उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज कृषि, मत्स्य व पशुपालन मंत्री वीरेन्द्र कंवर द्वारा किसानों के लाभ के लिए पिछले दिनों एक योजना की शुरुआत किया गया. योजना के राज्य के जलाशयों में मछली के बीज डालने की योजना को शुरू किया गया. इस योजना की शुरुआत लगभग 17 लाख रूपये लागत का सिल्वर कार्प मछली का 6 लाख 64 हजार 118 बीज कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र के अंदरौली में गोबिंदसागर झील में डालकर किया गया. वहीं मंत्री ने बीज डालते हुए कहा कि आगे अन्य क्षेत्रों में भी मछली का बीज डाला जाएगा जिसमें चमेरा डैम, पौंगडैम, रंजीत सागर सहित अन्य जलाशयों के नाम शामिल हैं.
मंत्री ने कहा कि देश के लगभग सभी राज्यों में मछली पालन को बढ़ावा दिया जाने का काम किया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के जलाश्यों में भी मछली के बीज डालने के कार्य को स्वीकृति मिली है जिसकी लागत एक करोड़ पांच लाख रुपए है. वहीं इसकी शुरुआत ऊना जिले से किया गया है. मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मछुआरों को लाभ दिलाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना आरंभ किया गया है. उन्होंने आर्थिक पैकेज के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इसमें मछली पालन के लिए भी राशि निर्धारित किया गया है जो लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का है.
वीरेंन्द्र कंवर ने कहा कि प्रदेश में मत्स्य विभाग के द्वारा लगभग 15 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन किया जाता है. हिमाचल प्रदेश में कार्य कर रहे 58 मत्स्य सहकारी सभाओं के बारे में भी उन्होंने जानकारी दिया. उन्होंने कहा कि इनमें से 34 सहकारी सभाओं द्वारा गोबिंदसागर झील में मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है और इससे लगभग 2500 परिवारों को स्वरोज़गार मुहैया हो रहा है और वो इस कार्य से जुड़े हुए हैं. उन्होंने कहा कि मछली की अन्य किस्मों जैसे कतला, रोहू, मृगल इत्यादि अन्य मछलियों के बीज भी जलाश्यों में डाले जाएंगे.
हिमाचल प्रदेश में मछली पालन अब बड़े पैमाने पर किसानों के द्वारा किया जाने लगा है. पिछले कुछ वर्षों में राज्य में मछली पालन से जुड़े परिवारों की आय में भी वृद्धि देखी गयी है. वर्तमान समय की अगर बात करें तो प्रदेश में लगभग 10893 परिवार मत्स्य पालन से जुड़े हुए हैं. प्रदेश में नदियों की लंबाई लगभग 3000 किमी की है. राज्य में मछलियों को बाजार तक पहुंचाने के ले मोबाइल वैन का भी उपयोग किया जाता है.