दुनिया के कई देशों के अलावा भारत में भी बकरीद मनाया जाता है. यह त्यौहार रमजान के पाक महीने के खत्मो होने के लगभग 70 दिनों बाद आता है. त्याग, समर्पण एवं भाई-चारे के प्रतीक बकरीद के पर्व पर बकरे की कुर्बानी देने की प्रथा हज़ारों सालों से है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों हम बकरीद मनातें हैं और क्यों इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. क्या इसके पीछे भी कोई कहानी है. चलिए आपको बताते हैं आखिर क्यों बकरीद मनाया जाता है और क्या है बकरे की कुर्बानी देने के पीछे का तर्क.
बकरीद जीवन जीने का सलीका सिखाती है
फर्ज-ए-कुर्बान के नाम से जाना जाने वाला बकरीद का दिन सदैव गरीबों, असहायों एवं पीछड़ों के प्रति प्रेम, दया एवं स्नेह का भाव रखने की सीख देता है. इस्लाम में कहा गया है कि गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखा जाना चाहिए. इस त्यौहार में कुर्बानी के बाद गोश्त तीन हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमे से एक हिस्सा मुस्लिम खुद रखते हैं, जबकि शेष दोनों हिस्सों को गरीबों एवं समाज के कमजोर तबके में बांट देते हैं.
बकरीद क्यों मनाया जाताहै
इस्लाम को मानने वालों के लिए बकरीद का त्यौहार अपने आप में खास होता है. इस्लाीमिक मान्यताओं के मुताबिक अपने बेटे हजरत इस्माइल को हजरत इब्राहिम इसी दिन खुदा के हुक्म पर कुर्बान करने जा रहे थे. उन्होंने अल्लाह के पाक रास्ते को सत्य मानते हुए सभी तरह के मोह बंधनों को तोड़ दिया एवं कुर्बानी को तैयार हो गए कि तभी अल्लाह को उनके नेक जज्बे पर रहम आ गया और उन्होंने उनके बेटे को जीवनदान दे दिया. इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की कुर्बानी बंद हो गई और जानवरों की कुर्बानी देकर प्यार और अमन का संदेश दिया जाने लगा.
कुर्बानी क्यों दी जाती है
कुर्बानी देते वक्त हजरत इब्राहिम ने सोचा कि कहीं उनकी भावनाएं आड़े ना आ जाए और इसलिए उन्होंने अपनी आखों पर पट्टी बांध ली. लेकिन जब उन्होंने अपनी पट्टी हटाई तो अल्लाह का करिश्मा देखा. उनका बेटा जीवित था. उस वक्त बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला एक प्रकार का भेंड़) वहीं पड़ा था.
बत तभी से बकरीद पर कुर्बानी देने की प्रथा चलती आ रही है. इस दिन को इस्लाम धर्म में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है.