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Updated on: 10 November, 2023 3:38 PM IST

Stubble Burning:दिल्ली में इन दिनों प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है. जिससे लोगों को कई समस्याएं पेश आ रही हैं. दिल्ली में बढ़े इस प्रदूषण का मुख्य कारण पंजाब-हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली को बताया जा रहा है. इन राज्यों में हर साल पराली जलाने के चलते दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक हो जाता है. सरकार की अपीलों और इस पर लगी रोक के बाद भी किसान पराली जलाने से पीछे नहीं हटते. क्योंकि, पराली प्रबंधन मशीन काफी महंगी होती है तो छोटे किसान इसे खरीद नहीं पाते और हर साल बड़े पैमाने पर किसान पराली जलाते हैं, जिससे काफी प्रदूषण होता है. लेकिन, अब किसानों को ऐसा करने की जरूरत नहीं होगी. क्योंकि, न ही पराली होगी और न ही उसे जलाने का झंझट होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी किस्म तैयार की है, जिससे पराली से निजात मिलेगी.

115-120 दिनों में तैयार हो जाएगी फसल

समाचार वेबसाइट NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, IARI के वैज्ञानिक राजबीर यादव ने बताया कि चावल और गेहूं की फसल के बाद पराली जलाना एक बड़ी समस्या है. राजबीर के मुताबिक धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई की जाती है. एक किसान को धान रोपने और गेहूं बोने में 15 से 20 दिन का समय लगता है. उन्होंने कहा कि पूसा कई वर्षों से धान की वैरायटी का ड्यूरेशन कम करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन, अब पूसा ने विशेष रूप से बासमती की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जिसकी फसल 115-120 दिनों में तैयार हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि चावल की 1509 और 1121 किस्म को बड़ा ही कम समय लगता है. जबकि, 1401 की फसल को तैयार होने में थोड़ा ज्यादा समय लग जाता है. उन्होंने कहा कि पिछले चार-पांच वर्षों से पूसा संस्थान एक वैरायटी को लेकर कोशिश कर रही है, जो पूसा 44 के वैरायटी के बराबर हो. उन्होंने बताया कि पूसा 44 नॉन बासमती वैरायटी है, इसमें कम समय लगता है. पूसा 209 पूसा 44 के बराबर है. पूसा 44 का ज्यादा प्रोडक्शन है . अधिक उपज की वजह से किसान इसको छोड़ना पसंद नहीं करते हैं.

किसानों को किया जा रहा जागरूक

डॉ. राजबीर के मुताबिक, हमारा प्रयास है की पूसा 2090 से उपज इतनी ही मिले, लेकिन उसका ड्यूटेशन कम हो जाए. इस संबंध में किसानों को बार-बार बताया भी जा रहा है की कटाई के बाद जो 15 से 20 दिनों का गेंहू की बुआई का वक्त है उस वक्त को यूज करें. उन्होंने कहा कि अगर खेतों की बिना जुताई किए गेंहू की बुआई किसान सीधे कर सकें तो 15- 20 दिन बच जाएंगे. उन्होंने कहा कि धान के खेतों में मॉइश्चर अच्छा रहता है तो किसान सीधे बुआई कर सकते हैं. डॉ. राजबीर ने कहा कि गेंहू की किस्में भी उसी तरह से डिजाइन की जा रही हैं. वह पिछले 12 सालों से सीधे सीडिंग की भी कोशिश कर रहे हैं.

इस वजह से पराली जलाते हैं किसान

अनुभव ये कहता है कि धान की कटाई के बाद जो गेंहू की सीधी बुआई होती है, उसमें गेंहू की पैदावार कभी कम नहीं होती. पूसा 44 जैसी वैरायटी में बायोमास का ज्यादा लोड होता है, तो गेंहू की बुआई करने के लिए किसानों को मशीनें अच्छी चाहिए. जैसे हैप्पी सीडर है और इसका इंप्रूव्ड वर्जन, जो गेंहू की अच्छी तरह से बुआई कर सके. डॉ. राजबीर ने कहा कि अगर तापमान बढ़ने के समय अगर सीधी बुआई और धान का रेसिड्यू खेत में पड़ा रहे तो तापमान को मॉड्यूलेट करता है और फसल को इसका फायदा होता है. कोशिश यही है कि धान और गेंहू के बीच का जो समय है उसको कम कर दें. 15 दिनों तक ये वक्त चला जाता है तो इसी हड़बड़ाहट में लोग पराली जलाते हैं.

पराली न जलाने के हैं बड़े फायदे

डॉ. राजबीर के मुताबिक, पराली न जलाने का मुख्य फायदा यह है कि इसे खेत में रखने से खेत की उत्पादन क्षमता में कोई बदलाव नहीं आता है. दूसरा, गेहूं की पैदावार हमेशा अच्छी होती है. यह मिट्टी की संरचना में भी सुधार करता है. उन्होंने बताया कि उत्तर भारत में मिट्टी में कार्बन का स्तर घट रहा है. सामान्य फसलों और गेहूं की लगातार बुआई से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है. जैविक कार्बन की मात्रा मिट्टी की उत्पादकता क्षमता निर्धारित करती है. उन्होंने कहा कि अगर किसान पराली को खेत में ही छोड़ दें और उसे जलाए बिना ही सीधे गेहूं की बुआई कर दें तो अगले कुछ सालों में खेत में ऑर्गेनिक कार्बन कॉन्टेंट बढ़ना शुरू हो जाता है. जिससे सॉइल की फिल्टरेशन कैपेसिटी, वाटर रिटेंशन कैपेसिटी, न्यूट्रिएंट यूज एफिशिएंसी जैसे चीजें सुधर जाती है.

English Summary: The hassle of burning stubble will end IARI scientists claim s new variety of paddy will yield in 120 days
Published on: 10 November 2023, 03:40 PM IST

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