेषों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, धान सरकंडा/मूंज के सूखे पूलों व फूंस से झोंपड़ीनुमा ढांचा बनाकर उसके अंदर अलग-अलग ऊंचाइयों पर बांस, पॉलीथीन व सुतली का इस्तेमाल कर 3-5 सतहों के रैक तैयार किए जाते हैं जिन पर गेंहू, जौ या धान के भूसे बनी मशरुम कंपोस्ट में मशरुम बीज जिसे स्पॉन कहते है उसे मिला दिया जाता है.
अब इसे साफ कागज या पारदर्शी व पतली पॉलीथीन से 10-12 दिनों के लिए ढक दिया जाता है जिसमें पूरी तरह मशरुम जाल/ माइसीलियम फैल जाने पर विषेश रूप से तैयार की गई केसिंग मिट्टी 1-1.5 इंच ऊपर से चढ़ा दी जाती है. इस प्रक्रिया के 12-15 दिन बाद विशेष रूप से श्वेत बटन मशरुम कटाई कर उपज एवं आमदनी प्राप्त होने लगती है. श्वेत बटन मशरुम की खेती के लिए सितंबर से फरवरी तक का मौसम अनूकूल रहता है. अलग-अलग मौसम में मार्केट में मशरूम के भाव में उतार चढाव जो कि 100 रुपए से लेकर 400 रुपए प्रति किलोग्राम या इससे भी अधिक देखा जा सकता है, जबकि वर्षभर मार्केट में ताजा मशरुम की हमेशा मांग बनी रहती है. ठीक उसी तरह ढिंगरी एवं दूधिया मशरुम की खेती से भी मांग व मार्केट की आवश्यकतानुसार उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
केंद्र की अध्यक्षा एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनामिका शर्मा ने प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों से प्रशिक्षण के उपरांत एक छोटी या बड़ी मशरुम यूनिट की स्थापना कर इस व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रेरित किया जिससे कि प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों की आमदनी में वृद्धि हो सके. प्रशिक्षण के समापन के अवसर पर नूह जिले के जिला उद्यान अधिकारी डॉ दीन मोहम्मद और जिला गुरुग्राम की जिला उद्यान अधिकारी डॉ. नेहा यादव ने प्रतिभागियों को प्रशस्ति प्रमाण पत्र प्रदान किए.
उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा दी जा रही योजनाओं के बारे में भी किसानों को बताया और किसानों को विभाग से मिलने वाली योजनाओं का लाभ उठाने हेतु प्रेरित किया. कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र शिकोहपुर के डॉ गौरव पपनै ने कार्यक्रम का संचालन किया. कार्यक्रम में राम सेवक, बी एल मीना, डॉ कविता बिष्ट, डॉ नेहा, बिजेंद्र, राघवेन्द्र, लक्ष्मी नारायण यादव, 9 कृषि स्नातक अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के साथ–साथ 25 से ज्यादा किसानों ने प्रतिभाग किया.