आपने करिश्माई शख्स दशरथ मांझी के बारे में तो जरूर सुना ही होगा. जी हां, वही दशरथ मांझी जिन्होंने छैनी-हथौड़ी से पहाड़ काटकर उसमें से रास्ता बना दिया था. आज भी लोग उनकी लगन और परश्रिम की कहानी सुन कहते हैं कि दशरथ की तरह मेहनती कौन हो सकता है? जवाब है मध्य प्रदेश के अगरोठा गांव की महिलाएं.
पहाड़ काटकर निकाला पानी का रास्ता
प्रदेश के छतरपुर जिले में बसा अगरोठा गांव इन दिनों चर्चाओं में बना हुआ है. यहां की महिलाओं ने दशरथ मांझी की तरह छैनी-हथोड़ी से ही पहाड़ काटकर, उसमें से जल का श्रोत खोज निकाला है. उनके इस कदम से न सिर्फ गांव में पीने का पानी पहुंचा है, बल्कि विकास का मार्ग भी खुल गया है.
मिला भगीरथी का खिताब
प्रदेश में इन महिलाओं को लोग भगीरथी का खिताब दे चुके हैं, क्योंकि उन्हीं के कारण गांव में आज लबालब पानी से भरा तालाब है. इतना ही नहीं, आज यहां पानी की व्यवस्था होने की वजह से गांव में हर तरह की फसलों की खेती हो रही है, किसी को भी सिंचाई की चिंता नहीं है, और ना ही मवेशियों के लिए पानी कमी.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, बुंदेलखंड पैकेज के तहत अगरौठा के पास से तालाब तो गुजर गया, लेकिन बीच में पहाड़ के आ जाने से गांव वाले उसके पानी से वंचित रह गए. इस बारे में गांव के लोगों ने बार-बार शासन और प्रशासन को अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. आखिरकार गांव की महिलाओं ने ही पानी को क्षेत्र तक लाने का मोर्चा संभाल लिया.
300 से अधिक महिलाओं ने संभाला मोर्चा
इस काम के लिए गांव और आस-पास क्षेत्रों की 300 महिलाएं आगे आई, पहाड़ को काटने का फैसला हुआ. धीरे-धीरे काम शुरू किया गया. पहले पहल तो लोगों ने उनकी हंसी उड़ाई लेकिन बाद में मदद को आगे भी आए. अंततः 18 महीनों के बाद गांव की महिलाओं को कामयाबी मिली और वो तालाब को अपने क्षेत्र तक लाने में सफल रही. प्रदेश में लोग उन्हें जल सहेली के नाम से भी संबोधित कर रहे हैं.
करना पड़ा कई दिक्कतों का सामना
इस काम के लिए महिलाओं को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अधिकतर महिलाओं का गुजारा दैनिक मजदूरी से होता था, इस काम को करने के लिए उन्हें मजदूरी से हाथ धोना पड़ा. कई घरों की हालत इतनी खराब हो गई कि दवा-दारू को भी पैसों का अभाव हो गया. लेकिन वो कहते हैं न कि एकता में बल है, इसी बल के कारण आज अगौठा गांव में पानी किल्लत दूर हुई.