विगत आठ माह से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन जारी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है. इसे लेकर कई मर्तबा वार्ता भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक हुई सारी वार्ता बेनतीजा ही रही है. वहीं, संसद के मानसून सत्र से पहले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों संग वार्ता की इच्छा जाहिर की थी. वहीं, संसद के मानसून सत्र से पहले हरियाणा, पंजाब समेत अन्य राज्यों के किसान जंतर-मंतर पर किसान संसद में शिरकत करने के लिए पहुंच रहे हैं.
किसान संसद का एकमात्र उद्देश्य यही है कि सरकार तक अपनी आवाज पहुंचा जाएं. वहीं, किसान आंदोलन की मौजूदा स्थिति की बात करें तो अभी टिकरी बॉर्डर समेत दिल्ली के कई सीमाई इलाकों में अब महज कुछ ही चुनिंदा किसान आंदोलन करते हुए नजर आ रहे हैं. कुछ ही शिविर सक्रिय हैं. बाकी के सभी किसान अब अपने-अपने घर रवाना हो चुके हैं.
किसान आंदोलन की मौजूदा स्थिति को देखकर यह साफ जाहिर हो रहा है कि अधिकांश किसानों का किसान आंदोलन से मोह भंग होता जा रहा है, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक हमारी मांगें नहीं मान ली जाती है, तब तक हमारा यह आंदोलन यथावत जारी रहेगा, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि अब तो इस आंदोलन में फूट भी पड़ चुकी है. हालात अब ऐसे बनते जा रहे हैं कि किसान ही किसान के खिलाफ अपनी आवाज मुखर रहा है. इतना ही नहीं, मसला महज आवाजों को मुखर करने तक सीमित रहता तो बात कुछ और ही रहती, लेकिन अब ऐसा हो नहीं रहा है. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि अब बात हिंसा पर आ चुकी है.
अब किसान आपस में ही उलझते हुए नजर आ रहे हैं. इसकी भयावह तस्वीर विगत सोमवार को दिखी जब कुछ किसान आंदोलन में शामिल खालिस्तानी समर्थकों ने किसान नेता रुलदू सिंह मनसा पर हमला करने का कुप्रयास किया है. वो तो गनीमत रही कि हमले के वक्त रुलदू सिंह मनसा वहां मौजूद नहीं थे, लेकिन इस हमले में उनके दो समर्थकों को चोट आई है.
वहीं, जब रुलदू सिंह मनसा वहां पहुंचे तो उन्हें इस बारे में पता लगा कि कुछ लोग उन पर हमला करने आए थे. चलिए, अब जानते हैं कि आखिर रुलदू सिंह मनसा ने ऐसा क्या कह दिया था कि कुछ खालिस्तानी तत्वों के लोग उन पर हमला करने पर आमादा हो चुके थे.
रुलदू सिंह मनसा का बयान
बता दें कि आंदोलनकारी किसानों को संबोधित करते हुए रुलदू सिंह मनसा ने कहा था कि कुछ लोग विदेशों में बैठकर हमारे किसान भाइयों को उकसाने का काम करते हैं. जब बाद में हालात संजीदा हो जाते हैं तो वे अपने कदम पीछे खींच लेते हैं. जाहिर है कि उन्होंने अपने उक्त बयान से उन खालिस्तानी तत्वों की ओर इंगित किया था, जो विदेशों में बैठकर आंदोलनकारी किसानों को उकसाने काम कर रहे हैं. वहीं, अब उनके इस बयान के नतीजतन खालिस्तानी समर्थक उन पर हमला करने पर उतारू हो चुके हैं.