जून माह किसानों के लिए खुशियां लेकर आया है. दरअसल, इस महीने में देश के करीब 200 से अधिक किसानों को तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजन के हिस्से से रूप में पारंपरिक कृषि (Traditional Agriculture) पद्धतियों और साथ ही पशु आयुर्वेद (Animal Ayurveda) पर भी प्रशिक्षित करने का मौका दिया जा रहा है. ताकि वह समय पर लाभ प्राप्त कर सकें.
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस आयोजन में कीटों को नियंत्रित करने के लिए स्टार्च और पशु मूत्र के उपयोग के बारे मे बताया जाएगा. किसान भाइयों के लिए यह भारतीय पारंपरिक कृषि मेला (Indian Traditional Agriculture Fair) असम के तेजपुर विश्वविद्यालय में आयोजित किया जाएगा. आइए इस आयोजन में किसानों के लिए क्या-क्या होगा और किसी तरह से इन्हें मदद मिलेगी.
बताया जा रहा है कि इस आयोजन का उद्देश्य किसानों को रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के विकल्पों को समझने में मदद करना है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने इसे वैज्ञानिक आधार न होने के कारण खारिज कर दिया है. लेकिन इसके अलावा किसानों को निम्नलिखित कार्य के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी.
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नई दिल्ली स्टार्च और पशु मूत्र का छिड़काव (Animal Urine Spraying) करके और सब्जियों पर गाय के गोबर की राख छिड़ककर कीटों को नियंत्रित करना.
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गोभी को कीड़ों से बचाने के लिए राख और गोमूत्र मिलाकर छिड़कना.
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टमाटर को सुरक्षित रखने के लिए साइनोडोन घास की पत्ती (Cyanodon Grass Leaf) के अर्क का उपयोग करना.
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पशुओं में खुरपका और मुंहपका रोग के इलाज के लिए बबूल और जामुन की छाल के अर्क का उपयोग करना.
इस दिन तक जारी रहेगा यह समारोह
असम के तेजपुर विश्वविद्यालय (Tezpur University of Assam) में यह भारतीय पारंपरिक कृषि मेला 4 जून से शुरु हो गया है, जो कि 6 जून, 2023 तक जारी रहेगा. मिली जानकारी के मुताबिक, इस कार्यक्रम में कृषि पराशर पर एक दिवसीय कार्यशाला भी शामिल है, जो विभिन्न हिस्सों में किसानों द्वारा अपनाई गई कृषि और प्रथाओं पर एक प्राचीन संस्कृत पाठ है. इसके अलावा इसमें भारतीय कृषि परंपराओं से संबंधित विषयों पर सत्र आयोजित करने वाला दो दिवसीय कार्यक्रम भी आयोजित है.
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के बारे में...
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) ने 100 से भी अधिक पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया है, जिसमें लगभग 85% से अधिक प्रथाएं अभी भी प्रभावी हैं. यह संस्थान की मदद से किसानों को उन्नत कृषि की जानकारी मिलने में मदद मिलेगी. देखा जाए तो यह भी सूचना किसानों तक पहुंचने के बाद कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से बचने में मदद मिलेगी और मिट्टी की उर्वरता और उपयोगिता बढ़ाने के तरीके विकसित होंगे.