उत्तर भारत हर साल धुंध की मोटी परत की चपेट में आता रहा है, क्योंकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना (Stubble Burning) बेरोकटोक जारी रहती है, जो इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण (Air Pollution) के उच्च स्तर को तेज़ी से बढ़ा रहा है. खराब वायु गुणवत्ता ने कई बार दिल्ली और आसपास के शहरों में अधिकारियों को कार्यालय बंद करने पर मजबूर किया है. इसलिए आज हम कुछ ऐसे कदम के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें अगर उठाया जाए तो पराली के प्रदूषण पर विजय हासिल (Ways to Stop Stubble Burning) की जा सकती है.
पराली और परेशानी (Stubble and Trouble)
बता दें कि पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है. 2019 में, देश में सभी मौतों में से 20 प्रतिशत वायु प्रदूषण के कारण हुई थी. फसल अवशेष जलाने से भारत के कुल वायु प्रदूषण में 15 प्रतिशत का योगदान होता है. और इसको रोकने के लिए व्यावहारिक, प्रभावी और टिकाऊ समाधान खोजना जरूरी है.
पराली का समाधान (Stubble Burning Solution)
पराली जलाने को कम करने के लिए कई नए उपाय विकसित किए गए हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute) ने एक सूक्ष्म जीव (Microbe) विकसित किया है, जो सड़न को तेज करता है और 25 दिनों के भीतर पराली को खाद में बदल देता है. खास बात यह है कि इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार (Soil Quality Improvement) होता है.
बता दें कि कई वैज्ञानिकों का कहना है कि "पश्चिमी भारत-गंगा के मैदान में किसानों को कम चावल उगाना चाहिए. सीधे शब्दों में कहें तो अगर किसान चावल के अलावा अन्य फसलें उगाते हैं, तो पराली जलाने की कोई जरूरत नहीं होगी.
हरित क्रांति कैसे है पराली का समाधान (How Green Revolution is the Solution to Stubble Burning)
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यह एक क्रांतिकारी योजना है, जिससे एक जरूरी बदलाव हो सकेगा. भारत-गंगा के मैदान पर अधिक मात्रा में चावल-गेहूं की फसल (Rice-Wheat Crop) होती है, जिसके चलते हरित क्रांति (Green Revolution) को लाया गया है. इसमें कम परिपक्वता समय के साथ अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की शुरूआत ने एक ही वर्ष के भीतर एक ही खेत में चावल और गेहूं दोनों उगाना संभव बना दिया है. इससे पहले, भारत-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में किसान गेहूं उगाते थे और पूर्व में चावल उगाते थे.
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पश्चिमी भारत-गंगा के मैदान में चावल की शुरूआत ने भारत को अपनी आबादी की जरूरतों को पूरा करने में मदद की है. समय के साथ, चावल-गेहूं फसल पैटर्न (Rice-Wheat Cropping Pattern) ने इस क्षेत्र में भूजल स्रोतों के अति प्रयोग को बढ़ावा दिया है.
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इसके अलावा, वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकारों के प्रयासों का समर्थन करने के लिए और फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए मशीनरी पर सब्सिडी देने का फैसला किया गया है.
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इस योजना के तहत किसानों को चिन्हित फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी (Crop Residue Management Machinery Subsidy) की खरीद के लिए मशीनरी की लागत का 50% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
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इस परियोजना के लिए कई कस्टम हायरिंग सेंटर (Custom Hiring Centre) स्थापित किए गए हैं और इन चार राज्यों के सीएचसी और व्यक्तिगत किसानों को कुल 95 लाख से अधिक फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों की आपूर्ति की गई है.