17 सितम्बर 2020 को लोकसभा के मानसून सत्र में पारित हुआ नया कृषि कानून बिल किसानों की जिंदगी में हल चल पैदा कर दिया है. पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक के किसान इसका विरोध करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन करने उतर गए. हैरत की बात तो यह है कि ये प्रदर्शन लगभग एक साल से चला आ रहा है. वहीं सड़कों पर उतरे किसानों की वजह से जनता और प्रशासन दोनों काफी परेशान चल रहे हैं.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाने वालों को फटकार लगाया है और कहा कि अन्नदाताओं के नाम पर की जा रही राजनीति और अराजक व्यवहार को बंद किया जाए.
एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ फटकार ही नहीं लगाई, बल्कि किसान संगठन पर शहर का गला घोंटने का भी आरोप लगाया. जी हाँ बीते एक साल से जिस तरह से आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उसे देखते हुए यह कहना अनुचित नहीं होगा की यह किसी आरोप से कम है.
किसी भी लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत हर व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त होता है कि अपनी बात सभी के सामने रख सके, सरकार की कमियों और नीतियों में समस्या होने पर विरोध प्रदर्शन करें लेकिन अपने दायरे में रहकर.
भारत ऐसा देश है, जहाँ हर दिन किसी न किसी विषय को लेकर विरोध प्रदर्शन होता रहता है. हालांकि, यह कोई गलत बात नहीं आलोचना किसी भी सरकार को सफल बनाने का काम करती है. लेकिन जरुरी यह है की आलोचना कैसे और किस तरह से की जा रही है. बड़ा सवाल यह है कि किसी के विरोध की क्या सीमा होनी चाहिए. विरोध के नाम पर आगजनी, मार-पीट, सरकारी सम्पतियों को नुकसान पहुंचना किसी तरह का कोई समाधान नहीं है.
दूसरों की सुलभता को ताक पर रख देना, विरोध के नाम पर राजमार्गों को, रेलमार्गों को बाधित करना, प्रदर्शन नहीं अपराध की श्रेणी में आता है. अपनी बात को मनवाने के लिए अगर दूसरों को परेशानी होती है तो वह प्रदर्शन नहीं अपराध कहलाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद का हवाला देते हुए कहा कि जिस अनुच्छेद में आपको विरोध करने का अधिकार प्राप्त है, वहां यह भी लिखा हुआ है कि पब्लिक आर्डर यानी कि यह स्वतंत्रता लोकाचार के अधीन होगी. लेकिन अफ़सोस की यह बात कई लोगों के समझ नहीं आती, वह किसान आंदोलन के नाम पर राजमार्ग जाम करके महीनों से बैठे हुए है
बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक किसान आंदोलन समूह को फटकार लगाई. दरअसल, इस समूह ने दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी थी, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वह सड़कों और राजमार्गों को अवरुद्ध करके अपना विरोध जारी रखने की योजना पहले ही बना रखे हैं, तो अदालत से पूछने का क्या मतलब है.
1 साल से चल रहे आंदोलन की वजह से आम आदमी को हो रही परेशानी को देखते हुए न्यायमूर्ति AM खानविलकर ने याचिकाकर्ता किसान महापंचायत के वकील से कहा, “आपने शहर का गला घोंट दिया है और अब आप शहर के अंदर आना चाहते हैं? आप सुरक्षा और रक्षा कर्मियों के काम में बाधा डाल रहे हैं.
एक बार जब आप कानूनों को चुनौती देकर अदालत में आते हैं, तो विरोध करने का कोई मतलब नहीं है. राज्य और देश के अन्य लोगों को भी घूमने का अधिकार है. आपलोगों के इस विरोध प्रदर्शन की वजह से वो लोग अपने-अपने घरों में रहने को मजबूर हो गए हैं. सड़कों पर प्रदर्शन की वजह से आए दिन लोगों को अपने काम पर पहुंचने में देरी होती है. आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा?