यूं तो हमेशा से किसानों के बीच असली और नकली कीटनाशकों का मुद्दा चर्चा में रहा है. कई मौकों पर इसे लेकर समाधान निकालने की बातों पर जोर दिया जाता रहा है, लेकिन अफसोस उदासीनता की वजह से आज तक कोई समुचित समाधान नहीं निकल पाया है. इस कड़ी में किसानों के बीच नकली और असली कीटनाशकों की समस्या को लेकर भाजपा सांसद द्वारा लिखित सवाल पूछा गया था, जिस पर सरकारी की नुमाइंदगी पेश करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जवाब दिया है कि देश में कीटनाशकों के लिए टेस्टिंग लैब 74 और सीड टेस्टिंग लैब 126 हैं.
हमारे यहां 14 करोड़ किसानों की संख्या को ध्यान में रखते हुए क्या आपको लगता है कि इतनी लैब पर्याप्त रहेंगी? जवाब बिल्कुल सरल है। बिल्कुल भी नहीं, तो सरकार इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठा रही है और अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, तो यह सवाल अभी तक अनुउत्तरित बना हुआ है, जिसकी भारी कीमत हमारे किसान भाइयों को चुकानी पड़ रही है, जिसका खामियाजा कहीं न कहीं हमें भी खाद्य आपूर्ति के रूप में भुगतना पड़ रहा है. अब ऐसे में सरकार आगे चलकर क्या कुछ कदम उठाएगी. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त तय करेगा.
वहीं, अगर संसद के मानसून सत्र में किसानों के मसलों पर हुई चर्चा की बात करें तो किसानों बिल को लेकर भी चर्चा का सिलसिला दिखा, लेकिन अफसोस अभी तक इसे लेकर कोई सकारात्मक नतीजे नहीं दिखे हैं. आज एक बार फिर से पंजाब, हरियाणा समेत अन्य राज्यों के किसान जंतर-मंतर पर किसान संसद में शिरकत करने के लिए निकल चुके हैं। अब तो महिला किसान भी इसमें शामिल होने के लिए जंतर-मंतर पर पहुंच रहीं हैं।
कृषि विशेषज्ञ विनोद आंनद क्या कहते हैं
वहीं, इस पूरे मसले पर कृषि विशेषज्ञ विनोद आंनद कहते हैं कि निसंदेह जिस पैमाने पर असली और नकली कीटनाशकों का कारोबार पर धड्ल्ले चल रहा है, उसे देखते हुए 74 टेस्टिंग लैब और 126 सीड लैब नाकाफी हैं। इसका सीधा असर आगामी 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की योजना पर पड़ सकती है.
सरकार ने उठाया कड़ा कदम
यहां हम आपको बताते चले कि नकली और असली कीटनाशकों के कारोबार पर अंकुश लगाने व किसानों को गुणवत्तायुक्त कीटनाशक उपलब्ध कराने के लिए संसद में आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत किसानों को गुणवत्तायुक्त कीटनाशक उपलब्ध कराने का प्रावधान है.
इसे 1985 के कीटनाशक नियंत्रक निर्देश के तहत जारी किया गया था, जिसमें सभी उर्वरकों व कीटनाशकों को मानक निर्धारित किए गए थे. अगर किसी कंपनी ने किसानों को उर्वरक व कीटनाशक उपलब्ध कराते समय इसमें निर्धारित किए गए किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ 3 से 7 साल की सजा देने का प्रावधान है.