कैंसर की रोकथाम के लिए दुनियाभर के वैज्ञानक दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. इसी बीच भारतीय वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है. वैज्ञानिकों ने चावल की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर मारक क्षमता का पता लगाया है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक चावल की इन तीन किस्मों को गठवन, महाराजी और लाइचा के नाम से जाना जाता है, जो मुख्य तौर पर छत्तीसगढ़ में उगाई जाती है.
मुंबई के वैज्ञानिकों द्वारा गठवन, महाराजी और लाइचा प्रजातियों पर संयुक्त शोध किया गया, जिसमें हैरान कर देने वाले सच सामने आए हैं. शोध में पाया गया है कि चावल की ये तीनों प्रजातियां कैंसर से लड़ने में सहायक हैं. इनमें औषधीय गुणों का भंडार है, जो अन्य कई तरह की बीमारियों से भी शरीर की रक्षा करती है.
ये तीनों किस्में शरीर की अन्य कोशिकाओं को बिना प्रभावित किए फेफड़े और स्तन कैंसर के इलाज में सहायक हैं. शोध में पाया गया कि लंग्स कैंसर के मामले में गठवन धान 70 प्रतिशत कारगर साबित हुआ है, वहीं महाराजी धान भी 70 प्रतिशत तक शरीर को इससे बचा सकता है. जबकि लाइचा धान 100 फीसदी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम है.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों का मानना है कि कैंसर प्रभावित क्षेत्रों में हर दिन लोगों को अपने खाने में कम से कम 200 ग्राम तक इन चावलों को शामिल करना चाहिए. फिलहाल इन तीनों किस्मों को लेकर वैज्ञानिक अगले चरण पर शोध करने की तैयारी करने जा रहे हैं. वो इसकी मदद से कैंसर के लिए दवाई बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका प्रथम ट्रायल चूहों पर किया जाएगा.
शरीर के लिए है लाभकारी
इन चावलों का सेवन हमारे शरीर के लिए भी लाभकारी है. इनके सेवन से शरीर में कॉम्प्लेक्स, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन- बी की आपूर्ति होती है. इन्हें पचाना बहुत आसान है और इसलिए ये डायरिया और अपच की शिकायत में भी फायदेमंद हैं. पेशाब संबंधी समस्याओं में इनका उपयोग फायदेमंद है. इनके सेवन से पेशाब की समस्या बहुत हद तक दूर हो जाती है. इसके अलावा किसी तरह का नशा विशेषकर भांग का नशा उतारने में ये सहायक हैं.