मौजूदा साल खत्म होने की कगार पर है और नया साल दस्तक दे रहा है. जैसे-जैसे यह नया साल करीब आ रहा है, लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां भी बढ़ती जा रही हैं और साथ ही बढ़ रहा है चुनावों का गणित. सभी राजनीतिक दल अपने मुफीद मुद्दों को तय करने में जुटे हैं. इन मुद्दों में सबसे अहम मुद्दा किसानों का है. हाल ही में आए पांच राज्यों के चुनवी परिणामों ने इस मुद्दे को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है. केंद्र सरकार पर भी किसानों के हित में फैसले लेने का चौतरफा दबाव बन रहा है. इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए कई विकल्पों पर विमर्श किए जा रहे हैं. इस क्रम में सरकार छोटे किसानों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.
सरकार की ओर से छोटे, मंझोले और बंटाई पर खेती करने वाले किसानों को राहत देने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए अलग से एक नई रणनीति बनाई जा रही है. जानकारों की मानें तो इस नीति के लागू होने से बंटाई किसानों को बैंक से कर्ज मिल सकेगा. साथ ही सरकार किसानों को ऐसे फायदे देने पर विचार कर रही है जिससे किसानों को तुरंत फायदा मिल सके. इसके लिए सरकार किसानों को कर्ज देने और प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना में जरुरी बदलाव करने पर विचार कर रही है. खबरों के अनुसार, नीति आयोग ने एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसके मुताबिक ऐसे किसानों को भी आर्थिक सहायता की जरुरत है जिनके पास अपनी जमीन नहीं है लेकिन वे जमीन के एक बड़े हिस्से पर खेती करते हैं. ऐसे किसानों को राहत देने के लिए सर्टिफिकेट और बैंक ट्रांजेक्शन हिस्ट्री को आधार बनाया जा सकता है.
किसानों का बायोडाटा तैयार
ऐसे किसानों की जानकारी जुटाना सरकार के लिए अब आसान हो गया है. पहले सरकार के पास ऐसे किसानों को कर्ज देने का कोई आधार नहीं था लेकिन देश में चल रही कृषि से संबंधित अलग-अलग वित्तीय स्कीमों के चलते अब किसानों की भी क्रेडिट हिस्ट्री तैयार हो गई है. वित्त और कृषि मंत्रालय इस नई नीति योजना पर मिलकर काम करेंगे. कृषि मंत्रालय फ़िलहाल, उन स्कीमों से जुड़ी जानकारी इकठ्ठा कर रहा है. साथ ही इस बात का भी अध्ययन किया जा रहा है कि इन स्कीमों का फायदा छोटे तथा मँझोले किसानों को किस तरह मिल सकता है. इसके लिए सभी संभावित रास्तों पर विचार किया जा रहा है.
इसलिए किसानों पर फोकस
2019 लोकसभा चुनाव में अब छह माह से भी कम वक्त रह गया है. आम चुनावों के परिणाम काफी हद तक देश की ग्रामीण आबादी के रुख पर निर्भर करते हैं. आगामी चुनाव भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रहेंगें और ग्रामीण मतदाता ही देश की अगली सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे क्योंकि लोकसभा की 542 सीटों में से महज 55 सीटों पर शहरी आबादी चुनावी परिणाम को निर्धारित करती है. शेष 487 सीटों पर ग्रामीण मतदाता ही अहम किरदार अदा करते हैं.
सनद रहे कि देश में उन किसानों की संख्या अधिक है जिनके पास जमीन कम है या भूमिहीन हैं और वे अपनी जीविका चलाने के लिए किराये पर जमीन लेकर खेती करते हैं. मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से इन किसानों को बैंक लोन की सुविधा से वंचित रहना पड़ता है क्योंकि बैंक से लोन उसी सूरत में मिलता है जब किसान के पास जमीन और उससे जुड़े कागजात हों. साधारण शब्दों में कहें तो बिना किसी गारंटी दस्तावेज के कृषि ऋण नहीं मिल पाता है. ऐसे में किसानों का एक बड़ा वर्ग अपनी कृषि जरूरतों के लिए बैंक से लोन नहीं ले पाता है.